📍 नई दिल्ली | 24 जुलाई 2025:
भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच 24 जुलाई 2025 को एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) सम्पन्न हुआ, जिसे अब तक का सबसे बड़ा द्विपक्षीय व्यापारिक करार माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की मौजूदगी में यह समझौता नई दिल्ली में आधिकारिक रूप से हस्ताक्षरित किया गया।
🔶 समझौते की प्रमुख बातें:
यह मुक्त व्यापार समझौता दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का वादा करता है। FTA के अंतर्गत दोनों देशों ने अगले पांच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को $100 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है।
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टैरिफ में छूट: भारत से यूके को निर्यात होने वाले वस्त्र, हीरे-जवाहरात, फार्मास्यूटिकल और ऑटो पार्ट्स जैसे उत्पादों पर 90% से अधिक टैरिफ को या तो पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है या चरणबद्ध तरीके से कम किया जाएगा।
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सेवा क्षेत्र को बढ़ावा: सूचना तकनीक (IT), वित्तीय सेवाएं और स्वास्थ्य सेवाएं जैसी भारतीय सेवा-क्षेत्रों को यूके में प्राथमिकता और सुविधा मिलेगी। वीज़ा प्रोसेस भी सरल किया गया है।
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कृषि और डेयरी उत्पाद: ब्रिटेन के कृषि और डेयरी उत्पादों को भारत में सीमित छूट दी गई है, लेकिन भारतीय किसान समूहों की मांग पर कुछ संवेदनशील उत्पादों को इस छूट से बाहर रखा गया है।
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हरित ऊर्जा और अनुसंधान: दोनों देशों ने जलवायु परिवर्तन, हरित हाइड्रोजन, और ऊर्जा नवाचार में संयुक्त निवेश पर भी सहमति जताई है। 2030 तक सस्टेनेबल एनर्जी में $5 बिलियन के निवेश का रोडमैप तैयार किया गया है।
🔶 इतिहास में यह क्यों है खास?
हालांकि भारत ने अतीत में कई देशों के साथ व्यापार समझौते किए हैं, लेकिन यह समझौता खास इसलिए है क्योंकि यह ब्रिटेन के ब्रेक्ज़िट के बाद का सबसे व्यापक और रणनीतिक समझौता है।
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ब्रेक्ज़िट के बाद की रणनीति: यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद ब्रिटेन के लिए भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार बनकर उभरा है।
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भारत का आर्थिक विस्तार: भारत की “मेक इन इंडिया” और “लोकल टू ग्लोबल” रणनीति को यह समझौता मजबूती देगा।
🔶 किन क्षेत्रों को मिलेगा सबसे बड़ा लाभ?
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रत्न एवं आभूषण उद्योग: भारतीय ज्वेलरी कंपनियों को यूके में टैक्स-फ्री एक्सपोर्ट की सुविधा मिलने से यह क्षेत्र नए आयाम पर पहुंचेगा।
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टेक्नोलॉजी एवं स्टार्टअप: ब्रिटेन की कंपनियों को भारतीय स्टार्टअप्स में निवेश के लिए विशेष अवसर मिलेंगे और इसके बदले भारतीय कंपनियों को यूके में एक्सपैंड करने की छूट मिलेगी।
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शिक्षा एवं कौशल विकास: यूके की यूनिवर्सिटीज़ भारतीय छात्रों को स्कॉलरशिप और नए पाठ्यक्रम प्रदान करेंगी। साथ ही स्किल इंडिया मिशन को यूके की टेक्निकल ट्रेनिंग संस्थाओं से सहयोग मिलेगा।
🔶 राजनीतिक समीकरण और वैश्विक संकेत
यह समझौता केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। यह भारत और ब्रिटेन के बीच बदलते राजनीतिक और रणनीतिक संबंधों का संकेत भी है। भारत की वैश्विक साख में यह एक बड़ा क़दम है, जबकि ब्रिटेन के लिए यह एशिया में अपने प्रभाव को पुनः स्थापित करने का माध्यम है।
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मोदी-स्टारमर के युग का नया अध्याय: पहली बार दोनों प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त प्रेस वार्ता की जिसमें ‘Global South’ में साझेदारी बढ़ाने की बात की गई।
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रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच वैश्विक समीकरण: यह समझौता वैश्विक शक्ति-संतुलन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिमी देश भारत को चीन के विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
उद्योगों में नई ऊर्जा: किसे होगा सबसे अधिक लाभ?
