ज्योत्स्ना कपिल की समीक्षा

सेतु – कथ्य से तत्व तक ‘ मेरे हाथ में है। सन 2020 में यह पुस्तक काफ़ी चर्चित रही, अतः इसकी ओर सहज उत्सुकता जागना स्वाभाविक ही है। सर्वप्रथम मैं बधाई देना चाहती हूँ ‘ साहित्य संवेद ‘ समूह के एडमिन्स को, जिनके प्रयासों से यह पुस्तक अस्तित्व में आयी। नवोदितों में समीक्षा की संभावनाएं तलाश करना और उन्हें इसके लिए अवसर प्रदान करना, यह एक प्रशंसनीय कदम था ‘ साहित्य संवेद ‘ समूह का, जिसे उन्होंने न केवल सफलतापूर्वक संपन्न किया, बल्कि उसे पुस्तकाकार भी दिया।

समीक्षकों की एक नई जमात खड़ी करने की दिशा में ‘ साहित्य संवेद ‘ का यह प्रयास बहुत प्रशंसनीय व महत्वपूर्ण था। अब आते हैं पुस्तक में संग्रहित सामग्री पर । समूह में लेखकों के समक्ष प्रस्ताव रखा गया उनकी पसंदीदा लघुकथा का चुनाव करके, उसपर समीक्षकीय टिप्पणी करने का। इस आमन्त्रण का अधिकतर नवोदितों ने उत्साहपूर्वक स्वागत किया और इस महती कार्य को अंजाम भी दिया। एक से बढ़कर एक कथाएं चयनित की गईं और उनपर खुलकर अपने मत व्यक्त किये गए। यह देखकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि इस आयोजन में कई बेहतरीन समीक्षाएं आयीं, जिन्हें पढ़कर मैं भविष्य के प्रति आशान्वित हूँ।

अनीता राकेश जी व रवि प्रभाकर जी द्वारा इन समीक्षाओं पर अपना विस्तृत अभिमत दिया गया,उनकी व्याख्यता की गयी। पुस्तक के सम्पादक मृणाल आशुतोष अपने सम्पादकीय में ब्यौरा देते हैं कि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के जन्मदिन पर उन्होंने, कविता वर्मा, अनघा जोगलेकर, दिव्या राकेश शर्मा ने श्री कुसुमाकर दुबे जी के नेतृत्व व मार्गदर्शन में समूह की स्थापना की और साहित्य के प्रति समर्पित होकर यथासंभव साहित्यिक उन्नयन के प्रति प्रयासरत हैं। वह समूह की विभिन्न गतिविधियों का विवरण देते हुए बताते हैं कि एक प्रकार से कुछ हटकर यह प्रतियोगिता रखी गई और लोगों के उत्साह व परिणाम से प्रेरित होकर पुस्तक लाने का विचार किया गया। उनका मानना है कि सम्मिलित प्रतिभागियों ने अपनी पसन्द की लघुकथा पर समीक्षकीय दृष्टि दी।

यद्यपि कुछ प्रतिभागी समीक्षा के मर्म तक न पहुँच पाए, फिर उन्हें उस पुस्तक में स्थान दिया गया। ताकि सभी आगे और भी बेहतर करने को प्रोत्साहित हों। सम्पादक का कार्य न केवल श्रेष्ठ चयन है अपितु उन पौधों की उचित सार सम्हाल करना है जो भविष्य में सुदृढ़ वृक्ष बनने की क्षमता रखते हैं। पुस्तक की दूसरी सम्पादक शोभना श्याम जी अपने सम्पादकीय में कहती हैं कि साहित्य के विकास में समीक्षक का खासा योगदान रहता है। अच्छी व सही समीक्षा साहित्य को भाव को दिशा देती है। अच्छी समीक्षा एक अनाम रचना को भी स्थापित कर देती है। वह ‘ मैला आँचल ‘ का उदाहरण देते हुए कहती हैं कि- ” जब कोई इस उपन्यास का नाम भी नहीं ले रहा था तब नलिन विलोचन शर्मा ने उसकी समीक्षा करके ऐसा धमाका किया रेणु यकायक चमक उठे। ” शोभना जिनके अनुसार समीक्षा किसी वैज्ञानिक की प्रयोगशाला नहीं है कि रचना को ठोस तथ्यों की परखनली में डालकर उसकी जाँच कर ली जाए।

