mini metro radio
|
प्रतीकों के माध्यम से जो बातें कही जाती हैं, उनके लिए पौराणिक कथाएँ अच्छा उदाहरण होती हैं। जैसे कि एक कहानी है जिसे हनुमान जी से जोड़कर कथावाचक और श्रोता दोनों भाव विभोर होकर लोटने-पोटने लगते हैं। इस कथा का समय संभवतः लंका विजय के बाद का रहा होगा जब श्री राम अयोध्या लौट आये थे। कौसल में सब कुशल था और हनुमान जी ऐसे ही एक सुबह टहलते-घूमते माता सीता के महल में जा पहुंचे। माता सीता उस समय स्नान इत्यादि के बाद सिन्दूर लगा रही थीं। लाल रंग थोड़ा ज्यादा आकर्षक होता है, हनुमान जी को भी सिन्दूर दिखा। हनुमान जी थे ब्रह्मचारी तो उनका सिन्दूर से कोई विशेष परिचय न था।
हनुमान जी ने पूछा, माता आप ये क्या कर रही हैं? माता सीता ने समझाने का प्रयास किया कि वो सिन्दूर लगा रही हैं। अगला प्रश्न आया कि क्यों लगा रही हैं? उन्होंने फिर समझाया, वो प्रभु श्री राम से प्रेम करती हैं, इसलिए उनके नाम का सिन्दूर लगाया है। थोड़ी देर हुई, माता सीता इधर उधर हुईं और हनुमान जी भी वहाँ से निकलकर राम दरबार पहुंचे। दरबार में सब उन्हें देखकर हंसने लगे, क्योंकि वो पूरे शरीर में ही सिन्दूर पोत आये थे! पूछे जाने पर उन्होंने कारण बताया कि उन्हें भी श्री राम अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए माता सीता को थोड़ा सा सिन्दूर लगाते देख वो पूरे शरीर में ही सिन्दूर पोत आये हैं!
हनुमान जी के विग्रहों पर सिन्दूर लगा देखकर अगर उसका कारण पूछा जाए, तो अक्सर यही किस्सा सुनने को मिलेगा। भक्तिभाव रखने वाले इससे संतुष्ट भी हो जाते हैं। हाल फिलहाल में कालनेमि केजरीवाल भी चुनावी माहौल को देखकर हनुमान जी के मंदिर आते-जाते दिखे हैं। संभवतः उन्होंने भी ये कथा सुन ली होगी। भारत की जनता का आग्रह हिंदुत्व की ओर होने लगा तो कई राजनेताओं ने दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ने से इनकार कर दिया था। कपटी केजरीवाल उस दौर में ही पहचानने लगा था कि दीवार का रंग ही भगवा-केसरिया हो चला है। राजनैतिक बयान देने और फिर उससे पलटने के पुराने माहिर क्रूरकर्मा केजरीवाल ने, नोटों पर देवी-देवताओं के फोटो छापने की बात करके, अब भगवा रंग की बाल्टी ही सर पर उढ़ेल ली है।
अंग्रेजी वाले “होलिअर देन दाउ” कहावत जैसा अब उसके कुछ पाखंडी चेले खुद को दूसरों से अधिक हिन्दुत्ववादी बताने पीछे-पीछे निकलेंगे। कुल जमा 20-30 प्रतिशत अल्पसंख्यक वोट बैंक के कांग्रेस, सपा, बसपा, जैसे इतने दावेदार हैं, कि आज नहीं तो कल ये होना ही था। अफसोस कि उसकी ही पार्टी की पंजाब इकाई ने इस मुद्दे पर समर्थन देने से साफ पल्ला झाड़ लिया है। पैगवंत मान तो चुप रहे ही, पंजाब आते-जाते रहने वाले उनके चेले राघव चड्डा भी चुप्पी साधे रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि खुद को भगवा रंगने के चक्कर में #आ_आपा की झोली में खाली स्थान से आकर गिरने वाले नोट बंद हो जाएँ। बाकी जनता का क्या है? पहले जूते-अंडे फेंकती रही है, अगली बार एक बाल्टी पानी फेंककर भगवा रंग उतार देगी!