मतदाता सूची के गहन पुनः निरीक्षण में आज फॉर्म भरने का अंतिम दिन है।
जिन लोगों ने भी फॉर्म नहीं भरा है,
वो या तो अपने बीएलओ से संपर्क करें
या फिर चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जाकर अपने फॉर्म की स्थिति की जांच कर लें।
अगर नहीं भरा गया हो,
तो आप स्वयं भी उसको ऑनलाइन जमा कर सकते हैं
या फिर किसी साइबर कैफे की शरण ले सकते हैं।
मामूली खर्च पर वो आपका फॉर्म जमा कर देंगे।
मोदी जी के इस नए भारत में आपको आपका अधिकार खैरात में नहीं,
बल्कि इसके लिए आपको जूझना पड़ेगा।
पहले जैसे ही आप अठारह वर्ष के होते थे,
आपके गांव के लोग, आंगनबाड़ी में काम करने वाले लोग
या फिर ग्रामीण ही आपके कहने पर
बिना किसी दस्तावेज़ के आपका नाम मतदाता सूची में डलवा देते थे।
मगर अब ऐसा नहीं होने वाला है
क्योंकि मौजूदा सरकार और आयोग को लगता है
कि हम विकासशील देश से विकसित देश बन चुके हैं।
चुनाव आयोग ये भी सोचता है
कि अब सबके पास दस्तावेज़ होंगे ही।
गहन पुनः निरीक्षण में मनमाने ढंग से फॉर्म भरे गए,
बीएलओ ने खुद ही हस्ताक्षर करके फॉर्म भरे —
ऐसा अजीत अंजुम की रिपोर्ट में साफ-साफ आप देख सकते हैं।
साथ ही हमसे भी कुछ लोगों ने संपर्क किया कि
“मेरा फॉर्म भर दो ऑनलाइन।”
हमने जब स्थिति जांच की तो पता चला
कि उनका फॉर्म पहले ही भरा जा चुका है —
जो कि एक फर्जीवाड़ा है।
तीस जून को एक और अधिसूचना आई थी चुनाव आयोग की
जिसमें कहा गया था —
जिनके माता-पिता का नाम दो हजार तीन की वोटर लिस्ट में उपलब्ध है,
उन्हें भी अपने माँ-बाप का कोई प्रूफ नहीं जमा करना है।
मगर यह विकल्प न तो ऑनलाइन फॉर्म में जोड़ा गया
और न ही ऑफलाइन में।
ये भी जल्दबाज़ी और हड़बड़ाहट की वजह से हुआ।
बड़ा सवाल यह है कि इतनी जल्दी में क्यों है आयोग?
टाइमिंग पर सवाल सुप्रीम कोर्ट ने भी उठाया है।
बहरहाल, चुनाव आयोग के आंकड़े जो आए हैं, उसमें दिक्कत क्या है?
विपक्ष इतना बिफरा क्यों है?
तो आइए एक नजर चुनाव आयोग के डाटा पर डालते हैं:
🧮 आयोग के आंकड़े:
• राज्य के कुल मतदाता:
सात करोड़ नवासी लाख उनहत्तर हजार आठ सौ चवालीस
• फॉर्म प्राप्त:
सात करोड़ सोलह लाख चार हजार एक सौ दो
• पते पर अनुपलब्ध:
बावन लाख तीस हजार एक सौ छब्बीस
जिनमें शामिल हैं:
— संभावित मृतक:
अठारह लाख छियासठ हजार आठ सौ उनहत्तर
— मल्टीपल नामांकन:
सात लाख पचास हजार सात सौ बयालीस
— स्थानांतरित मतदाता:
छब्बीस लाख एक हजार इकतीस
— पता नहीं चला:
ग्यारह हजार चार सौ चौरासी
📅 आगे की समयरेखा:
• पच्चीस जुलाई: फॉर्म भरने की अंतिम तिथि
• एक अगस्त: ड्राफ्ट वोटर लिस्ट प्रकाशित होगी
• एक सितंबर तक: आपत्तियाँ दर्ज करने और सुधार कराने का मौका
पते पर अनुपलब्ध लोगों का क्या होगा?
इन बावन लाख से ज्यादा मतदाता कहाँ गए?
इसका पता करना किसकी जिम्मेदारी है?
संभावित मृतक अठारह लाख से ज्यादा हैं —
ये “संभावना” क्यों है? आंकड़े ठोस क्यों नहीं हैं?
मल्टीपल नामांकन सात लाख से ज्यादा हैं —
तो आयोग किस पते पर नाम काट रहा है?
स्थानांतरित मतदाता छब्बीस लाख से ऊपर हैं —
तो क्या जहाँ वो माइग्रेट होकर गए हैं,
वहाँ उन्होंने अपना नाम मतदाता सूची में डलवा लिया है?
पता नहीं चला — ग्यारह हजार से अधिक —
इसका पता कौन लगाएगा?
मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक जुलाई को कहा था
कि किसी भी व्यक्ति को सिर्फ उसी निर्वाचन क्षेत्र से
अपने को मतदाता के रूप में पंजीकृत कराना चाहिए
जहां का वह सामान्य निवासी है।
लोक प्रतिनिधित्व कानून किसी व्यक्ति को
सिर्फ सामान्य निवास वाले क्षेत्र में ही मतदान का अधिकार देता है।
उन्होंने उदाहरण भी दिया –
जैसे यदि आप सामान्य तौर से दिल्ली में रहते हैं
पर आपका निजी घर पटना में है
तो आपका वोट दिल्ली में होना चाहिए, न कि पटना में।
अब इसमें दिक्कत क्या है?
तो सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि जो लोग बाहर जाकर फोक्चा और समोसा बेच रहे हैं…
जो लोग बाहर जाकर झुग्गी झोपड़ी में रह रहे हैं…
कोई रिक्शा चला रहा है, कोई ठेला…
इन लोगों का राशन कार्ड बाहर में बनना मुश्किल है।
पते का दस्तावेज़ ही नहीं है।
फिर ये वहाँ के वोटर कैसे बन सकते हैं?
क्या आयोग ने इसके लिए कोई पहल की?
क्या कोई जागरूकता अभियान या
फिर उनको चिह्नित करने का काम किया?
हमें तो इस बात की जानकारी नहीं है।
बहुत सारे लोग होटल इंडस्ट्री में काम करते हैं
जहाँ पर उन्हें रहना खाना मुफ्त में मिल जाता है।
ऐसे लोग अपना नाम घर के राशन कार्ड से नहीं कटवाते
क्योंकि अगर चार लोगों का परिवार है
और तीन लोग ही रह रहे हैं
तो उन्हें कम से कम अधिक राशन तो मिल जाता है।
एसी कमरे में बैठ कर, सूट और बूट पहन कर
नियम गिनवाना ही अफसरशाही है।
जमीनी हकीकत से दूर —
श्री ज्ञानेश कुमार को जमीन पर उतरना चाहिए।
अगर नियमों की बात करें
तो सबसे पहले भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का नाम भी
वोटर लिस्ट से काट देना चाहिए
क्योंकि वो रहते हैं दिल्ली में
और वोट देते हैं अहमदाबाद में।
तो सबसे पहले ये नियम देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर लागू होना चाहिए।
बहरहाल सर, नियम बनाइए जरूर —
मगर इस देश के अंतिम वोटर को ध्यान में रखते हुए।
इसका क्या परिणाम होगा,
इस पर भी चुनाव आयोग को विचार करना चाहिए।
राहुल गांधी ने एक बार कहा था —
“ये सरकार सूट और बूट की है…”
आज वही बातें जीवंत होती नजर आ रही हैं।
बहरहाल, मामले पर हम नज़र बनाए हुए हैं।
इससे संबंधित जो भी अपडेट होगा
वो हम आपको बताते रहेंगे।
वीडियो अगर पसंद आए तो अपने दोस्तों में शेयर करें
और कम से कम हमें सब्सक्राइब ज़रूर कर लें।
धन्यवाद।
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का नाम वोटर लिस्ट से कट सकता है?
चुनाव आयोग के नए नियमों के अनुसार कोई भी व्यक्ति वहीं वोट डाल सकता है जहाँ वह सामान्य रूप से रहता है।
तो क्या नियम सब पर बराबरी से लागू होगा?
देखिए पूरी रिपोर्ट, ग्राउंड रियलिटी और अजीत अंजुम की पड़ताल।
#VoterList #ModiShah #ElectionCommission #BLO #AjitAnjum #AwareNews
आज है मतदाता सूची के गहन पुनः निरीक्षण में फॉर्म भरने की अंतिम तिथि। अगर आपने अब तक फॉर्म नहीं भरा है, तो यह वीडियो आपके लिए बेहद ज़रूरी है।
इस रिपोर्ट में हम बात कर रहे हैं:
✔ मतदाता सूची से लाखों नाम कैसे गायब हुए?
✔ चुनाव आयोग की गड़बड़ियों पर विपक्ष का हमला
✔ अजीत अंजुम की रिपोर्ट से सामने आए फर्जीवाड़े
✔ प्रवासी मजदूरों, गरीब तबकों का नाम क्यों कट रहा है
✔ सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की समय-सीमा पर उठते सवाल
✔ और क्या ये नियम प्रधानमंत्री मोदी पर भी लागू होते हैं?
📅 जरूरी तारीखें:
फॉर्म भरने की अंतिम तिथि: 25 जुलाई
ड्राफ्ट सूची जारी: 1 अगस्त
सुधार की अंतिम तिथि: 1 सितंबर
👉 देखें, सोचें और अपने मतदाता अधिकार को समझें।
📢 वीडियो शेयर करें और सब्सक्राइब ज़रूर करें।
#VoterList2025 #electioncommission #votingrights
#AjitAnjumReport #IndianDemocracy #voterawareness