22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इस दिन श्री अयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है।

सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिया गया है। इस भव्य मंदिर को त्रिभुवन का मंदिर भी कहा जा रहा है। तमिलनाडु के एक बड़े अधिकारी, जो कला के जानकार हैं, का तो यह भी कहना है कि इस प्रकार की नक्काशी से सज्जित मंदिर शायद पिछले 1000 वर्षों में तो बनता हुआ नहीं दिखाई दिया है। इस मंदिर में प्रभु श्रीराम के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के समय लगभग समस्त समाज के लोग पूजा सम्पन्न कराने के उद्देश्य से बिठाए गए थे। पूजा सम्पन्न कराने के लिए माननीय पंडितों को देश के लगभग समस्त राज्यों से लाया गया था। देश में लगभग 150 संत महात्माओं की परम्पराएं हैं जैसे गुरु परम्परा, दार्शनिक परम्परा आदि। ऐसी समस्त परम्पराओं के संत महात्माओं की भागीदारी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में रही। साथ ही, सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों के प्रमुख नागरिकों की भी इस समारोह में भागीदारी रही, जैसे खेल, साहित्य, लेख, कला, मीडिया, प्रशासन, आदि। कुल 18 श्रेणियों के नागरिकों को इस समारोह में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया था। जिन लगभग 4000 श्रमिकों ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था उनमें से 600 श्रमिकों, इंजीनीयरों एवं सुपर्वायजर आदि की भी इस कार्यक्रम में भागीदारी करवाई गई। 22 जनवरी 2024 के पवित्र दिन श्रीअयोध्या धाम के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 60 चार्टर हवाई जहाज आए थे। कुल मिलाकर व्यवस्थाएं इतनी अच्छी थीं कि किसी भी नागरिक को श्री अयोध्या धाम में प्रवेश करने में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं हुई थी। मंदिर परिसर में भी समस्त नागरिकों को अपनत्व लगा था। ऐसा लगा कि स्वर्ग में पहुंच गए हैं एवं मंदिर परिसर में दैवीय अनुभूति हुई। आज भारत एवं अन्य देशों से लगभग 2 लाख श्रद्धालु प्रभु श्रीरामलला के दर्शन हेतु श्री अयोध्या धाम प्रतिदिन पहुंच रहे हैं।

दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को नागपुर में सम्पन्न हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में प्रभु श्रीराम मंदिर के निर्माण पर एक प्रस्ताव पास किया गया है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि भारत में सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने “स्व” को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। अब जब प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है अतः अब भारत के समस्त नागरिकों के संदर्भ में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह सुविचरित मत है कि सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले, इससे राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य सार्थक होगा। प्रभु श्रीराम के जीवन में परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही प्रभु श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी। इसी दृष्टि से, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा समस्त भारतीयों का आह्वान करती है कि बंधुत्व भाव से युक्त, कर्तव्य निष्ठ, मूल्य आधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करने वाले समर्थ भारत का निर्माण करें, जिसके आधार पर वह एक सर्व कल्याणकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर सकेगा। यदि भारतीय समाज एक होगा तो भारत को पुनः एक बार विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने में आसानी होगी।

श्री अयोध्या धाम में नव निर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने न केवल भारतीय समाज को एक किया है बल्कि इससे भारत की आर्थिक प्रगति में चार चांद लग रहे हैं। देश में धार्मिक पर्यटन की जैसे बाढ़ ही आ गई है। न केवल भारतीय नागरिक बल्कि अन्य देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग भी प्रभु श्री राम के दर्शन करने हेतु श्री अयोध्या धाम पहुंच रहे हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के लाखों नए अवसर विकसित हो रहे हैं। भारतीय समाज में एकरसता आने से भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न त्यौहारों को भी बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है जिससे आपस में भाईचारा बढ़ता दिखाई दे रहा है। यदि मां भारती को विश्व गुरु बनाना है तो भारत में निवास कर रहे समस्त नागरिकों में एकजुटता स्थापित करनी ही होगी। भारत में मजबूत राजनैतिक स्थिति, मजबूत लोकतंत्र, मजबूत सामाजिक स्थिति, मजबूत सांस्कृतिक धरोहर होने के चलते विश्व के अन्य देशों का भारतीय सनातन संस्कृति पर विश्वास बढ़ रहा है जिसे भारत के वैश्विक स्तर पर पुनरुत्थान के रूप में देखा जा सकता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी भी अपने एक उदबोधन में कहते हैं कि राम राज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन शास्त्रों में मिलता है, उसी का आचरण आज हमें करना चाहिए क्योंकि हम भी इस गौरवमय भारतवर्ष की संताने हैं। आज हमें राम राज्य के समय नागरिकों द्वारा किए जाने वाले आचरण को अपनाने हेतु तप करना पड़ेगा, हमको समस्त प्रकार के कलह को विदाई देनी पड़ेगी। समाज में आपस में अलग अलग मत हो सकते हैं, छोटे छोटे विवाद हो सकते हैं, इन्हें लेकर आपस में लड़ाई करने की आदत छोड़ देनी पड़ेगी। राम राज्य के समय नागरिकों में अहंकार नहीं हुआ करता था वे बगैर अहंकार के आपस में मिलजुलकर काम करते थे। श्रीमद् भागवत में बताया गया है कि जिन चार मूल्यों की चौखट पर धर्म का निवास रहता है, वे चार मूल्य हैं – सत्य, करुणा, सुचिता और तपस। राम राज्य में इन मूल्यों का अनुपालन नागरिकों द्वारा किया जाता था।

