क्या होगा "गांधीवाद" से?



यूँ भी किसी जिले में 187 करोड़ घुस जाये तो क्या ख़ाक गांधीवाद रहेगा वहां ? या तो पूँजी आते ही पूँजी वाद हो जायेगा या सबको बराबर हिस्से मिलने के नाम पर मार्क्सवाद आएगा, गांधीवाद कहाँ से आयेगा? आज मोदी जी जब सफ़ाई अभियान के नाम पर पैसा देने के बदले खुद ही झाड़ू उठा रहे हैं तो लोगों को आश्चर्य हो रहा है। इतने सालों में तो पैसा ही गांधीवाद को लीलता रहा। इसलिए मोदी जी ने पैसे नहीं दिए! आज भी लोगों को छुट्टी न मिलने की शिकायत थी, और हमें शर्म आ रही थी। बेचारे छुट्टी न मिलने का गम ग़लत करने भी कहीं नहीं जा सकते! आज तो वो एक “सूखा दिवस” होता है न?

गांधी जिले यानि वर्धा की अभी की हालत भी बता दे एक गांधी जी के नाम की यूनिवर्सिटी भी है वर्धा में। इस विश्वविद्यालय के नाम में अंतर्राष्ट्रीय और हिन्दी दोनों ही शब्द जुड़े हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर तो छोड़िये राष्ट्रिय स्तर पर ही हिन्दी की दशा ऐसी है कि आप माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपना मुकदमा कोई पूरी तरह हिंदी में नहीं लड़ सकता। यहाँ मुकदमा शब्द भी उर्दू का है जो अरबी से आता है। सोचने पर भी आपको मुक़दमे के लिए जो कोई हिंदी शब्द नहीं सूझता, वो आपको हिंदी की दशा तो बता ही देता है।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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