पहला सवाल ही यही होता है कि भला किसी जापानी लेखक तेत्सुको कुरोयानागी की एक स्कूल और उसमें पढ़ने वाली बच्ची पर लिखी किताब का भारत में क्या काम? आखिर हम उसे क्यों पढ़ें? इसका एक जवाब तो ये होता है कि हाल के दौर में भारत सरकार ने लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है। हम ये अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी राज्य में शिक्षा के स्तर को देखा जाए तो पुरुष साक्षरता दर, स्त्रियों की साक्षरता दर से कहीं अधिक है। बिहार सरकार की बात करें तो पोशाक और साइकिल जैसी योजनाओं ने लड़कियों की शिक्षा में क्रांति ला दी। लोग ये समझ ही नहीं रहे थे कि लड़कियां स्कूल इसलिए नहीं पहुँच रही क्योंकि स्कूल दूर है। थोड़े बड़े होते ही गरीब परिवारों के पास उचित कपड़े नहीं थे, इसलिए लड़कियों को स्कूल से निकाल लिया जाता था। जैसे ही साइकिल मिली बच्चियां स्कूल पहुँचने लगी और पोशाक मिलते ही छठी-सातवी तक पहुँचते-पहुँचते उनके लिए स्कूल छोड़ने की मजबूरी भी नहीं रही। सरकार के लिए जो मामूली सा खर्च था, उसने स्त्रियों के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया।
अब आपका ध्यान इस बात पर चला गया होगा कि कई बार जो वास्तविक समस्याएँ होती हैं, वो आँख के सामने होने पर भी दिखाई नहीं दे रही होती हैं। बड़ी आसानी से जिन्हें सुलझाकर शिक्षा की पहुँच और स्तर को सुधारा जा सकता है, उनपर बात शुरू कैसे हो? भारत के स्कूलों के लिए आज जो समस्या है, उसमें स्कूल तक पहुंचना पिछले पायदान पर चला गया है। स्कूल से केवल साइकिल, पोशाक जैसी चीजें ही नहीं जुड़ी, मध्यान्ह भोजन (मिड-डे मील) भी स्कूल में मिलता है, इसलिए बच्चे स्कूल तक आने तो लगे हैं। अब सवाल ये है कि क्या बच्चों के लिए स्कूल आना रुचिकर है? जो पसंद न हो, बच्चे उसे नही करना चाहेंगे इसलिए शिक्षा को बच्चों के लिए रोचक बनाना भी जरूरी है। ये वो जगह है जहाँ तेत्सुको कुरोयानागी की “तोत्तोचान” महत्वपूर्ण पुस्तक हो जाती है। करीब सौ पन्ने की ये किताब एक छोटी सी बच्ची तोत्तो-चान की कहानी है। नन्ही तोत्तो-चान अपने तोमोए गाकुएन स्कूल के बारे में अनोखी बातें महसूस करती और बताती जाती है।
उसके स्कूल में एक ऐसा वातावरण था जो उसे और उसकी कक्षा के सभी बच्चों को पसंद था। उसके स्कूल के हेडमास्टर, बच्चों की पोशाक और पाठ्य-क्रम से कहीं ज्यादा ध्यान बच्चों के स्वादिष्ट खाने पर देते थे। सभी बच्चे संगीत सीखते, खेलों में भाग लेते, गर्मियों में कैंपिंग करते, गर्म पानी के सोते तक चलकर जाते, नाटक खेलते और खुले में रसोई बनाने का आनंद उठाते। बच्चों में कुछ ऐसे थे जो अच्छा गाते थे, कुछ खेलों में अच्छे थे और उनमें से एक भावी डॉक्टर भी था। यह सब सिर्फ एक स्नेहशील और कल्पनाशील हेडमास्टर कोबायाशी के कारण था, जो तोत्तो-चान को हमेशा कहा करते थे, “तुम सच में एक अच्छी बच्ची हो!” वे जो निस्संदेह ऐसे ही उत्साहजनक शब्द दूसरे छात्रों से भी कहते होंगे। उनका स्नेह छात्रों के उल्लासमय जीवन का सबसे प्रबल आधार था। उनका स्कूल बच्चों के लिए घर से दूर एक घर के समान था। कल की नन्ही तोत्तो-चान अब बड़ी होकर तेत्सुको कुरोयानागी के नाम से पूरे जापान में टेलीविजन की प्रसिद्ध कलाकार के रूप में जानी जाती हैं। वह आज भी अपने स्कूल के बारे में ढेरों बातें बताती हैं। जापान से यूनिसेफ की इस सद्भावना दूत के पास उन सबको देने के लिए बहुत कुछ है जिनका बच्चों से किसी-न-किसी प्रकार का संबंध है- चाहे वे हों शिक्षक, माता-पिता, दादा-दादी या नाना-नानी। इनमें बच्चे तो शामिल हैं ही।
एक स्कूल को बच्चों के लिए रोचक कैसे बनाया जा सकता है, ये सीखना हो तो “तोत्तो-चान” एक महत्वपूर्ण पुस्तक होती है। पुराने दौर में किसी बड़े अधिकारी-नेता से भी पूछा जाता तो वो बड़े चाव से आपने किसी सरकारी स्कूल में पढ़ने, दोस्तों के साथ स्कूल जाने, अपने मास्टर-हेडमास्टर के किस्से सुनाते थे। स्कूल एक बार फिर से उतने ही रोचक हों कि लोग खुश होकर अपने जीवन में अपने स्कूल के योगदान के बारे में बता सकें, इसके लिए केवल पाठ्यक्रम में ही नही, स्कूल के बारे में सभी हितधारक – शिक्षक, बच्चे, उनके माता-पिता और अभिभावक, समाज क्या सोचता है, उसमें पुनः परिवर्तन की जरुरत है। और ये जरूरत, “तोत्तो-चान” नाम की किताब का महत्व बना देती है।