राम नाम की लगातार चर्चा से याद आया कि एक थे खट्टर काका। कोई वास्तविक व्यक्ति नहीं थे, एक गढ़े हुए चरित्र थे, जिनके नाम से हरिमोहन झा नामक मैथिल ने कई व्यंग लिखे थे। अगर हरिमोहन झा जी के लिखे व्यंग संग्रह – खट्टर काका की केवल अनुक्रमणिका पढ़ लें, इतना भर देख लें कि उनके व्यंग हैं किस विषय पर, उतने से भी आम हीनू की जज्बात आपा को ठेस लग जाएगी। रामायण, गीता, आयुर्वेद, दुर्गापाठ जैसे तो उनके विषय हैं! उनकी कहानियाँ-व्यंग पढ़ डालें तो आपके बर्दाश्त की हद की एक छोटी-मोटी परीक्षा तो हो ही जाती है। जिनका विवाह में जाने का थोड़ा अनुभव होगा, बारातियों को कैसी गालियाँ पड़ती हैं सुना होगा, तब तो झेल जायेंगे, अन्यथा बड़ी मुश्किल होगी। अपने लिखे में ही हरिमोहन झा जी लिख भी देते हैं कि मैथिलों का मुंह भगवान भी बंद नहीं कर सकते तो मनुष्यों की क्या बिसात है।
एक बार जब खट्टर काका श्री राम में दोष ढूंढना शुरू करते हैं, तो उनपर रुकते नहीं। वो बड़े आराम से कहते हैं कि उनके पिता ने अपना नाम तो दशरथ रख लिया था मगर युद्ध में एक रथ लेकर गए। जो रथ ले गए वो भी ऐसा था जिसका पहिया बीच में ही टूट गया! कैकेयी के ह्रदय की कठोरता की बात करते हैं तो कहते हैं कि जिसका हाथ इतना कठोर था कि रथ की धुरी बन जाये, उसके हृदय की कठोरता का क्या कहा जाए? परिवार में वो सभी भाइयों में खोट निकाल देते हैं। उतने पर ही रुकते भी नहीं, श्री राम के गुरु विश्वामित्र तक के नाम का संधिविच्छेद कर डालते हैं। माता-पिता, भाई-बन्धु और गुरुओं का क्या कहा जाए, अपने व्यंग में उन्होंने उस काल की अयोध्या की प्रजा तक को नहीं छोड़ा है। पूरी कहानी पढ़कर कसमसाते व्यक्ति को अन्ततः व्यंग लेख के अंतिम वाक्य पर जाकर थोड़ा चैन पड़ता है।
अंत पर पहुंचकर व्यंग उस कहानी जैसा हो जाता है जिसमें किसी गाँव में कई दिनों से बारिश न होने पर लोग सामूहिक यज्ञ-पूजन आदि की योजना बनाते हैं। सारा गाँव जब इकठ्ठा होता है तो केवल एक बच्चा छाता लेकर आया था। बाकी तो पूजन इत्यादि के लिए आये थे, लेकिन सिर्फ उस बच्चे को विश्वास था कि उनकी प्रार्थना से बारिश होगी। वो उस समय का प्रबंध करके आया था ताकि बारिश हो तो उसे भीगना न पड़े। खट्टर काका भी जब कथा के अंत में कहते हैं कि ससुराल के नाई की गालियाँ भी मीठी लगती हैं तो मैं तो ब्राह्मण हूँ! तो समझ में आता है कि बाकी लोग जहाँ श्री राम को अवतार, परमब्रह्म, मर्यादापुरुषोत्तम आदि माने बैठे थे तो कोई क्षेत्र ऐसा भी है, जहाँ लोगों ने अबतक उन्हें दामाद ही माना हुआ है। सत्तर-तीस के लिए ख्यात, परमाणुओं की शक्ति से लैस प्रगतिशील चीरयौवनाएं भी उन्हें पुनः-पुनः “मिथीला का मनबढू दामाद” घोषित करती रहती हैं।
ऐसी हरकतें करते समय जो बात विशेष तौर पर ध्यान में रखने की है, वो है भाव। जैसे अदालत अपने फैसलों में केवल कृत्य या एक्शन नहीं देखती, उस कृत्य के पीछे की प्रेरणा या मोटिव भी देखती है, जनता भी कुछ वैसा ही करेगी। रावण का किरदार निभाने वाले अरविन्द त्रिवेदी के बारे में एक प्रसिद्ध किस्सा है कि वो जब हनुमानगढ़ी पहुंचे तो भक्तों-महंतों ने उन्हें बाहर ही रोक लिया। कहा गया कि आपने हनुमान जी को मर्कट कहा था इसलिए अन्दर नहीं आने देंगे। अरविन्द त्रिवेदी जी ने क्षमा मांगी और उन्हें ससम्मान मंदिर में आने दिया गया। काफी कुछ हंसी ठिठोली जैसा मामला था। लोगों को भी पता था कि उन्होंने रावण की केवल भूमिका निभाई थी और उसमें एक संवाद अदा किया था। अरविन्द त्रिवेदी भी जानते होंगे कि उन्हें सचमुच रोक नहीं लिया गया।
हनुमान जी को फल !! pic.twitter.com/6AaHe6NXDM
— Anand Vidyarthi (@anandydr) January 6, 2024
राम नाम आते ही भारत में कैसे भाव उमड़ते हैं वो आपको वीडियो में भी दिखा होगा। शरीर और आर्थिक सामर्थ्य में दीन-हीन सी दिखने वाली एक वृद्धा मंदिर के सामने चली आई है। उसके हाथ में एक फल, संभवतः आम है जो उसे रथ पर भेजना है। क्यों भेजना है? क्योंकि रथ पर हनुमान की वेशभूषा में कोई बालक बैठा है। वृद्धा के हिसाब से वही हनुमान हैं और वो आम नहीं दे रही, प्रभु को भोग लगा रही है। आम ले जाकर देने वाले ने भी कोई प्रश्न करने, आनाकानी करने जैसी हरकत नहीं की। फल पाने वाला बालक भी नहीं पूछ रहा कि कहाँ से आया फल है। ऐसे भारत में एक तथाकथित राजनीतिक दल का कोई छुटभैया विधायक बताने लगता है कि राम खाते क्या थे? जितेंद्र आव्हाड के अनर्गल बयान के बाद उनके ही समर्थकों ने उन्हें पटक-पटक के कूटा है। भगवान की दया से पुलिस आस पास थी और उन्हें बचा लिया गया।
बाकी ऐसी हरकतें न ही करें तो बेहतर, जनता कबतक संयम रखेगी और कब अचानक बाँध टूट जायेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता!