पटना | 22 जुलाई 2025:
बिहार में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा जारी विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision – SIR) के दौरान 21.36 लाख फॉर्म गायब हैं, जबकि आयोग ने फॉर्म भरने की अंतिम तिथि 25 जुलाई तय की है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में अब गंभीर अनियमितताओं और दमनात्मक कार्रवाई की बातें सामने आ रही हैं।
🔹 तकनीकी लापरवाही या सुनियोजित गड़बड़ी?
विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह मृतकों के नाम से फॉर्म भरे गए हैं और कुछ स्थानों पर फर्जी हस्ताक्षर पाए गए हैं, वह केवल तकनीकी चूक नहीं हो सकती। BLO स्तर पर व्यापक स्तर पर निगरानी की कमी स्पष्ट रूप से सामने आई है।
🔹 जनता का भरोसा डगमगाया
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर कई मतदाताओं को यह देखकर हैरानी हुई कि उनका फॉर्म भरा हुआ दिखाया जा रहा है, जबकि उन्होंने कोई फॉर्म नहीं भरा। इससे आम जनता के बीच चुनावी प्रक्रिया पर संदेह और आक्रोश बढ़ा है।
🔹 पत्रकार पर कार्रवाई या असहमति की सजा?
पत्रकार अजित अंजुम के खिलाफ दर्ज मामला भी सवालों के घेरे में है। कई संगठनों ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। उन्होंने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया है।
🔍 BLO पर फर्जी हस्ताक्षर और मनमाने फॉर्म अपलोड का आरोप
बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) ने हजारों मतदाताओं की जानकारी के बिना ही ऑनलाइन फॉर्म भर दिए, जिनमें कई मृतक मतदाता भी शामिल हैं।
बिहार के कई हिस्सों से रिपोर्ट मिली है कि मतदाताओं के नाम से वेबसाइट पर ‘फॉर्म भरा गया’ दिख रहा है, जबकि उन्होंने ऐसा कोई आवेदन किया ही नहीं।
इस तरह की सूचना epic नंबर डालकर ECI की वेबसाइट पर देखी जा सकती है — यह प्रक्रिया दर्शाती है कि फॉर्म भरने की पारदर्शिता और सत्यता पर गंभीर सवाल हैं।
🧾 दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर बिना दस्तावेज़ के भरे गए फॉर्म “स्वीकृत” स्थिति में दिख रहे हैं, जबकि असली आवेदक दस्तावेजों की कमी के कारण सुधार नहीं कर पा रहे हैं।
📺 पत्रकार अजित अंजुम पर केस — सवालों के घेरे में आयोग
वरिष्ठ पत्रकार अजित अंजुम, जो ECI की इस प्रक्रिया की पड़ताल कर रहे थे, सीतामढ़ी ज़िले के एक मुस्लिम-बहुल क्षेत्र में मतदाताओं से बात कर रहे थे, तभी उन पर “सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने” और “सरकारी कार्य में बाधा” डालने का मुकदमा दर्ज किया गया।
सूत्रों के मुताबिक, यह कार्यवाही स्थानीय प्रशासन ने चुनाव आयोग के इशारे पर की, जोकि पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर सीधा हमला माना जा रहा है।
मामला मानहानि नहीं, बल्कि दमनात्मक और झूठे आरोपों के आधार पर दर्ज किया गया है, ताकि स्वतंत्र पत्रकार रिपोर्टिंग से पीछे हट जाएँ।
🧮 आयोग के आंकड़े:
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राज्य के कुल मतदाता: 7,89,69,844
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फॉर्म प्राप्त: 7,16,04,102
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पते पर अनुपलब्ध: 52,30,126
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संभावित मृतक: 18,66,869
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मल्टीपल नामांकन: 7,50,742
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स्थानांतरित मतदाता: 26,01,031
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पता नहीं चला: 11,484
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📅 आगे की समयरेखा:
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25 जुलाई: फॉर्म भरने की अंतिम तिथि
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1 अगस्त: ड्राफ्ट वोटर लिस्ट प्रकाशित होगी
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1 सितंबर तक: आपत्तियाँ दर्ज करने और सुधार कराने का मौका
🧠 निष्कर्ष:
एक ओर चुनाव आयोग मतदाता सूची को सुधारना चाहता है, वहीं दूसरी ओर BLO की मनमानी, तकनीकी पारदर्शिता की कमी और स्वतंत्र पत्रकारों को डराने की कोशिश ने इस प्रक्रिया को गहरा विवादित बना दिया है।
लोकतंत्र की नींव मजबूत हो — यह सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है। ऐसे में हर मतदाता को चाहिए कि वह अपना EPIC नंबर डालकर स्थिति जांचे और ज़रूरत हो तो समय रहते आपत्ति दर्ज कराए।