श्री भागवत जी आगे कहते हैं कि आज की परिस्थितियों के बीच नागरिकों द्वारा आपस में समन्वय रखकर व्यवहार करना यह धर्म का ही प्रथम पायदान है। दूसरा कदम माना जाता है धर्म का आचरण अर्थात सेवा और परोपकार करना। केंद्र सरकार एवं अन्य कई राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही कई योजनाएं गरीबों को राहत दे रही है। आज इस संदर्भ में सब कुछ हो रहा है लेकिन भारत के नागरिक होने के नाते हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है। इस समाज में जहां दुःख दिखाई दे, पीड़ा दिखाई दे, वहां हम दौड़ कर सेवा करने पहुंचे, यह सभी हमारे अपने बंधू ही तो हैं। हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि दोनों हाथों से कमाएं जरूर, परंतु अपने लिए न्यूनतम आवश्यक राशि रखकर शेष सारा पैसा सेवा और परोपकार के माध्यम से समाज को वापिस कर दें। सुचेता पर चलना यानी पवित्रता होनी चाहिए और पवित्रता के लिए संयम होना चाहिए। लोभ नहीं करना, संयम में रहना और शासन द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना, अपने जीवन में अनुशासित रहना, अपने कुटुंब को अनुशासन में रखना, अपने समाज में अनुशासन में रहना तथा सामाजिक जीवन में नागरिक अनुशासन का पालन करना आदि कुछ ऐसे नियम हैं जिनके अनुपालन से भारत को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई जा सकती है।

By Prahlad Sabnani

लेखक परिचय :- श्री प्रह्लाद सबनानी, उप-महाप्रबंधक के पद पर रहते हुए भारतीय स्टेट बैंक, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई से सेवा निवृत हुए है। आपने बैंक में उप-महाप्रबंधक (आस्ति देयता प्रबंधन), क्षेत्रीय प्रबंधक (दो विभिन्न स्थानों पर) पदों पर रहते हुए ग्रामीण, अर्ध-शहरी एवं शहरी शाखाओं का नियंत्रण किया। आपने शाखा प्रबंधक (सहायक महाप्रबंधक) के पद पर रहते हुए, नई दिल्ली स्थिति महानगरीय शाखा का सफलता पूर्वक संचालन किया। आप बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई में मुख्य प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। आपने बैंक में विभिन पदों पर रहते हुए 40 वर्षों का बैंकिंग अनुभव प्राप्त किया। आपने बैंकिंग एवं वित्तीय पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं एवं विभिन्न बैंकिंग सम्मेलनों (BANCON) में शोधपत्र भी प्रस्तुत किए हैं। श्री सबनानी ने व्यवसाय प्रशासन में स्नात्तकोतर (MBA) की डिग्री, बैंकिंग एवं वित्त में विशेषज्ञता के साथ, IGNOU, नई दिल्ली से एवं MA (अर्थशास्त्र) की डिग्री, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की। आपने CAIIB, बैंक प्रबंधन में डिप्लोमा (DBM), मानव संसाधन प्रबंधन में डिप्लोमा (DHRM) एवं वित्तीय सेवाओं में डिप्लोमा (DFS) भारतीय बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान (IIBF), मुंबई से प्राप्त किया। आपको भारतीय बैंक संघ (IBA), मुंबई द्वारा प्रतिष्ठित “C.H.Bhabha Banking Research Scholarship” प्रदान की गई थी, जिसके अंतर्गत आपने “शाखा लाभप्रदता - इसके सही आँकलन की पद्धति” विषय पर शोध कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप तीन पुस्तकों के लेखक भी रहे हैं - (i) विश्व व्यापार संगठन: भारतीय बैंकिंग एवं उद्योग पर प्रभाव (ii) बैंकिंग टुडे एवं (iii) बैंकिंग अप्डेट (iv) भारतीय आर्थिक दर्शन एवं पश्चिमी आर्थिक दर्शन में भिन्नता: वर्तमान परिपेक्ष्य में भारतीय आर्थिक दर्शन की बढ़ती महत्ता latest Book Link :- https://amzn.to/3O01JDn

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