युवावस्था की शुरुआत में, या कहिये स्कूल से निकलकर जैसे ही लोग कॉलेज पहुँचते हैं, वैसे ही उनका सामना कई नए लोगों से होता है। इनमें से कुछ अच्छे होते हैं, लेकिन सभी नहीं। कुछ ऐसे भी होते हैं, जो केवल आपका फायदा उठाना चाहते हैं। ऐसा नहीं कि कम अच्छे लोग सिर्फ कॉलेज में ही मिलेंगे, आगे नौकरी करते समय, जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी ऐसे कुछ लोगों से मुलाकात होती रहेगी। जितनी जल्दी आप ऐसे लोगों को पहचान कर उनसे दूर होना सीख लेते हैं, उतनी जल्दी आप असफलता के कारणों से, आपकी उर्जा किसी वैम्पायर की तरह चूस जाने वालों से बचना सीख जाते हैं। ये आपको अपने फायदे के लिए मैनिपुलेट कर रहे होते हैं। ऐसे मैनीपुलेटर्स पहचाना कैसे जाए? आसान है! आप इन्हें इनकी हरकतों से पहचान सकते हैं।

इनकी तकनीकों में से पहला है “गैसलाइटिंग”। गैस-लाइटिंग आपने किसी पुरानी फिल्म में देखा होगा। जैसे कि “बेटा” फिल्म में नायक अनिल कपूर की सौतेली माँ उसे पागल साबित किये रखना चाहती है। इसलिए वो उसे पढ़ाई में कमजोर, दवा के बिना सो न पाने वाला, मंदबुद्धि सा साबित किये रखती है। गैस-लाइटिंग करने वाला झूठ बोलकर, आधी खबर देकर, किसी बहाने से आपको मानसिक रूप से कमजोर, भूलने वाला, सही तरीके से बातों को न समझ पाने वाला, अयोग्य मानसिक स्थिति का, साबित किये रखना चाहता है। अगर कोई सिखा रहा हो कि आप ये नहीं कर सकते इसलिए वो आपकी मदद करके, बार-बार आपके बदले काम करके आपपर एहसान कर रहा है तो संभल जाइये। सोचकर देखिये, कहीं ये गैस-लाइटिंग तो नहीं? इनसे बचने का तरीका इन्हें अनसुना करके दूर हटना ही है।

 

मैनीपुलेटर की दूसरी तकनीक “विक्टिमहुड” होती है। गलती भले ही उसकी रही हो, जिसकी उसे उचित सजा मिली हो, लेकीन वो खुद को विक्टिम, पीड़ित-शोषित दिखाएगा। आप भले बनकर, स्वाभाववश उसकी मदद कर देंगे और असल में वो आपका फायदा उठा रहा होगा। विक्टिम कार्ड चलाने वाले हर स्थिति में खुद को पीड़ित बताते हैं। उनके माता-पिता मारते-पीटते थे, पढ़ाई में मदद नहीं की, कॉलेज अच्छा नहीं मिला, जाति-धर्म या रंग की वजह से भेदभाव होता है! हर स्थिति में वो पीड़ित-शोषित होते हैं और उनसे कम अच्छे लोगों को बेहतर किस्मत की वजह से फायदा हो जाता है। असल में विक्टिम कार्ड चलाने वाले केवल आपके भले मानस होने का फायदा उठा रहे होते हैं। इनसे बचने का तरिका ये है कि भावनात्मक रूप से इनसे कोई जुड़ाव न रखें और जो कहीं गलती से ऐसा सम्बन्ध बना लिया हो तो फौरन उससे दूर हो जाएँ।

 

तीसरा तरीका जो मैनीपुलेटर्स इस्तेमाल करते हैं, वो है “गिल्ट ट्रिपिंग”। किसी भी इन्सान से गलती तो होती ही है। हो सकता है आपने उसे कभी डांट दिया हो, उस गलती की याद दिलाकर “गिल्ट ट्रिपिंग” करने वाले आपसे फिल्म का टिकट, कोई गिफ्ट लेने की कोशिश कर सकते हैं। आपके किसी सस्ते जूते की याद ऐसी जगह दिलाकर, जहाँ आप शर्मिंदा हो जाएँ, वो अपने आप को एलीट सिद्ध करने की कोशिश कर सकते हैं। आपने कभी फोन नहीं उठाया था, इसके लिए “गिल्ट ट्रिपिंग” करने वाले का कहना होगा कि “तुम तो मेरी जरुरत के वक्त मेरे पास ही नहीं होते”! ऐसा वो एक बार नहीं, बार-बार कर रहे होते हैं। ऐसे लोगों से मुलाकात होने पर याद रखिये कि सहानुभूति और समानुभूति जरूरी बातें हैं, लेकिन सोचिये की क्या अन्दर से आपको अच्छा नहीं लग रहा? मन क्या कह रहा है? संभव है कि अंतरात्मा ऐसे लोगों से दूरी बनाने कहती होगी।

