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पैदा हुआ था इंसान, मोहब्बत लेकर,
उम्र बड़ी तो, मजहबी हो गया,
मजहबी होना, कोई गुनाह नहीं,
अपने मजहब को, दिखाने के खातिर,
दूसरों को गिराना,
ये कहां की अदा है।

मजहबी होने से पहले, अगर हम सब इंसान बन जाए,
तो हर मजहब कितना खूबसूरत हो जाए,
एक मजहब दूसरे मजहब से गले लग जाए,
घुल जाए, मिल जाए,
एक हो जाए।

नफरत के बाजार में,
प्यार लेकर चला हूं मैं,
इंसान हूं,
इंसान बनने चला हूं मैं।

क्या फरक पड़ता है,
तू हिंदू है, मैं मुसलमान हूं,
तू भी इंसान है,
मैं भी इंसान हूं।

हर मजहब का सार,
परवरदिगार ने एक ही बनाया,
जिसको कहते हैं मोहब्बत,
क्या तू उसको समाज पाया?

कोई करता प्राथना,
कोई करता इबादत,
कोई करता प्रेयर,
सबका मालिक एक ही है,
ये बात जानते हैं हम,
पर नहीं मानते हैं हम,
जिसकी इबादत करते हम,
अगर उसके बताए हुए,
रास्ते को समझ जाए हम,
फिर उस रास्ते पर चलते जाए हम,
इंसान पैदा होकर आए थे,
वापस इंसान बन जाए हम।

पैदा हुआ था इंसान, मोहब्बत लेकर,
उम्र बड़ी तो मजहबी हो गया,
मजहबी होना कोई गुनाह नहीं,
अपने मजहब को दिखाने के खातिर,
दूसरों को गिराना,
ये कहां की अदा है।

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By Ankit Paurush

अंकित पौरुष अभी बंगलोर स्थित एक निजी सॉफ्टवेर फर्म मे कार्यरत है , साथ ही अंकित नुक्कड़ नाटक, ड्रामा, कुकिंग और लेखन का सौख रखते हैं , अंकित अपने विचार से समाज मे एक सकारात्मक बदलाव के लिए अक्सर अपने YouTube वीडियो , इंस्टाग्राम हैंडल और सभी सोसल मीडिया के हैंडल पर काफी एक्टिव रहते हैं और जब भी समय मिलता है इनके विचार पंख लगाकर उड़ने लगते हैं

8 thoughts on “पैदा हुआ था इंसान with @poetsofbangaloremumbainoid3379 | Poetry By Ankit Paurush”
  1. आज इंसान की फितरत कुछ ऐसी हो गई है
    अपनों के साथ धोखा गैरों के साथ दिल लगाकर रोता
    और जब बात साथ निभाने की आए ,
    तो कुछ कमियां निकालकर अपनों से पराया हो जाता ।
    आज सब बोलते है ये मेरा वो मेरा ,
    पर हकीकत में आज इंसान का सब कुछ खो गया
    पैदा हुआ था इंसान मोहब्बत लेकर ,
    और उमर बड़ी तो मजहबी हो गया 🙂🙂

    ~~ Shivu kohli 😊

    Great video 😊

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