यह तो रचनात्मक भाव जगत है, जो जीवन के बिम्बों में ढलता हुआ मूर्त और अमूर्त दोनों में रूपायित होता है। विभिन्न विधाओं में पर्याप्त और लगातार समीक्षाओं के चलते भी यह कटु सत्य ही है कि जो विधा सबसे ज्यादा उपेक्षा की पात्र बनकर स्तरहीनता की ओर अग्रसारित होती रही, वह भी समीक्षा ही है। आब हम आते हैं पुस्तक के समीक्षा खण्ड की ओर। इस पुस्तक में सर्वप्रथम डॉ कुमार सम्भव जोशी द्वारा अनिल मकरिया की कथा ‘ लूसिफ़र ‘ पर विस्तृत विवेचन किया गया।डॉ जोशी ने इस कथा पर बहुत बारीकी से उसकी पर्तों को खोला है और विश्लेषण को नए आयाम दिए हैं। उनकी विस्तृत टिप्पणी उनके गहन अध्ययन एवं ज्ञान को प्रदर्शित करती है। यह लघुकथा मुझे भी अपनी ओर खींचने में सफ़ल रही। अर्चना रॉय द्वारा आदरणीय सुकेश साहनी जी की चर्चित लघुकथा ‘ गोश्त की गंध ‘ पर अपना अभिमत दिया गया। जितनी गूढ़ और मार्मिक यह कथा है, उतनी ही सुंदर अर्चना जी की समीक्षा है।

चन्देश छतलानी जी ने आदरणीय बलराम अग्रवाल जी की चर्चित कथा ‘ अकेला कब तक लड़ेगा जटायु ‘ पर अपनी विस्तृत विवेचना दी है। जैसी की छतलानी जी की काबिलियत है, वह समीक्षा के एक एक बिंदु का अनुपालन बहुत सूक्ष्मता के साथ करते हैं। अगली समीक्षा कुमार गौरव की कथा ‘ निष्ठुर ‘ पर शेफालिका झा द्वारा प्रयास किया गया और शेफालिका काफ़ी हद तक सफ़ल रही हैं। उन्होंने अपनी समीक्षकीय टिप्पणी में काफ़ी मेहनत की है। अगली टिप्पणी लता अग्रवाल जी द्वारा आदरणीय अशोक वर्मा जी की लघुकथा ‘ संस्कार ‘ पर की गई है। लता जी समीक्षा के क्षेत्र में काफ़ी समय से कार्य कर रही हैं, लिहाज़ा उनके लिए यह कार्य उतना मुश्किल नहीं रहा होगा , बनिस्बत किसी नवोदित के। इन विजेताओं के अतिरिक्त जिन रचनाकारों की समीक्षकीय टिप्पणी ने विशेष ध्यान खींचा उनमें वीर मेहता, रजनीश दीक्षित, सीमा भाटिया, अनुराग शर्मा, मनोरमा जैन पाखी आदि की टिप्पणियाँ भी उल्लेखनीय रहीं।

प्रतियोगिता से इतर टिप्पणीकारों में मुझे विशेष तौर पर कविता वर्मा, डॉ वन्दना गुप्ता, मृणाल आशुतोष की टिप्पणी बेहतरीन लगी। पुस्तक के अंत में आदरणीय भगीरथ परिहार जी व डॉ चंद्रेश छतलानी जी के सारगर्भित आलेख व रश्मि तरीका जी द्वारा योगराज प्रभाकर जी का साक्षात्कार भी है। कुल मिलाकर इस पुस्तक के रूप में मृणाल एवम उनके साथियों ने बेहतरीन प्रयास किया है। इन नवोदित रचनाकारों का साहित्य के प्रति अनुराग व समर्पण प्रशंसनीय है। मैं संवेद परिवार को ,उनके इस उल्लेखनीय प्रयास को साधुवाद एवम शुभकामनाएं देती हूँ। आशा करती हूँ कि मृणाल और उनके सहयोगी, आगे भी साहित्य सेवा में अपना बेहतरीन देते रहेंगे।

पुस्तक – सेतु- कथ्य से तत्व की ओर

सम्पादक – मृणाल आशुतोष, शोभना श्याम

प्रकाशक – मनोजवम पब्लिशिंग हाऊस

पृष्ठ – 141

मूल्य – ₹ 250/-

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *