जिंदगी गुजर जाती है, चलते चलते,
और ढूंढ़ ता रह जाता है इंसान, चंद लोग चलते चलते,
फिर याद आता है,
क्या खोया क्या पाया, चलते चलते।

जिंदगी बनाने चला था,
अपना घर छोड़कर,
अपना घर छूट गया चलते चलते।

घर, परिवार, रिश्तेदार, दोस्त,
सब पीछे छूट गए चलते चलते,
जिनके साथ यूंही गुजर जाता था दिन चलते चलते।

अभी भी याद हैं, वो सड़कें,
जहां चंद यार, चार चांद लगा देते थे, चलते चलते,
जिंदगी के धुएं में, खो गए वो चंद लोग, चलते चलते।

कितना कुछ खोता है आदमी,
जिंदगी बनाने के लिए,
और बना न पाता है, चंद लोग, चलते चलते।

मुझे याद है वो इंजीनियरिंग,
जब यारों के साथ, महफिल जमती थी,
दिन रात यूंही गुजर जाते थे, चलते चलते,
अब मिलने को तरस जाते हैं, चलते चलते।

जिंदगी का काम है चलना,
कुछ खोना, कुछ पाना,
पाने की खुशी के लिए, खोने के गम के लिए,
चाहिए चंद लोग चलते चलते।

क्या हैं आपके पास ऐसे चंद लोग,
हैं तो संभाल लीजिए, नहीं तो बना लीजिए चलते चलते।

https://www.youtube.com/watch?v=_gLF38OVrYU&t=33s

By Ankit Paurush

अंकित पौरुष अभी बंगलोर स्थित एक निजी सॉफ्टवेर फर्म मे कार्यरत है , साथ ही अंकित नुक्कड़ नाटक, ड्रामा, कुकिंग और लेखन का सौख रखते हैं , अंकित अपने विचार से समाज मे एक सकारात्मक बदलाव के लिए अक्सर अपने YouTube वीडियो , इंस्टाग्राम हैंडल और सभी सोसल मीडिया के हैंडल पर काफी एक्टिव रहते हैं और जब भी समय मिलता है इनके विचार पंख लगाकर उड़ने लगते हैं

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