शिलाई (सिरमौर), 23 जुलाई 2025:
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के शिलाई क्षेत्र में एक बार फिर सदियों पुरानी ‘बहुपति परंपरा’ (Polyandry) चर्चा में है। यहां एक ही परिवार के दो सगे भाइयों ने एक ही महिला से विवाह रचाया है। यह विवाह परंपरागत रूप से और स्थानीय समाज की सहमति से संपन्न हुआ। इस परंपरा को स्थानीय भाषा में ‘जोड़ीदारा’ के नाम से जाना जाता है।
📌 क्या है जोड़ीदारा परंपरा?
शिलाई और इसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों, विशेष रूप से हटी जनजाति में यह परंपरा वर्षों से प्रचलित है। इसके अनुसार जब किसी घर में एक से अधिक भाई होते हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति सीमित होती है, तो सभी भाई एक ही महिला से विवाह करते हैं। इसे ‘जोड़ीदारा’ विवाह कहते हैं।
यह परंपरा इस सोच पर आधारित है कि जमीन-जायदाद का बंटवारा न हो और परिवार की एकता बनी रहे।
📍 ताजा मामला: दो भाइयों ने निभाई परंपरा
सूत्रों के अनुसार, शिलाई उपमंडल के एक गांव में 23 वर्षीय युवक ने अपनी 20 वर्षीय पत्नी का विवाह अपने छोटे भाई से भी करवाया। यह विवाह विधिपूर्वक हुआ और गांव के बुजुर्गों ने भी इसे परंपरागत मान्यता दी। इस तरह दोनों भाइयों ने मिलकर महिला को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
🗣️ स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
गांव के बुजुर्गों का मानना है कि यह परंपरा सामाजिक समरसता और पारिवारिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है। एक बुजुर्ग ने कहा, “यह रिवाज हमारे पूर्वजों से चला आ रहा है। इसमें कोई अनैतिकता नहीं है, बल्कि यह हमारी सामाजिक संरचना का हिस्सा है।”
हालांकि, कुछ युवा वर्ग और बाहर से आए लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं। वे इसे महिला अधिकारों और आधुनिक कानून की दृष्टि से अनुचित बता रहे हैं।
⚖️ कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण
भारत के संविधान और कानून के तहत एक महिला या पुरुष का एक से अधिक विवाह करना अवैध माना गया है। लेकिन हटी जनजाति जैसे कुछ क्षेत्रों में यह परंपरा आज भी सामाजिक सहमति से चलती है, हालांकि कानूनी रूप से इसे मान्यता प्राप्त नहीं है।
सामाजिक कार्यकर्ता और महिला अधिकार समूहों ने इस विषय पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसी परंपराएं आधुनिक सामाजिक मूल्यों से टकराती हैं और महिलाओं की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं।
🧠 विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
समाजशास्त्री मानते हैं कि यह परंपरा भले ही ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से स्वीकृत रही हो, लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव की आवश्यकता है। विशेष रूप से महिलाओं की स्वायत्तता और उनके अधिकारों की रक्षा हेतु संवाद जरूरी है।
🔚 निष्कर्ष
जोड़ीदारा विवाह हिमाचल के कुछ विशेष क्षेत्रों की एक पारंपरिक और विशिष्ट सामाजिक संरचना का हिस्सा है। हालांकि आज के दौर में जब महिला सशक्तिकरण और व्यक्तिगत अधिकारों की बात होती है, तो ऐसी परंपराएं फिर बहस का विषय बन जाती हैं। सवाल यही है कि क्या सामाजिक परंपराएं संविधान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से ऊपर हैं?