rise of nationalism in india

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी नागपुर में आयोजित संघ के शिक्षा वर्ग में दिनांक 1 जून 2023 को अपने विचार रखते हुए कहते हैं कि भारतीय नागरिकों द्वारा भारत के विस्मृत इतिहास का स्मरण करने पर अथवा देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपने प्राणों की आहुति देने वाले महान देशभक्तों की कहानी सुनने मात्र से हमारे हृदय में स्फूर्ति का संचार होने लगता है, हमारे हृदय में स्वाभिमान का भाव जागने लगता है, देश के प्रति गौरव एवं उत्साह की भावना का संचार होने लगता है एवं उन महान बलिदानियों जैसे समर्पण का भाव हममें भी होना चाहिए ऐसी प्रेरणा भी जागती है।

इसी प्रकार, भारत के वर्तमान खंडकाल में भी अपने देश के गौरव के कई प्रसंग आज हम देख रहे हैं। हाल ही में पूरे विश्व में फैली कोरोना महामारी के दौरान विश्व के समस्त देशों के बीच कोरोना महामारी से अपने देश के नागरिकों को बचाने का सबसे अच्छा कार्य भारत में सम्पन्न हुआ है, यह आज पूरा विश्व मान रहा है। भारत की आर्थिक प्रगति आज पूरे विश्व के अन्य देशों के बीच सबसे तेज रफ्तार पकड़ चुकी है। दुनिया में आर्थिक रूप से सबसे अधिक सम्पन्न जी20 समूह के सदस्य देशों की अध्यक्षता आज भारत को मिली हुई है, इसका हम गौरव अनुभव करते हैं। हाल ही में निर्मित नए संसद भवन का उद्घाटन हो गया है और उसमें लगाए गए चित्रों को देखकर हमें आनंद की अनुभूति हो रही है। कुल मिलाकर भारत का सामान्य जन यह सब देखकर अति प्रसन्न हो रहा है कि भारत आगे बढ़ रहा है और पूरे विश्व में भारत की कीर्ति हो रही है।

राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्षों के बाद देश में उक्त सब होते देख कर नागरिकों को सुखद लग रहा है, परंतु देश में कुछ चिंतित करने वाला परिदृश्य भी दिखाई दे रहे है। इसी समय पर देश में कई स्थानों पर कई प्रकार की कलह मची है जैसे, भाषा को लेकर विवाद हो रहा है, पंथ सम्प्रदायों को लेकर विवाद हो रहा है, नागरिकों को मिलने वाली विभिन्न सहूलियतों के लिए विवाद चल रहा है। और, केवल विवाद ही नहीं केवल बल्कि देश के नागरिक आपस में ही लड़ने झगड़ने को तैयार बेठे हैं, आपस में ही हिंसा करते दिखाई दे रहे हैं। भारत की सीमाओं पर हमारी स्वतंत्रता पर बुरी नजर रखने वाले शत्रु बैठे हैं, इन शत्रुओं को हमारा बल दिखाने के बजाय हम आपस में ही लड़ रहे हैं। और, हम यह भूल रहे हैं कि हम एक देश हैं, हम एक जन हैं। उक्त दुर्घटनाओं को हवा देने वाले लोग भी इस देश में ही मौजूद हैं। हमारे देश में प्रजातंत्र है अतः विभिन्न राजनैतिक दल हैं वे आपस एक दूसरे के साथ सत्ता प्राप्ति के लिए स्पर्धा करते रहते हैं। परंतु इस स्पर्धा की मर्यादा होनी चाहिए ताकि देश के गौरव को कोई लांछन न लगे, आपस में लड़ाई झगड़ों को हवा न मिले। परंतु दुर्भाग्य से यह विवेक दिखाई नहीं दे रहा है। सामान्य जन को सब कुछ समझ में आ रहा है, वे दुखी होते हैं परंतु वे बोलते नहीं हैं।

पिछले कुछ समय के दौरान हम नागरिकों के मन में भी कुछ भेद उत्पन्न हुए हैं। जात पात के भेद आए हैं, पंथ सम्प्रदाय को लेकर भेद आए हैं। भारत में तो कुछ सम्प्रदाय बाहर से आए और उनको लाने वाले जो बाहर से थे उनकी भारतीय नागरिकों के साथ लड़ाईयां हुईं, जिसके परिणामस्वरूप वो बाहर वाले तो चले गए लेकिन अब भारत में सब इस देश के ही लोग हैं, जिन्हें उन बाहर वालों का सम्बंध भूलकर इस देश में रहना चाहिए और यदि कोई नागरिक अभी भी उन देशों के प्रभाव में हैं तो वे लोग भी वहां के नहीं बल्कि भारत के ही लोग हैं। यदि इन लोगों के सोच में कोई कमी है तो उनका योग्य प्रबोधन करना हम सबकी जिम्मेदारी है। इसके साथ ही, भारत के बाहर भी भारत को नीचा दिखाने वाले शत्रु मौजूद हैं जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए भारत के लोगों को आपस में लड़ाना चाहते हैं एवं वे अवसर पाकर विभिन्न प्रकार के कुचक्र रचते हुए इन सब बातों को हवा देते रहते हैं। परंतु, समाज को एकजुट रखना, यह हम सबका काम है।