कपड़ा और परिधान उद्योग भारत की सबसे बड़ी श्रम-सघन निर्यात इकाइयों में से एक है। इस समझौते के तहत, ब्रिटेन द्वारा भारतीय वस्त्रों पर लगने वाला औसतन 9-12% का आयात शुल्क अब समाप्त हो जाएगा। इससे भारतीय वस्त्र कंपनियों को ब्रिटेन में प्रतिस्पर्धा के नए अवसर मिलेंगे।
औषधि और जीवन रक्षक दवाएं – भारत की जेनेरिक दवा कंपनियों के लिए यह समझौता किसी वरदान से कम नहीं। पहले जहां ब्रिटेन में पहुंचने के लिए जटिल अनुमोदन प्रक्रियाएं थीं, अब उन्हें शीघ्रता से मंजूरी मिल सकेगी। इस कदम से न केवल निर्यात में वृद्धि होगी, बल्कि भारतीय दवाओं की वैश्विक विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।
चमड़ा और जूता उद्योग – उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों के उद्योगों को अब ब्रिटिश बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उत्पाद भेजने का अवसर मिलेगा।
आईटी और प्रोफेशनल सर्विसेज – इस समझौते में पेशेवर वीज़ा, योग्यता की मान्यता, और स्टार्टअप सहयोग से जुड़ी छूटें भी शामिल हैं, जिससे भारतीय आईटी कंपनियों को ब्रिटेन में नए प्रोजेक्ट मिल सकते हैं।
व्यापार संतुलन और निर्यात लक्ष्य
सरकार का लक्ष्य है कि 2026 तक भारत का ब्रिटेन को निर्यात 50 अरब डॉलर तक पहुँचे। 2024 में यह आँकड़ा लगभग 27 अरब डॉलर था। टैरिफ छूट और व्यापार बाधाओं के हटने से यह आकंड़ा अब और तेज़ी से बढ़ सकता है।
हालांकि, आयात भी बढ़ेगा। ब्रिटिश उत्पादों जैसे व्हिस्की, हाई-एंड इलेक्ट्रॉनिक्स, और फाइनेंशियल सेवाओं का प्रवेश भारतीय बाजार में बढ़ेगा, जिससे व्यापार संतुलन के लिए सावधानी जरूरी होगी।
विवादास्पद बिंदु: कृषि और डेयरी उत्पाद
कृषि क्षेत्र विशेषकर डेयरी उत्पादों को लेकर किसान संगठनों ने आपत्ति जताई है। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) का तर्क है कि अगर ब्रिटेन से चीज़ और प्रोसेस्ड डेयरी उत्पादों पर आयात शुल्क में छूट दी गई तो भारतीय स्थानीय उत्पादक प्रभावित हो सकते हैं।
सरकार ने भरोसा दिलाया है कि “संवेदनशील” क्षेत्रों को चरणबद्ध रूप से शामिल किया जाएगा, और स्थानीय उत्पादकों की सुरक्षा प्राथमिकता रहेगी।
राजनयिक मायने: सिर्फ व्यापार नहीं, रणनीतिक दोस्ती
यह समझौता महज व्यापार की दृष्टि से नहीं, बल्कि भारत-ब्रिटेन संबंधों में नए युग की शुरुआत मानी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री कीर स्टारमर दोनों ने इस समझौते को “21वीं सदी की रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक” बताया।
ब्रिटेन की बढ़ती भारतीय डायस्पोरा और भारत की तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था – दोनों ने इस सहयोग को मजबूती दी है।
निष्कर्ष: अवसर और चुनौती साथ-साथ
भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक कदम है। इससे भारतीय निर्यातकों को नए अवसर मिलेंगे, नौकरियों का सृजन होगा, और व्यापारिक संबंधों को मजबूती मिलेगी।
लेकिन इसके साथ कृषि सुरक्षा, छोटे व्यापारियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता, और विदेशी कंपनियों की संभावित प्रभुत्व की चिंता को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
सत्ता पक्ष यह सुनिश्चित करे कि समझौते के लाभ केवल बड़ी कंपनियों तक सीमित न रहें, बल्कि ग्रामीण और कुटीर उद्योगों तक भी पहुंचें। साथ ही, यह भी देखा जाना चाहिए कि कहीं यह डील भारत के बाज़ार को ब्रिटिश उत्पादों से भर देने का ज़रिया न बन जाए।
इस समझौते की सफलता अब इसके इम्प्लीमेंटेशन और निगरानी पर निर्भर करेगी – क्या यह भारत को वैश्विक व्यापार में ऊंचा उठाएगा या फिर असमानताओं को और गहरा करेगा, यह भविष्य तय करेगा।