अत्यंत विचारणीय ✍🏻

एक आदमी ने एक विज्ञापन दिया कि उसे उसकी चिन्ता करने वाला एक आदमी चाहिये। वेतन वो जो मांगेगा, मिलेगा।
विज्ञापन देखकर एक बेरोजगार तुरंत उसके पास गया और उसने उसके लिये चिन्ता करने वाली नौकरी के लिये 10000/ महीना सैलरी की मांग की। विज्ञापन देने वाले ने उसे 10000/ देना स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम अभी से अपनी नौकरी शुरु कर सकते हो।

नौकरी शुरु हो गई। अब मालिक ने उसे अपनी सारी चिंताएं बता दी।
मेरी महिने की आमदनी 50000है।
बच्चों की फिस 10000 महीना है।
मकान का भाडा 15000 महीना है।
घर का खाने पीने पर खर्च 15000 है।
मेरे रोज ऑफ़िस जाने का खर्च महिने भर का 5000 है।
धोबी का खर्च महिने का 3000 है।
काम वाली बाई को 2000 महीना देना होता है।
महिने मे एक बार हमलोग कहीं घुमने जाते हैं उसमे कम से कम 5000/ लग जाता है।
अब चिन्ता करने वाला आदमी से बर्दाश्त नही हुआ, उसने कहा: मालिक आपका अभी तक का खर्च 55000 है और अभी आपने मेरा 10000सैलरी उसमे नही बताया है तो सब लेकर 65000हो गए, आमदनी आपकी 50000है, बाकी पैसा कहाँ से लाएंगे?
मालिक ने कहा उसी के लिये तो तुम्हे रखा है, अब तुम 10000ले रहे हो मेरी सारी चिन्ता करने के लिये तो मै क्यों चिन्ता करुँ, अब ये चिन्ता तुम करो कि बाकी पैसा कहाँ से आएगा।

नेताओं द्वारा खैरात बांटने की भी चिन्ता देशवासियों को ही करनी होगी क्योंकि नेता अपनी जेब से किसीको एक धेली नही देंगा।
सारा पैसा हम देशवासियों से ही लिया जाएगा। टैक्स बढ़ेगा, फिर महंगाई बढेगी और देश का गरीब और निम्न मध्यम वर्ग उस महंगाई और टैक्स की चक्की में पिसेगा।

देखियेगा कहीं 10000 महीना पाने के लालच में उस पैसे की व्यवस्था की चिन्ता में आप भी न पड़ जायें।

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