जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 24 अक्टूबर ::
विश्व व्यावसायिक चिकित्सा दिवस प्रत्येक वर्ष 27 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा के प्रति जागरुकता बढ़ाने और वैश्विक प्रभाव को उजागर करना है। इस दिन व्यावसायिक चिकित्सकों, मरीजों और स्वास्थ्य सेवा संगठनों के लिए एक मंच प्रदान करता है, ताकि वे इस क्षेत्र के महत्व और इसके सकारात्मक प्रभाव को साझा कर सकें। विशेष रूप से विकासशील देशों में (जहां इस सेवा के बारे में जागरुकता और सुविधाओं की कमी है) यह दिन एक अवसर होता है, लोगों को व्यावसायिक चिकित्सा के लाभों से अवगत कराने का। विभिन्न आयोजन, कार्यशालाएं और सार्वजनिक जागरुकता कार्यक्रमों के माध्यम से इस दिन का उद्देश्य समाज में व्यावसायिक चिकित्सा की भूमिका को सशक्त बनाना और इसे हर वर्ग के लोगों तक पहुंचाना है। उक्त जानकारी एचओडी, विभागाध्यक्ष (ऑक्यूपेशनल थेरेपी) डॉ. प्रियदर्शी आलोक ने दी।
उन्होंने बताया कि विश्व व्यावसायिक चिकित्सा महासंघ (World Federation of Occupational Therapists) ने इस वर्ष की थीम ‘सभी के लिए व्यावसायिक चिकित्सा’ घोषित किया है। व्यावसायिक चिकित्सा एक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र है जो लोगों की शारीरिक, मानसिक या संज्ञानात्मक चुनौतियों से निपटने में मदद करता है, ताकि वे अपने दैनिक कार्यों को स्वतंत्र रूप से कर सकें। इसका उद्देश्य मरीज की क्षमता और आत्मनिर्भरता को बढ़ाना होता है। चिकित्सक मरीज के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हस्तक्षेप करते हैं, जैसे कि काम, घर या समुदाय में उनकी भूमिका।
विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित होती है और कई लोग शारीरिक या मानसिक विकारों के बाद पुनर्वास सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। व्यावसायिक चिकित्सा इस स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उदाहरण के तौर पर, ऐसे लोग जो दुर्घटना, स्ट्रोक, मिर्गी, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी (रीढ़ की हड्डी में चोट), या बच्चों में सेरेब्रल पाल्सी और ऑटिज्म (स्वलीनता) जैसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं, उन्हें सही तरीके से सहायता मिल सके, इसके लिए यह चिकित्सा एक प्रभावी उपाय हो सकती है।
डॉ आलोक ने बताया कि जहाँ व्यावसायिक चिकित्सा (Occupational Therapy) मददगार साबित हो सकती है, ऐसे कई अन्य रोग हैं जहाँ व्यावसायिक चिकित्सा का हस्तक्षेप प्रभावी होता है। उदाहरण दिए लिए (1)स्ट्रोक (Stroke) : स्ट्रोक के बाद शरीर का एक हिस्सा निष्क्रिय हो सकता है, जिससे व्यक्ति को दैनिक कार्यों को करने में समस्या हो सकती है। व्यावसायिक चिकित्सा द्वारा ऐसे रोगियों को उनके प्रभावित हिस्से को फिर से सक्रिय करने, दैनिक गतिविधियों (जैसे खाना बनाना, साफ-सफाई करना, कपड़े पहनना आदि) में सहायता प्रदान की जाती है। इससे उनकी आत्म- निर्भरता बढ़ती है। (2) मिर्गी (Epilepsy) : मिर्गी के दौरे के कारण मस्तिष्क की क्षमताओं पर असर पड़ सकता है, जिससे व्यक्ति की मानसिक स्थिति कमजोर हो सकती है। व्यावसायिक चिकित्सक ऐसे रोगियों को संज्ञानात्मक प्रशिक्षण देकर उनके मस्तिष्क की कार्यक्षमता में सुधार करने का प्रयास करते हैं, ताकि वे समाज और अपने कार्यक्षेत्र में योगदान दे सकें। (3) सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy) : यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चों के शारीरिक विकास