जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 26 सितम्बर, 2024 ::
एक देश एक चुनाव को लागू करने में संविधान की कुछ अनुच्छेदों में संशोधन किया जाना आवश्यक होगा। जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 141, 147 से 151, 152, अनुच्छेद 85, अनुच्छेद 83 (2), अनुच्छेद 172(1), अनुच्छेद 324 ए, अनुच्छेद 325, अनुच्छेद 356, संशोधन करने की जरूरत होगी।
एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 02 सितम्बर, 2023 को एक समिति गठित की गई थी, जिसमें केन्द्रीय गृह एव सहकारिता मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन.के. सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी सदस्य थे। केन्द्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित सदस्य थे। डॉ. नितेन चंद्र हाई लेवल कमेटी के सचिव थे। समिति ने लगभग 191 दिनों में रिपोर्ट तैयार की है।
47 राजनीतिक दलों में से 32 ने एक साथ चुनाव कराने पर सहमति दी है, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया है। विरोध करने वालों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) प्रमुख दलों में शामिल हैं।
वर्तमान केन्द्र सरकार ने 18 सितम्बर को आहूत मंत्रिमंडल की बैठक में उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट पर अपनी स्वीकृति दे दी है। संभवतः केन्द्र सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में इसे पेश कर सकती है ।
एक देश एक चुनाव जब कानून की शक्ल लेगा तो इससे सार्वजनिक धन की बचत होगी, प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर पड़ने वाला बोझ कम होगा, सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा और प्रशासनिक मशीनरी चुनावी कार्यों में लगे रहने की बजाय देश के विकास कार्यों में लगी रहेगी। वहीं एक साथ चुनाव कराने पर पर्याप्त धन की आवश्यकता पड़ेगी, अतिरिक्त सुरक्षा और अधिक वाहनों की आवश्यकता पड़ेगी, पर्याप्त मात्रा में इवीएम और वीवीपैट की आवश्यकता पड़ेगी।
यह सही है कि एक देश एक चुनाव लागू होने पर लोकतंत्र और संविधान को मजबूती मिलेगी। लेकिन इस के लिए संविधान की जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 141 एव 152 जिसमें लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के लिए आम चुनाव की अधिसूचना से संबंधित है, वहीं धारा 147 से 151 ए लोक सभा विधान सभाओं के उप चुनाव से संबंधित है। अनुच्छेद 83 (2) और अनुच्छेद 172(1) लोक सभा और राज्य विधान सभाओं की अधिकतम अवधि निर्धारित करते हैं। अनुच्छेद 325 एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र से संबंधित है इसमें भी संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी। अनुच्छेद 324 ए नगरपालिका और पंचायतों के चुनावों के लिए तथा अनुच्छेद 356 केन्द्र को निर्वाचित राज्य सरकार को बर्खास्त करने……से संबंधित संशोधन आदि अपेक्षित होगा।
जहां तक मैं समझता हूँ कि एक देश एक चुनाव के पीछे का विचार भारत में लोकसभा (संसद का निचला सदन) और राज्य विधान सभाओं के चुनावों को एक साथ समयबद्ध करने से है। क्योंकि भारत में प्रत्येक पाँच वर्ष पर लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के लिए चुनाव होते हैं। चुनाव पर खर्च का बोझ बढ़ने के कारण कुछ राज्य अपनी राज्य विधान सभाओं के लिए अलग- अलग चुनाव कराते है। एक देश एक चुनाव की अवधारणा के तहत यदि सभी चुनाव एक साथ आयोजित होगी तो, चुनाव की संख्या और उस पर होने वाले खर्च को कम करने तथा चुनावी प्रक्रिया सरल होने की उम्मीद है। मतदाता एक साथ कई चुनावों में भाग ले पायेंगे, जिससे मतदान में वृद्धि होगी, प्रशासन की चुनाव समय सारिणी में सामंजस्य स्थापित होगी, शासन की प्रभावशीलता प्रभावशीलता में भी सुधार की उम्मीद है।
देश में आजादी के बाद 1951 से 1967 तक चुनाव एक साथ ही होते थे। लोकसभा और राज्यों की विधानसभा चुनाव एक साथ होना, संविधान सम्मत होने के साथ ही पूरे देश के लिए कल्याणकारी भी है, क्योंकि चुनाव के कारण बार-बार आचार संहिता लगती है जिसकी वजह से होने वाली देरी से मुक्ति मिलेगी और देश एव राज्यों की विकास कार्यों की रफ्तार तेज होगी। एक देश एक चुनाव से सरकार की स्थिरता को लंबी अवधि मिलेगी, जिससे निर्वाचित प्रतिनिधि नीतियों को लागू करने पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकेंगे। सरकार को दीर्घकालिक योजना बनाने और सुसंगत नीति कार्यान्वयन करने में सुविधा होगी। एक साथ चुनाव होने से मतदाताओं की हर पांच वर्ष में केवल एक बार ही वोट डालना होगा, जिससे मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित निर्णय के साथ बढ़ेगी।
उच्चस्तरीय समिति ने चुनाव दो चरण में कराने, पहले चरण में लोक सभा और विधानसभा तथा दूसरे चरण में, लोक सभा और विधानसभा चुनाव के सौ दिन के अंदर, नगरपालिका और पंचायत चुनाव कराने की सिफारिश की है। समिति ने यह भी कहा है कि एक देश एक चुनाव लागू होने पर किसी कारणवश लोक सभा दो वर्ष में ही भंग हो जाता है तो नई सरकार की कार्यकाल तीन वर्ष की ही होगी, उसी प्रकार विधान सभाओं के लिए नई चुनाव होते हैं तो विधान सभाओं का कार्यकाल लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल तक रहेगा, यदि वह समय पूर्व भंग नहीं हुई हो। समिति ने निर्वाचन आयोग की सलाह से एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र की व्यवस्था एव संविधान में आवश्यक संशोधन करने का सुझाव दिया है।
————————