 

मैनीपुलेटर्स का चौथा तरिका “प्रेटेंडिंग इग्नोरेंस” होता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे “येड़ा बनकर पेड़ा खाना” कहते हैं। गलत बर्ताव करने पर वो कहेंगे मुझे तो पता ही नहीं चला, या मुझे अंदाजा ही नहीं था कि इस बात का बुरा भी लग सकता है। कोई काम आता ही नहीं, ऐसा दर्शा कर वो दूसरों से अपना काम करवा लेना चाहेंगे। याद रखिये कि कोई व्यक्ति क्या सोच रहा था, इसका अनुमान आप नहीं लगा सकते। आप किसी और के दिमाग में घुसे नहीं बैठे होते जो ये समझ लें कि वो क्या सोच रहा होगा या होगी। वो कर क्या रहा है, या रही है, उसके आधार पर फैसले लेना सीखिए। ऐसे लोगों के काम का बोझ अपने सर लेना जरूरी नहीं है।

 

मैनीपुलेटर्स का पांचवा तरीका है “नेगेटिव ह्यूमर”। ये हंसी-मजाक की शक्ल में बोले गए ऐसे वाक्य है, जिनका असली मकसद चोट पहुंचाना या नीचा दिखाना होता है। किसी काम में आपसे गलती हो गयी हो, उसका मजाक बना लेना एक तरिका हो सकता है। किसी के रंग-रूप जैसे सांवले-टकले-मोटे-पतले होने का मजाक उड़ाना एक तरिका होगा। किसी के राजनैतिक रुझान के लिए उसे “भक्त” बुलाना शुरू कर देना “नेगेटिव ह्यूमर” का एक तरीका है। जब इससे सामना हो तो मुस्कुराइए, दिमाग ठंडा रखिये। बिना तैश में आये वापस सवाल करना शुरू कीजिये और स्पॉटलाइट जैसे ही “नेगेटिव ह्यूमर” चलाने वाले मैनीपुलेटर पर जायेगा, लोगों को उसका बर्ताव, उसकी दुष्टता दिखने लगेगी, वो खुद ही भाग खड़ा होगा।

 

छठा तरिका “प्रोजेक्शन” भी मैनीपुलेटर्स इस्तेमाल करते हैं। इसे दूसरे के मुंह में अपने शब्द ठूंसने से समझ सकते हैं। जैसे बातचीत के दौरान आपने कभी कभी न्यूज़ एंकर या होस्ट को अपने शब्द किसी नेता किसी गेस्ट के मुंह में ठूंसने की कोशिश करते देखा होगा, वैसा ही भावना या आदतों के साथ भी होता है। कोई खुद कामचोर हो, दूसरों को कामचोर घोषित करता रहे, या खुद झूठ बोलने की आदत हो, और दूसरों को झूठ बोलने वाला बताता रहे, ये सब “प्रोजेक्शन” है। जैसे कोई खुद रिसेप्शनिस्ट या किसी और लड़की को घूरता हो और आपसे कहे “बेटा तुम भी तो नापते हो”! ये प्रोजेक्शन है। ऐसा व्यक्ति आपकी छवि धूमिल करेगा, इमेज ख़राब करेगा, उसकी बात पर कोई सफाई न दें, सीधा वहाँ से हट जाएँ।

 

आपको मैनिपुलेट करने का सातवां तरिका है “कांस्टेंट क्रिटिसिज्म” यानि लगातार खोट निकालना। अगर किसी को सिर्फ आपकी गलतियां ही गलतियाँ दिखाई देती हों, तो ऐसे व्यक्ति से सम्बन्ध रखना अच्छा तो नहीं हो सकता। ऐसा करके वो आपको नीचा दिखा रहा होगा और खुद महान बन रहा होगा। लम्बे समय तक अगर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहे तो आपका आत्मविश्वास जाता रहेगा। बेहतर है कि जितनी जल्दी हो सके उनसे दूर हटें और अपने जीवन में आगे बढ़ें।

 

करीब-करीब ये सारे ही लक्षण वामपंथियों में होते हैं। आजकल वो खुद को मार्क्सवादी या वामपंथी नहीं बताते, वो स्वयं को लिबरल बताने लगे हैं। कॉलेज की शुरुआत में ऐसे सीनियर, प्रोफेसर मिलेंगे, और हो सकता है ऐसे मित्र भी बन जाएँ जो खुद को लिबरल बताते हों। उनकी मैनीपुलेटर्स वाली हरकतों से आप पहचान लेंगे कि वो आपकी तरक्की की राह में रोड़ा हैं। अगर जीवन में तरक्की करना है तो उन्हें पहचानना और उनसे दूर होना भी सीखना होगा। उम्मीद है मैनीपुलेटर्स की ये पहचान आपके काम आयेगी।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *