“मैं माहवारी के कारण हर महीने कम से कम 3-4 दिन स्कूल नहीं जा पाती थी जिससे मेरी पढ़ाई का काफ़ी नुकसान होता था। लेकिन सहेली कक्ष के निर्माण के बाद अब मुझे कोई समस्या नहीं होती। पीरियड के दौरान जरूरत पड़ने पर मैं वहां कुछ देर आराम कर फिर से कक्षा में बैठ पाती हूं। साथ ही, वहाँ स्थापित वेंडिंग मशीन में 1 रुपये के दो सिक्के डालकर मैं सैनिटरी पैड भी ले सकती हूं।” पूर्णिया जिले के कसबा प्रखंड अंतर्गत आदर्श रामानंद मध्य विद्यालय गढ़बनैली की आठवीं की छात्रा रितु कुमारी ही नहीं बल्कि छठी से आठवीं तक की सभी छात्राएं स्कूल में शुरू हुई इस नई पहल से बेहद ख़ुश एवं संतुष्ट हैं।

आठवीं की ही एक अन्य छात्रा श्रेया सुहानी ने कहा कि किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए सहेली कक्ष में एक जोड़ी स्कर्ट भी रखा रहता है। एमएचएम (मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन) की नोडल शिक्षिका द्वारा आयोजित विभिन्न सत्रों में भाग लेने से हम लड़कियों को पीरियड के दौरान ज़रूरी साफ़-सफ़ाई समेत पोषणयुक्त खानपान के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला है।

सहेली कक्ष के उद्देश्यों के बारे में बात करते हुए यूनिसेफ बिहार के वाश अधिकारी, सुधाकर रेड्डी ने कहा कि यह किशोर लड़कियों को स्कूल के दौरान माहवारी से जुड़ी समस्याओं से बेहतर तरीके से निपटने में मदद करने के लिए स्थापित किया गया है। यदि उन्हें माहवारी के दौरान किसी भी प्रकार की परेशानी हो रही हो तो स्कूल परिसर में एक ऐसा कमरा होना चाहिए जहां वे बिना संकोच जा सकें और स्थिति सामान्य होने तक आराम कर सकें। यदि उन्हें सैनिटरी पैड बदलने की आवश्यकता है, तो वे आसानी से उपलब्ध पैड का भी उपयोग कर सकें। आवश्यकतानुसार वे नोडल शिक्षक से परामर्श भी ले सकती हैं। चूंकि 28 दिनों के औसत मासिक धर्म चक्र में कभी भी माहवारी आ सकती है, इसलिए यह किसी भी आपात स्थिति से निपटने में भी कारगर है।

उन्होंने आगे कहा कि यूनिसेफ, फिया (PHIA – पार्टनरिंग होप इनटू एक्शन) फाउंडेशन और बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के सहयोग से पूर्णिया और सीतामढ़ी जिलों के 20-20 स्कूलों में बेहतर वॉश (जल, सफाई एवं स्वच्छता) सेवाओं के लिए मिलकर काम कर रहा है ताकि उन्हें अनुकरणीय मॉडल के रूप में विकसित किया जा सके। इस संदर्भ में सहेली कक्ष एक महत्वपूर्ण पहल है जो सभी 40 विद्यालयों में अच्छी तरह से चल रहा है।

आवश्यक एमएचएम सुविधाओं से सुसज्जित सहेली कक्ष में एक बिस्तर और कुर्सी के अलावा आपातकालीन यूनिफार्म (एक जोड़ी स्कर्ट), एक सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन तथा अलग से सैनिटरी पैड के रिज़र्व स्टॉक का प्रावधान किया गया है। साथ ही, इस्तेमाल किए गए पैड के सुरक्षित निपटान हेतु एक इलेक्ट्रिक इंसीनरेटर (पैड भस्मक) की भी व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त माहवारी से जुड़ी सामान्य समस्याओं और उनसे निपटने के प्रभावी तरीकों सहित पीरियड्स के दौरान उपयुक्त आहार व परहेज़ संबंधी विस्तृत जानकारियों को कक्ष की दीवारों पर लिखा गया है। साथ ही, दीवारों को माहवारी संबंधी सशक्त उद्धरण और पूरक चित्रों से सजाया गया है ताकि माहवारी के बारे में प्रचलित मिथकों और गलत धारणाओं को दूर किया जा सके।

आदर्श रामानंद मध्य विद्यालय की एमएचएम नोडल शिक्षिका रत्नमाला कुमारी ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी के बारे में बात करना अभी भी एक वर्जित विषय माना जाता है। इसलिए उन्होंने शुरुआती झिझक को दूर करने के लिए लड़कियों और लड़कों दोनों के साथ माहवारी स्वच्छता पर कुछ सत्र आयोजित किए। इस विषय पर मीना मंच की बैठकों और चेतना सत्र (सुबह की असेंबली) में भी नियमित रूप से चर्चा होती है। इस दिशा में सहेली कक्ष की स्थापना से कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं। जहां किशोरियां माहवारी स्वच्छता पर खुलकर बात करने लगी हैं, वहीं लड़के और पुरुष शिक्षक भी इस बारे में खुलकर चर्चा करने लगे हैं। कुछ विशेष अवसरों पर माता-पिता और समुदाय के लोगों को कक्ष में प्रवेश दिया जाता है। परिणामस्वरूप, एमएचएम को लेकर उनकी समझ भी काफ़ी बेहतर हुई है।

स्कूल के प्रधानाध्यापक जलज लोचन सरकारी स्कूलों में शुरू हुई इस अनूठी पहल से बेहद उत्साहित हैं। उन्होंने कहा कि सहेली कक्ष की बदौलत लड़कियों की उपस्थिति में व्यापक सुधार हुआ है। औसतन प्रतिदिन लड़कों की तुलना में अधिक लड़कियां उपस्थित रहती हैं। बालिका शौचालयों को एमएचएम अनुकूल बनाने से भी काफ़ी मदद मिली है। इसके कारण माहवारी स्वच्छता प्रथाओं और इस्तेमाल के बाद सैनिटरी पैड के सुरक्षित निपटान के बारे में लड़कियों की समझ में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इससे भी बढ़कर, किशोर-किशोरियां चेंज एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं। वे अपने परिवार और समुदाय में जागरूकता फैला रहे हैं, जिसके फलस्वरूप माहवारी को लेकर उनके घर और समुदाय के सदस्यों की झिझक धीरे-धीरे दूर हो रही है। इनमें से कइयों ने आगे बढ़कर स्कूल को सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने का नेक कार्य भी किया है।

कसबा प्रखंड की बीईओ संगीता कुमारी और कसबा नगर परिषद की मुख्य पार्षद छाया कुमारी ने सहेली कक्ष जैसी अनूठी पहल की काफ़ी सराहना की है। छाया कुमारी ने इसके बारे में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने का आह्वान करते हुए कहा कि सभी मध्य विद्यालयों और उच्च विद्यालयों में लड़कियों को ऐसी सुविधा होनी चाहिए ताकि वे बिना किसी भय व संकोच के अपनी पढ़ाई-लिखाई जारी रख सकें।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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