अवैज्ञानिक उपायों के बजाय जैविक विविधता पर ध्यान दे सरकार

पटना। अपोषण और एनीमिया आज भी हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) और कोविड महामारी इस संकट को और भी गंभीर रूप दे रहे हैं। रोज़गार के अभाव में हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा गुणवत्तापूर्ण और पौष्टिक भोजन से दूर होता जा रहा है। इसका सबसे गंभीर असर बच्चों और महिलाओं पर पड़ा है।

इस संकट से कथित तौर पर उबरने के लिए भारत सरकार राज्य सरकारों के जरिए फॉर्टिफाइड चावल बांटने की योजना पर काम कर रही है। बिहार में भी इसकी शुरूआत हो चुकी है। फोर्टिफाइड चावल का वितरण मिड डे मील, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के ज़रिये किया जाएगा। सरकार का तर्क है कि इससे कुपोषण और एनीमिया की समस्या को खत्म करने में मदद मिलेगी।

इस बाबत ग्रीनपीस इंडिया को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए सरकार की विभिन्न एजेंसियों से जो जानकारी प्राप्त हुई है, उसके अनुसार भारत सरकार के पास फिलहाल फॉर्टिफाइड चावल के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होने और अपोषण और एनीमिया को रोकने में प्रभावी होने के लंबे समय के शोध आधारित प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- 4 को ध्यान में रखते हुए इस योजना को तीन सालों के लिए मंजूरी दी गई है। मंत्रालय ने बताया कि इस पायलट स्कीम के तीसरे साल यानि 2021-22 में थर्ड पार्टी द्वारा इसका मूल्यांकन किया जाएगा जो करने में वह अभी तक असफल रहा है। साथ ही यह भी कहा गया था कि चावल के फोर्टिफिकेशन की योजना जिन राज्यों द्वारा लागू की गई है उन्हें अपने-अपने स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर इस पर अध्ययन भी करना होगा। लेकिन अभी तक सार्वजनिक रूप से किसी भी राज्य ने अध्ययन उपलब्ध नहीं करवाया है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) से जब पूछा गया कि क्या उन्होंने फोर्टिफाइड खाने का लोगों पर ख़ासकर गर्भवती महिलाओं, नयी माओं और पांच साल से कम उम्र के बच्चों, कुपोषित और कमज़ोर बच्चों पर असर संबंधित कोई अध्ययन किया है। इस पर आईसीएमआर ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में कोई अध्ययन नहीं किया है। आईसीएमआर ने एक ज़रूरी बात साझा की कि उन्होंने एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में 5-11 साल के बच्चों पर एक नियंत्रित अध्ययन किया था। बच्चों को मिड-डे मील के तहत फोर्टिफाइड चावल दिया गया था। अध्ययन के पाया गया कि फोर्टिफाइड चावल का एनीमिया की स्थिति में सुधार पर कोई खास असर नहीं है। बल्कि अगर मिड-डे मील पोषक और नियमित हो तो वो भी एनीमिया और कुपोषण से लड़ने में कारगर है।

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन की पूर्व निदेशक डॉ. वीणा शत्रुघ्न के मुताबिक, “फोर्टिफिकेशन योजना मेडिकल साइंस के नज़रिये के आधार पर नहीं बनाई गई। इस योजना के तहत चावल में विटामिन B12, आयरन और फोलिक एसिड मिलाया जाना है। यह सोच कि सबको एक ही तरह के पोषण की ज़रूरत है, अवैज्ञानिक है। एनीमिया, भुखमरी और कुपोषण का समाधान केवल और केवल पोषक तत्व जैसे अलग-अलग तरह की दाल, फल, अनाज और जानवरों से मिलनेवाली चीज़ों को शामिल कर किया जा सकता है। न कि फोर्टिफिकेशन जैसी योजना के ज़रिये।”

बिहार के संदर्भ में बिहार सरकार की नोडल एजेंसी जीविका और ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट “जैविक बिहार: खाद्य विविधता की कुंजी” के अनुसार, जैविक किचेन गार्डन न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी सकारत्मक बदलाव लाने की ओर अग्रसर हैं। सर्वे में शामिल ने बताया कि महामारी के दौरान जब उनकी आजीविका बुरी तरह प्रभावित थी, आर्गेनिक किचन गार्डन से परिवारों और समुदायों को विविध, पौष्टिक और सुरक्षित भोजन प्राप्त हो रहा। किसानों के अनुसार, तीनों मौसमों- रबी, खरीफ और जैद में औसतन दस प्रकार की सब्जियां उगा लेती हैं। जैविक खाद के उपयोग से मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि हुई है। मिट्टी लंबे समय तक नम रहती है और खेती के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है।