में बाधा आती है और उनका मांसपेशीय नियंत्रण कमजोर हो जाता है। व्यावसायिक चिकित्सा द्वारा बच्चों को उनकी शारीरिक गतिविधियों और संतुलन सुधारने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग कर उन्हें दैनिक जीवन में बेहतर तरीके से भागीदारी करने में मदद की जाती है। (4) अस्थि- मज्जा विकार (Musculoskeletal Disorders) : विकासशील देशों में लोग शारीरिक श्रम और भारी कार्यों के कारण पीठ दर्द, कंधे की समस्याओं और अन्य मांसपेशीय विकारों से पीड़ित होते हैं। व्यावसायिक चिकित्सक इन रोगियों को सही मुद्रा और कार्यप्रणाली सिखाकर उनके दर्द को कम करने और उनके कार्यक्षेत्र में प्रदर्शन सुधारने में मदद कर सकते हैं। (5) ऑटिज्म (Autism) : ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे सामाजिक संचार और व्यवहार में चुनौतियों का सामना करते हैं। व्यावसायिक चिकित्सक इन बच्चों को उनकी इंद्रियों के अनुभवों को व्यवस्थित करने में मदद करते हैं, ताकि वे अपने दैनिक कार्यों में अधिक भागीदारी कर सकें। उदाहरण के तौर पर, बच्चे जो स्पर्श या आवाज के प्रति संवेदनशील होते हैं, उन्हें धीरे-धीरे इन अनुभवों के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा, उन्हें खेल और रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से सामाजिक कौशल सिखाया जाता है। (6) रीढ़ की हड्डी की चोट (Spinal Cord Injury) :
रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण व्यक्ति को चलने-फिरने में कठिनाई हो सकती है, या वह पूरी तरह से बिस्तर पर निर्भर हो सकता है। व्यावसायिक चिकित्सा द्वारा ऐसे रोगियों को उनके शारीरिक क्षमताओं के अनुसार अनुकूलन किया जाता है, जैसे कि व्हीलचेयर का उपयोग, घर या काम की जगह को अनुकूलित करना, और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए आवश्यक उपकरणों का प्रशिक्षण देना। इससे वे अपने दैनिक जीवन के कार्यों में स्वतंत्रता हासिल कर सकते हैं।
बिहार कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी और व्यावसायिक चिकित्सा के एचओडी सह सीओ डॉ. किशोर कुमार ने जानकारी दी कि ओपीडी में प्रतिदिन स्ट्रोक, सेरेब्रल पाल्सी, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी आदि के कई मरीज व्यावसायिक चिकित्सा हस्तक्षेप प्राप्त कर रहे हैं और इसका लाभ उठा रहे हैं। प्रत्येक वर्ष, हर आयु समूह के हजारों मरीजों का उपचार किया जाता है। उन्होंने बताया कि बिहार कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी एंड ऑक्यूपेशनल थेरेपी, पटना को एआईओटीए और डब्ल्यूएफओटी से मान्यता प्राप्त है।
एचओडी, विभागाध्यक्ष (ऑक्यूपेशनल थेरेपी) डॉ. प्रियदर्शी आलोक ने बताया कि ऑक्यूपेशनल थेरेपी में स्नातक और परास्नातक स्तर के पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रत्येक बैच में 20 छात्र-छात्राओं का प्रवेश होता है । देश में AIOTA से मान्यता प्राप्त ऑक्यूपेशनल थेरेपी के 30 कॉलेज हैं। इन कॉलेजों से योग्य व्यावसायिक चिकित्सक (O T S) अपने निजी क्लिनिक के माध्यम से, पुनर्वास केंद्रों में, एनजीओ के माध्यम से और सरकारी तथा निजी अस्पतालों में मरीजों को व्यावसायिक चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
व्यावसायिक चिकित्सा स्वास्थ्य सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है। यह न केवल व्यक्तियों की जीवन गुणवत्ता को सुधारता है, बल्कि उन्हें समाज और कार्यक्षेत्र में सशक्त भी बनाता है।
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