Jo Ja Raha Hai Waqt | Poetry By Ankit Paurush
In this poetry the author tries to relate the present condition as penance and the coming future will be as glowing sun.
जो जा रहा है वक्त, वो मेरी तपस्या है,
जब आएगा वक्त, वो मेरा दौर होगा,
सोने की तरह आग में तप रहा हूं,
जब उगूंगा तो सूरज के तरह चमक होगी,
जो जा रहा है वक्त, वो मेरी तपस्या है।
स्वाभिमान का सूरज हूं मैं,
अभिमान की न कोई झलक होगी,
थोड़ा हार गया समय के खेल में,
सात घोड़ों के रथ में, मेरी विजय होगी।
जो जा रहा है वक्त, वो मेरी तपस्या है,
जब आएगा वक्त, वो मेरा दौर होगा।
सूरज का काम है उगना,
मेरे अंदर भी एक सूरज है,
जब आएगा मेरा दौर,
घर घर के आंगन में मेरी चमक होगी।
जो जा रहा है वक्त, वो मेरी तपस्या है,
जब आएगा वक्त, वो मेरा दौर होगा।
जो साथ दे रहा है मेरा,
हृदय के आंगन में, उसकी हमेशा जगह होगी,
सूरज हूं, बिलकुल उगुंगा,
थोड़ा तप रहा हूं,
जब उगूंगा तो दूर दूर तक मेरी चमक होगी।
अंकित पौरुष
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Bahut Badhiya!
Well said…
Badiya
👍
Gazab
Very nice ankit ji Background music is also good and very deep word….god bless you…
बहुत खूब 👏👏👏
Bahut khoob