विश्व के कई देशों पर इस्लाम का आक्रमण हुआ स्पेन से मंगोलिया तक। इन देशों में इस्लाम एक तरह से छा गया। परंतु धीरे धीरे इन देशों के लोग जागे और उन्होंने आक्रमणकारियों को परास्त किया। इस प्रकार अपने कार्य क्षेत्र में इस्लाम सिकुड़ गया। अब विदेशी आक्रांता तो इन देशों से चले गए लेकिन इस्लाम की पूजा आज भी भारत में ही सबसे अधिक सुरक्षित चलती है। पूजा पद्धति अलग अलग हो सकती है परंतु हमारी यह मातृभूमि तो एक ही है, इस प्रकार समाज के नाते हम सब इसी देश के हैं, हमारे पूर्वज इस देश के हैं, इस वास्तविकता को हम स्वीकार क्यों नहीं कर पा रहे हैं। हमारी जो विविधता है वह हमारी विशिष्टता है, अतः यह अलगाव का कारण बनना ही नहीं चाहिए। हमारे देश में प्राचीन समय से सबको समन्यवय के साथ चलाने वाली संस्कृति विद्यमान है, उस संस्कृति को आज हम भूल गए हैं।

भारत में हम पहिले आत्म विस्मरण के शिकार हुए बाद में आक्रामकों के शिकार हुए, इस इतिहास को जानना चाहिए। अब वो आक्रमण तो चला गया और आज हमारे बीच है हमारी सबकी उदार संस्कृति, समस्त विविधताओं के बीच मिलकर रहने वाली संस्कृति, हमारे उस पूर्व जीवन का स्मरण और उस हमारी पूर्वज परम्परा का स्मरण। अतः आज भारत में रहने वाले समस्त नागरिकों के लिए भारतीय संस्कारों पर चलने की सबसे अधिक आवश्यकता है। इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि किसी वर्ग की पूजा पद्धति यदि बाहर से आई और हमको उसकी आदत हो गई, हमको अच्छी भी लगती होगी अतः हम उसे नहीं छोड़ेंगे, तो ठीक है। लेकिन देश तो हमारा अपना है पूर्वज तो हम बदल नहीं सकते, इस देश की संस्कृति हमारी संस्कृति है, यह हम सबको जोड़ने वाला मसाला है। अपनी छोटी पहचान के मिट जाने के भ्रमपूर्ण डर से, महान भारतीय संस्कृति से दूर होना, ठीक नहीं है। सनातन भारतीय संस्कृति तो पूरे विश्व के भले की बात करती है, पूरे विश्व को ही एक परिवार मानती है।

भारत पुनः विश्व गुरु बनने के रास्ते पर चल पड़ा है। अतः ऐसे समय में विदेशियों द्वारा भारत में विभिन्न समाजों को आपस में लड़ाने के प्रयास पुनः तेज किए जा रहे हैं इस प्रकार के षड्यंत्रो से हमें आज सावधान रहने की सख्त जरूरत है। आक्रांताओं ने भी यही किया था, अंग्रेजों ने भी यही किया था। क्या हम अपने इतिहास से सबक नहीं लेंगे। इस देश के समस्त समाजों को समझना होगा एवं सतर्क रहना होगा। अपने स्वत्व को बनाए रखना आवश्यक है। क्योंकि स्वत्व के चले जाने से बल चला जाता है, ओज चला जाता है एवं इसके साथ ही समृद्धि भी चली जाती है। अतः वर्तमान में तो देश के समस्त समाजों के समस्त नागरिकों में स्वत्व के भाव को जगाने की सबसे अधिक आवश्यकता है।

