उन्हें शिकायत है कि पटाखे क्यों फोड़े? अरे सिर्फ दिया जलाने से तो कोरोना वैसे भी नहीं भागता, ऊपर से पटाखे फोड़ दिए! कोई त्यौहार है क्या? अपनी ऊँची अटारी से उतरकर जमीन पर आते मियां तो पता चलता कि ये भारत है। यहाँ तो मृत्यु भी उत्सव है और चैती में “खेले मसाने में होरी” गाया जाता है।
अहमदाबाद में एक महिला की रिपोर्ट जब कोरोना वायरस टेस्ट में पॉजिटिव आई, तब उसे अस्पताल ले जाने का ये वीडियो है। इसमें वो हाथ हिलाकर आस पास के लोगों से विदा ले रही है। अस्पताल में कई दिन रहने के लिए उसने अपना बैग तैयार रखा है। वो लोगों को अधिकारियों और डॉक्टरों से सहयोग की अपील करती है।
वो कह रही है कि बुखार और खांसी जैसे लक्षणों पर घबराना नहीं। डॉक्टरों और अधिकारियों से सहयोग करें और क्वारेंटाईन / सोशल डिस्टेन्सिंग जैसे नियमों का पालन करें। जिस बीमारी का इलाज सचमुच हो भी पायेगा या नहीं, इसका भी पता नहीं, उससे ऐसे उत्सव की तरह मिलते, किसी को देखा है? फर्क तो है भाई!
बाकी हम ना भी करें तो क्या होता है? सिंगल सोर्स जमात के छुपने, फ़ोन बंद करके गायब होने, फर्जी नाम-आधार कार्ड पर यात्रा करने वगैरह से तुलना तो होगी ही!