जंगल में जंगल का कानून चलता था। बड़ी मछली जैसे छोटी मछली को खा सकती है, बिलकुल उसी तरह बड़े जीव छोटों को खा सकते थे। ये न भी हो तो हाथी जैसे जीवों के किसी तालाब पर पानी पीने आने पर खरगोश जैसे छोटे जीवों का कुचला जाना संभव था। इसलिए छोटे जीवों का तालाब अलग था। एक छोटे से पोखर पर वो लोग पानी पी लेते, बड़ी झीलों-नदियों की तरफ जाते ही नहीं थे। एक दिन एक सियार को वो छोटा तालाब दिख गया। उसने सोचा कि बाकी मांसाहारियों की तुलना में वो भी तो छोटा है, उसके लिए भी वही पोखर ठीक रहेगा।
एक बार जब गर्मियों में तालाब में पानी कम हुआ तो सियार के हाथ कुछ घोंघे लग लग गए। घोंघे खाकर सियार ने उनके रंग-बिरंगे खोल को कान में कुंडल की तरह लटका लिया। इतने दिनों में उसने देख लिया था कि पोखर पर अधिकांश छोटे शाकाहारी जीव आते हैं। उनपर वो अपनी धौंस भी जमा लेता था। अब जब सियार ने कुंडल पहनना शुरू कर दिया तो उसकी ठसक और बढ़ गयी। वो अपने आप को छोटे जीवों के इलाके का राजा घोषित करने पर तुल गया। राजा के लिए सिंहासन, सम्मान इत्यादि होना चाहिए, इसका इंतजाम भी उसने शुरू किया।
पोखर से ही गीली मिट्टी निकालकर उसने एक पीढ़ा (बैठने का जमीन से थोड़ा ऊँचा आसन) बना लिया। उसके ऊपर उसने आस पास से लम्बी घास नोचकर उसकी रस्सी बांटी और एक गद्दी सी लगा दी। खुद उसपर जा बैठा और पानी पीने आये छोटे जीवों को लगा धमकाने। पोखर को उसने अपना घोषित कर लिया और वहाँ पानी पीने की शर्त ये रखी कि पहले उसकी जयजयकार करनी होगी! कहानी मैथिलि लोककथा है, तो छोटे जंतुओं को कहना पड़ता था –
सोना के रे पीढ़िया रे पीढ़िया, मखमल मोढल ये!
कान दुनु में कुंडल शोभे, राजा बैसल ये!
(मोटे तौर पर इसका मतलब होता स्वर्ण का पीढ़ा है, जिसपर मखमली गद्दा लगा है। जिसके दोनों कानों में कुंडल शोभा देते हैं, वो राजा उसपर विराजमान है!)
छोटे जीवों के पास तो कोई चारा नहीं था इसलिए वो ये गीत गाते, फिर जाकर तालाब से पानी पीते। एक दिन वहाँ कहीं से एक भेड़िया आ गया। सियार ने उसके सामने भी पानी पीने की वही शर्त रखी। भेड़िये ने एक नजर सियार को ऊपर से नीचे तक देखा फिर गाना शुरू किया –
मैट के रे पीढ़िया रे पीढ़िया, जुन्ना मोढल ये!
कान दुनु में डोका टांगल, गीद्दड़ बैसल ये!
(मिट्टी का पीढ़ा है, जिसपर घास की रस्सी का गद्दा लगा है। जिसके दोनों कानों में घोंघे टंगे हैं, वो गीदड़ उसपर बैठा है!)
यूँ कहते-कहते भेड़िये ने एक लात मारकर गीदड़ को किनारे लुढ़का दिया और उसका मिट्टी का आसन नोचकर तोड़ डाला! जमीन सूंघते गीदड़ को अपने इधर-उधर गिरे घोंघे समेटने छोड़कर भेड़िया पानी पीने चला। आस-पास खड़े छोटे जीव गीदड़ की कुटाई देखकर मुस्कुराते रहे!
अक्सर ये कहानी “सेर को सवा सेर मिल ही जाता है” जैसी कहावतें सिखाने के लिए सुनाई जाती है। छोटे बच्चे कहीं “बुल्लीन्ग” (Bullying) न सीख लें, दूसरे अपने से छोटे-कमजोर बच्चों के साथ बदमाशी न करें, इसलिए ये कहानी सुनाई जाती थी। बड़े होने के बाद ये कहानी इसलिए याद रखनी चाहिए क्योंकि आपको ट्विटर और ईलॉन मस्क दिख ही जाते हैं। ऐसा नहीं था कि ट्विटर के पुराने मालिकों को “सेर को सवा सेर मिलना” कभी दिखा नहीं था। थोड़े ही दिनों पहले उन्होंने परंपरागत मीडिया का साम्राज्य टूटते देखा था।
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पुराने दौर में किसी खबर, किसी सम्पादकीय से विरोध होने, उनमें गलतियाँ दिखने पर भी आम आदमी क्या करता? ज्यादा से ज्यादा संपादक जी को एक चिट्ठी लिख देता। संपादक महोदय को भारतीय डाक से पत्र अगर कभी मिलता, और वो उसे पढ़ भी लेते तो अपने ही अख़बार के विरोध में छापना है, या नहीं छापना, ये तो उनकी मर्जी थी। चिट्ठी कूड़ेदान में भी फेंक सकते थे! सोशल मीडिया के आते ही ये स्थिति बदल गयी। हर दूसरे दिन कोई गलतियाँ निकालकर मुंह पर दे मारता है। संपादक महोदय श्री, आप, जी, से नीचे आकर आम आदमी जैसा ही सवालों के दायरे में आ गए।
ये संपादक महोदयों को, वरिष्ठ पक्षकारों को, अच्छा लगा होगा, ऐसा तो बिलकुल नहीं है। कोई बीच बाजार आपकी गलतियाँ-कमियां बता दे, महीनों बाद आपके पुराने लेख के बिलकुल मनगढ़ंत होने की पोल खोले, ये सिर्फ महान लोग (मेरे जैसे) ही हजम कर सकते हैं। किसी घमंडी के बस का तो ये है नहीं! जिस ट्विटर (सोशल मीडिया) ने ये किया था, वो भूल गया कि कल को उसके साथ भी ये हो सकता है। ब्लू टिक, शैडो बैन, हैंडल सस्पेंड जैसे अभिजात्यों वाले तरीके इस्तेमाल कर रहे कुछ लोगों की अचानक ईलॉन मस्क से मुक्का-लात, माफ़ कीजियेगा, मुलाकात हो गयी।
बाकि “सेर को सवा सेर मिलने” वाली कहानी याद रखिये। अकड़ किसी काम की नहीं होती, ये आगे की पीढ़ियों को सिखा देने वाली लोककथाएँ क्यों जरूरी हैं, ये तो पता चल ही गया होगा।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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