उल्लेखनीय है कि बिहार सरकार के तीसरे कृषि रोडमैप के अंतर्गत जैविक भूमि में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है। 2016-17 में जो जैविक भूमि सौ हेक्टेयर ज़मीन थ, वह 2020-21 में 21000 हेक्टेयर हो गई है।

ग्रीनपीस इंडिया के सीनियर कैंपेनर इश्तियाक अहमद ने कहा, “जब राज्य में जैविक मुहिम तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में किसी अवैज्ञानिक तकनीक को लागू करना किसानों को हतोत्साहित करेगा। यह न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित होगा बल्कि सरकार के खजाने पर भी भारी बोझ डालेगा। शोध बताते हैं कि खाद्य विविधता से ही कुपोषण और एनीमिया को जड़ से खत्म किया जा सकता है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि मीड डे मिल और पीडीएस को और कारगर बनाया जाए। वह न सिर्फ नियमित हो बल्कि पौष्टिकता के पैमाने पर भी खरा उतरे।”

फोर्टिफिकेशन है क्या?

आसान शब्दों में समझें तो फोर्टिफिकेशन का मतलब एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें रोज़ाना खाने के इस्तेमाल में आनेवाली चीज़ें जैसे नमक, तेल, चीनी, चावल या दूध में एक या एक एक से अधिक ज़रूरी पोषक तत्व मिलाए जाएं। फोर्टिफिकेशनन का लक्ष्य किसी भोजन के पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाना होता है, जिसे एक बड़ी आबादी द्वारा रोज़ इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि, चावल एक ऐसा भोजन से जिसे बड़ी संख्या में भारतीय आबादी इस्तेमाल करती है, इसलिए सरकार ने चावल का फोर्टिफिकेशन करने का फैसला किया है।

By MINIMETRO LIVE

Minimetro Live जनता की समस्या को उठाता है और उसे सरकार तक पहुचाता है , उसके बाद सरकार ने जनता की समस्या पर क्या कारवाई की इस बात को हम जनता तक पहुचाते हैं । हम किसे के दबाब में काम नहीं करते, यह कलम और माइक का कोई मालिक नहीं, हम सिर्फ आपकी बात करते हैं, जनकल्याण ही हमारा एक मात्र उद्देश्य है, निष्पक्षता को कायम रखने के लिए हमने पौराणिक गुरुकुल परम्परा को पुनः जीवित करने का संकल्प लिया है। आपको याद होगा कृष्ण और सुदामा की कहानी जिसमे वो दोनों गुरुकुल के लिए भीख मांगा करते थे आखिर ऐसा क्यों था ? तो आइए समझते हैं, वो ज़माना था राजतंत्र का अगर गुरुकुल चंदे, दान, या डोनेशन पर चलती तो जो दान देता उसका प्रभुत्व उस गुरुकुल पर होता, मसलन कोई राजा का बेटा है तो राजा गुरुकुल को निर्देश देते की मेरे बेटे को बेहतर शिक्षा दो जिससे कि भेद भाव उत्तपन होता इसी भेद भाव को खत्म करने के लिए सभी गुरुकुल में पढ़ने वाले बच्चे भीख मांगा करते थे | अब भीख पर किसी का क्या अधिकार ? आज के दौर में मीडिया संस्थान भी प्रभुत्व मे आ गई कोई सत्ता पक्ष की तरफदारी करता है वही कोई विपक्ष की, इसका मूल कारण है पैसा और प्रभुत्व , इन्ही सब से बचने के लिए और निष्पक्षता को कायम रखने के लिए हमने गुरुकुल परम्परा को अपनाया है । इस देश के अंतिम व्यक्ति की आवाज और कठिनाई को सरकार तक पहुचाने का भी संकल्प लिया है इसलिए आपलोग निष्पक्ष पत्रकारिता को समर्थन करने के लिए हमे भीख दें 9308563506 पर Pay TM, Google Pay, phone pay भी कर सकते हैं हमारा @upi handle है 9308563506@paytm मम भिक्षाम देहि

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