लेजेंडरी एक्टर दिलीप कुमार के निधन के बाद उनको चाहने वालों के बीच शोक का लहर है। ऐसे में सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा ने भी उन्‍हें श्रद्धांजलि दी। इस दौरान उन्‍होंने कहा कि महान कलाकार दिलीप कुमार के निधन से भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक स्वर्ण युग समाप्त हो गया है और मेरे मन का एक कोना खाली हो गया है। अपनी अभिनय कला के बल पर वह अत्यधिक लोकप्रिय अभिनेता के रूप में स्थापित हुए। वह अपने अविस्मरणीय अभिनय के कारण फिल्म जगत और फिल्म दर्शकों के मन में जीवित रहेंगे। लेकिन अपने गहन मानवीय गुणों और गहरी संवेदनशीलता के कारण वह उन सबके हृदय में जिन्हें उनकी आत्मीयता प्राप्त हुई, चिरकाल तक बने रहेंगे।

उन्‍होंने दिलीप कुमार के साथ अपनी यादों को शेयर करते हुए कहा कि आज जब मैं महानायक दिलीप कुमार के निधन पर शोकाकुल हूं तो मेरे मन में उनके साथ अपने सान्निध्य के अनेकानेक संस्मरण स्मृत हो रहे हैं। यह दिलीप कुमार की महानता ही थी कि दो-तीन बार फोन पर बात होने के साथ ही मुझे उनकी आत्मीयता प्राप्त हो गयी थी। राजनीतिक कारणों से उन दिनों उनका प्रायः उत्तर प्रदेश एवं इधर के अन्य प्रदेशों में आना हुआ करता था। चंद मुलाकातों के बाद स्थिति यह हो गयी थी कि वह जब भी भारत के इस क्षेत्र में, खासकर लखनऊ आते थे तो सहारा शहर, मेरे आवास पर ही ठहरते थे। एक बार तो वह लगातार चार दिन तक ठहरे थे। वे दिन स्वर्णिम यादों के साथ मेरे मन में स्थायी भाव से मौजूद है।

उन्‍होंने आगे कहा  कि वे बहुत बड़े कलाकार थे और उम्र में मुझसे बहुत बड़े भी। लेकिन वे इतने मानवीय, उदार और सरलमना व्यक्ति थे कि उन्होंने कभी भी मुझे यह बोध नहीं होने दिया कि मैं एक विराट व्यक्तित्व वाले व्यक्ति से बात कर रहा हूं। उनके कलाकार पर उनका विराट व्यक्तित्व हमेशा हावी रहता था और वह मुझसे बहुत ही आत्मीयता के साथ बात किया करते थे। इस लंबे प्रवास के दौरान तो उन्होंने मेरे साथ अपने जीवन के फिल्म जगत संबंधी तथा व्यक्तिगत, अनेक अनुभव सांझा किये। वह बात करते थे तो यह आभास ही नहीं होने देते थे कि उनके सामने कोई कनिष्ठ व्यक्ति बैठा है। अपनी बात कहने की उनकी कला अद्भुत थी। लगता था जैसे वह किसी कहानी का वाचन कर रहे हों जिसे सुनकर कोई भी श्रोता मंत्रमुग्ध हुआ जा रहा हो। उनके बारे में मेरे मन में जब भी कोई जिज्ञासा पैदा हुई तो उन्होंने बहुत ही स्नेहपूर्वक उसका समाधान किया। मेरी जितनी बार उनसे मुलाकात हुई उतनी ही बार मेरे मन में उनके प्रति सम्मान बढ़ता गया।

उन्‍होंने कहा कि मेरी हमेशा यही चाह रहती थी कि वह जब भी इधर आयें  तो मेरे निवास पर ही ठहरें, किंतु पिछले कुछ बरसों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण उनका कहीं भी आना-जाना स्थगित हो गया था। मुझे जब भी मीडिया के जरिए सूचना मिलती थी कि वह अस्वस्थ हैं और अस्पताल में भर्ती हैं तो मैं उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता था। जब इस बार मुझे उनके अस्पताल में भर्ती होने का समाचार मिला तो अंदर कहीं आश्वस्ति थी कि वह एक बार फिर स्वस्थ होकर घर लौट आएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। दिलीप साहब भले ही भौतिक उपस्थिति के साथ हमारे बीच न हों लेकिन उनका विराट व्यक्तित्व अपनी महानता के साथ सदैव अपने प्रशंसकों के भीतर जीवित रहेगा और मेरे भीतर भी। उन्हें भरे हृदय से मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *