हाल में कांवड़ यात्राओं के दौरान आपने सोशल मीडिया पर कुछ धूर्तों की टिप्पणियाँ देखी होंगी, जिसमें वो कहते हैं कि कॉपी-किताबें उठाकर स्कूल जाते तो कांवड़ उठाकर नहीं जाना पड़ता! ये गजब का मूर्खतापूर्ण तर्क है क्योंकि शिक्षा एक अलग बात है और धार्मिक होना न होना दूसरी बात है…
ऐसे मूर्खों को समझाने का अच्छा तरीका यही है कि काहा जाए – कॉपी-कलम उठाता ऋषि सुनक तो आज ऐसे पूड़ी तो नहीं बांटना पड़ता भंडारे में!!
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