कई समाजों अथवा विदेशियों को डर है कि यदि भारतीय समाज एक हो गये तो हमारे ऊपर राज करना प्रारम्भ कर देंगे। भारत का इतिहास तो ऐसा नहीं है। भारत में तो विविधताओं का उत्सव मनाया जाता है और अभी तक का इतिहास साक्षी है कि जिस किसी विविधता का प्रवेश भारत में हुआ उसकी सुरक्षा यहां हुई है। पूर्व में कुछ समाजों को जब सारी दुनिया में मस्तक रखने को जगह नहीं मिली ऐसे समय में अकेला भारत ही था जिसने उन समाजों को आश्रय दिया। पूछिए यहूदियों से, पूछिए पारसियों से। अतः अपने स्वत्व के साथ आज फिर से हम सब लोग मिलकर रह सकते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि जो भारत को अपना मानते है उनके लिए हमारे भारत का स्वत्व, भारत की महान सनातन संस्कृति, हमारी मातृभूमि भक्ति, हमारे पूर्वजों के जीवन के उच्च आदर्श, यह हम सबके साझा हैं। अतः अब समय आ गया है कि भारत के स्व के आधार पर इस जीवन की पुनर्रचना होनी चाहिए। इस स्व के आधार पर ही, हम सदियों से एक रहे हैं। अपनी अपनी रुचि के अनुसार अपने अपने तौर तरीके एवं विचार दृष्टि अलग अलग रह सकती है परंतु राष्ट्रहित में सबको एक ही बनकर रहना है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वर्ष 1925 से भारतीय स्व के भाव को नागरिकों के बीच जगाने का कार्य कर रहा है। अब भारत विश्व के सिरमौर देशों में शामिल होने जा रहा है। अतः आज पूरा विश्व, भारत से नए रास्ते की अपेक्षा रखता है। पूरे विश्व को एकता की राह भारत ही दिखा सकता है। यह क्षमता भारतीय समाजों के नागरिकों में है और इसे पूर्व में भी सिद्ध किया जा चुका है। बस केवल एक दिशा देने की जरूरत है। उस दिशा को अभी भी हम पकड़ नहीं पा रहे हैं। उसके लिए दृष्टि जगानी पड़ेगी, परिश्रम करना पड़ेगा, संस्कार देने पड़ेंगे, परस्पर व्यवहार में संयम बरतना पड़ेगा, विवाद से नहीं संवाद से काम लेना पड़ेगा। केवल बाहर से ही हम अलग दिखते हैं लेकिन अंदर से हम सब एक हैं, भारतवासी हैं, यह भूमि हमारी मातृभूमि है और हम सब भारत मां की संतान हैं। भारतीय संस्कृति की हिन्दू संस्कृति की हमारी विरासत है।

By Prahlad Sabnani

लेखक परिचय :- श्री प्रह्लाद सबनानी, उप-महाप्रबंधक के पद पर रहते हुए भारतीय स्टेट बैंक, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई से सेवा निवृत हुए है। आपने बैंक में उप-महाप्रबंधक (आस्ति देयता प्रबंधन), क्षेत्रीय प्रबंधक (दो विभिन्न स्थानों पर) पदों पर रहते हुए ग्रामीण, अर्ध-शहरी एवं शहरी शाखाओं का नियंत्रण किया। आपने शाखा प्रबंधक (सहायक महाप्रबंधक) के पद पर रहते हुए, नई दिल्ली स्थिति महानगरीय शाखा का सफलता पूर्वक संचालन किया। आप बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई में मुख्य प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। आपने बैंक में विभिन पदों पर रहते हुए 40 वर्षों का बैंकिंग अनुभव प्राप्त किया। आपने बैंकिंग एवं वित्तीय पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं एवं विभिन्न बैंकिंग सम्मेलनों (BANCON) में शोधपत्र भी प्रस्तुत किए हैं। श्री सबनानी ने व्यवसाय प्रशासन में स्नात्तकोतर (MBA) की डिग्री, बैंकिंग एवं वित्त में विशेषज्ञता के साथ, IGNOU, नई दिल्ली से एवं MA (अर्थशास्त्र) की डिग्री, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की। आपने CAIIB, बैंक प्रबंधन में डिप्लोमा (DBM), मानव संसाधन प्रबंधन में डिप्लोमा (DHRM) एवं वित्तीय सेवाओं में डिप्लोमा (DFS) भारतीय बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान (IIBF), मुंबई से प्राप्त किया। आपको भारतीय बैंक संघ (IBA), मुंबई द्वारा प्रतिष्ठित “C.H.Bhabha Banking Research Scholarship” प्रदान की गई थी, जिसके अंतर्गत आपने “शाखा लाभप्रदता - इसके सही आँकलन की पद्धति” विषय पर शोध कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप तीन पुस्तकों के लेखक भी रहे हैं - (i) विश्व व्यापार संगठन: भारतीय बैंकिंग एवं उद्योग पर प्रभाव (ii) बैंकिंग टुडे एवं (iii) बैंकिंग अप्डेट (iv) भारतीय आर्थिक दर्शन एवं पश्चिमी आर्थिक दर्शन में भिन्नता: वर्तमान परिपेक्ष्य में भारतीय आर्थिक दर्शन की बढ़ती महत्ता latest Book Link :- https://amzn.to/3O01JDn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *