जो NET / JRF की परीक्षाएं होती हैं, उनमें एक बिलकुल नया विषय “हिदू स्टडीज” यानि कि हिन्दू अध्ययन नजर आने लगा है। ये हाल ही में जुड़ा विषय है और इसका नाम आपने इसलिए भी सुना होगा क्योंकि कुछ ही दिन पहले कई विश्वविद्यालयों में (विशेषकर दिल्ली विश्वविद्यालय में) इसकी पढ़ाई शुरू होने के कारण ये चर्चा में था। इसका पाठ्यक्रम / सिलेबस आप आसानी से इन्टरनेट से डाउनलोड कर सकते हैं। मैंने लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन में दे दिया है। आप जैसे ही इसके पाठ्यक्रम पर एक नजर डालेंगे, आपका ध्यान जायेगा कि हिन्दुओं के धर्म से सम्बंधित मूल बातें अगर सीखनी हों, तो इस पाठ्यक्रम से अच्छा मार्गदर्शन मिल जाता है। क्या-क्या पढ़ना जरूरी होगा ये पता चल जाता है। यानि सिर्फ NET / JRF दे रहे विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, आम लोग भी जो हिन्दू धर्म में रूचि रखते हैं, वो इसे पढ़कर कुछ सीख सकते हैं। अब यहाँ समस्या ये है कि इसमें जो विषय लिखे हैं, वो किसी एक पुस्तक में नहीं मिलते। ये विषय नया है तो अभी इसपर कोई एक पुस्तक उपलब्ध नहीं है। ऊपर से विषयों का नाम तो लिखा है, लेकिन ये जिस विषय के हैं उनकी बेसिक, पहले स्तर की पुस्तकों का नाम भी पता नहीं। तो इस वीडियो में हमलोग एक विषय “न्याय” को चुनकर उसपर लिखी पुस्तकों की बात करेंगे।

इस पाठ्यक्रम / सिलेबस में जो चौथी और पांचवी इकाइयां हैं, फोर्थ और फिफ्थ यूनिट्स उनमें न्याय शास्त्र की बात की गयी है। विद्यार्थियों को संभवतः पता होगा कि न्याय-वैशेषिक हिन्दुओं के षडदर्शन की दो धाराएं हैं। ये कई मामलों में मिलतेजुलते से होते हैं इसलिए अक्सर साथ ही पढ़े जाते हैं। इनके लिए जो सबसे आरंभिक पुस्तकें हैं, वो हैं “तर्क-भाषा” और “तर्क-संग्रह” जिन्हें अन्नाम्भट्ट की रचना बताया जाता है। बच्चों को “न्याय” और वैशेषिक के सिद्धांत समझने में सुविधा हो, इस उद्देश्य से तर्कसंग्रह की रचना की गयी थी। आप देख सकते हैं कि हिंदी अनुवादों और टीका के साथ भी ये कोई बहुत मोटी किताबें नहीं होतीं। चौखम्भा प्रकाशन से ये तर्कसंग्रह मुश्किल से पचास रुपये में और तर्क-भाषा जिसमें आचार्य विश्वेश्वर की टिप्पणी है, वो 145 रुपये में उपलब्ध है। ये ग्रन्थ न्याय-वैशेषिक का कितना महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, इसका अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि सत्रहवीं शताब्दी में लिखे गए इस ग्रन्थ की 90 टीकाएँ उपलब्ध हैं।

द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायाभावाः सप्त पदार्थाः ।

यानि कि (1) द्रव्य, (2) गुण, (3) कर्म, (4) सामान्य, (5) विशेष, (6) समवाय, तथा (7) अभाव – ये सात पदार्थ तर्कसंग्रह के प्रतिपाद्य विषय हैं। तो आचार्य विश्वेश्वर की तर्कभाषा पर जो हिंदी टीका है, उसे पढ़ने से चौथी और पांचवी इकाई के अधिकांश भाग आपको मिल जायेंगे।

 

अब देखा जाए कि इससे आगे क्या होता है? हो सकता है “न्याय” दर्शन में आपकी अधिक रूचि हो। शास्त्र-विश्लेषण की भारतीय पद्दति – प्रमाता, प्रमाण, प्रमेय और प्रमा के बारे में आप अधिक जानना चाहते हों, तो ऐसे में आपको अंग्रेजी में आने वाले सतीशचन्द्र चटर्जी की लिखी हुई “द न्याय थ्योरी ऑफ नॉलेज” से मदद मिल जाएगी। ये कोई नयी पुस्तक नहीं, कई साल पहले लिखी गयी थी। जो पांचवी इकाई, फिफ्थ यूनिट था, उस पर कुछ वर्ष पहले राधावल्लभ त्रिपाठी जी की लिखी हुई “वाद इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस” आई है। इन विषयों की जानकारी के लिए इन्हें भी पढ़ा जा सकता है। जैसा की चौखम्भा वाली पुस्तकों के साथ था, इन पुस्तकों के साथ वैसा नहीं है। न तो ये बड़ी दुबली-पतली हैं, न ही इनका मूल्य बहुत कम है। अगर आप न्याय शास्त्र में विशेष जानकारी चाहते हैं, तभी आपको इनकी आवश्यकता होगी। अन्यथा आप किसी लाइब्रेरी से इन्हें लेकर पढ़ सकते हैं।

 

न्याय शास्त्र के बारे में जैसा कि आपको पता होगा, अक्षपाद गौतम ऋषि इसके प्रवर्तक थे और उन्होंने जो न्याय सूत्र लिखे, उन्हीं से इस विषय का विधिवत अध्ययन आरंभ हुआ माना जा सकता है। उनके न्यायसूत्र पर जो सबसे प्रतिष्ठित अनुवाद और भाष्य जैसा है, वो महामहोपाध्याय गंगानाथ झा का लिखा हुआ है। ये चार भागों में आने वाला करीब ढाई हजार पन्नों का ग्रन्थ है। अगर आप बहुत विस्तार में जानना चाहते हैं, विषय में अत्यधिक रूचि है तो आज नहीं तो कल आप इस ग्रन्थ तक पहुँच जायेंगे। ये ध्यान रखिये कि अगर आप केवल NET/JRF की तैयारी में हैं तो तर्कसंग्रह-तर्कभाषा आपके लिए प्रयाप्त है और इन सभी ग्रंथों पर खर्च करने लायक पैसे जुटाना भी किसी विद्यार्थी के लिए मुश्किल होगा। इन्हें पूरा पढ़ जाने में जो समय खर्च होगा वो तो होगा ही। यानि विद्यार्थी हैं तो इन ग्रंथों को रहने दीजिये, शुरू में जो तर्कसंग्रह और तर्कभाषा बताया, उतने से उचित समयसीमा में आपकी पढ़ाई हो जाएगी। हाँ अगर प्रमाणिक ग्रंथों की बात करें तो न्यायसूत्र पर ही नहीं, कई अनुवादों के मामले में महामहोपाध्याय गंगानाथ झा की पुस्तकें प्रमाणिक मानी जाती हैं। तर्कभाषा के लिए आचार्य विश्वेश्वर के अलावा केशव मिश्र की टीका का अनुवाद देख सकते हैं जो कि करीब 550-600 पन्नों की होती है।

 

इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार पाठ्यक्रम यानि डिस्टेंस मोड़ में जो पुस्तकें आती हैं, उनमें हिंदी में करीब सौ पन्नों का एक बुकलेट है जिससे ये पाठ्यक्रम पूरा पढ़ा जा सकता है। आर्काइव लिंक पर डाउनलोड के लिए ये पुस्तकें उपलब्ध हैं। उम्मीद है इतने से आप इस विषय की पढ़ाई शुरू कर पाएंगे। चूँकि NET / JRF के पाठ्यक्रम में दस इकाइयां, यूनिट्स हैं, इसलिए हमलोग अलग अलग इकाइयों के लिए कौन सी पुस्तकों से जानकारी मिलेगी, इसकी चर्चा शुरुआत के कुछ वीडियो में कर लेंगे। अगर आपको न्यायशास्त्र की कोई और पुस्तक या पुस्तकें अधिक पसंद हो, बेहतर लगी हों, तो उनका लिंक आप कमेंट में डाल सकते हैं। आपके प्रश्नों का, जिज्ञासा का और आलोचना का भी स्वागत रहेगा, जो भी हो वो कमेंट में जरूर छोड़ दें। अगली चर्चा में फिर मिलते हैं, धन्यवाद!

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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