पटना की सांस्कृतिक यात्रा के दस्तावेज़ रूपी इस किताब में पंडित रवि शंकर और पंडित भीमसेन जोशी से लेकर बेग़म अख़्तर और रोशन आरा बेग़म की यादें दर्ज़ हैं…
पटना, 12 फ़रवरी: आज दिनांक 12 फ़रवरी को पटना के बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर में कलात्रयी द्वारा आयोजित ‘छंद यात्रा’ समारोह में लब्धप्रतिष्ठ सरोद वादक तथा संगीत इतिहासकार, प्रो. सी एल दास द्वारा बिहार, विशेष रूप से पटना की सांस्कृतिक यात्रा पर लिखित ‘समय से परे स्वर छंदों की यात्रा’ पुस्तक का लोकार्पण हुआ। डॉ. रेखा दास और रीना सोपम द्वारा इस पुस्तक का संपादन किया गया है। बहुचर्चित कलाकार और फोटो जर्नलिस्ट, श्यामल दास ने इसकी डिजाइनिंग की है।
दिल्ली स्थित कनिष्क पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशित यह किताब ‘समय से परे स्वर छंदों की यात्रा’ दरअसल संगीत विद्वान प्रो. सी एल दास के पटना सहित पूरे बिहार के सांस्कृतिक परिदृश्य और गतिविधियों से जुड़ी स्मृतियों का एक संकलन है।
कलात्रयी द्वारा आयोजित इस पुस्तक लोकार्पण समारोह में बतौर विशिष्ट अतिथि जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, सांसद, महराजगंज, बिहार शामिल हुए। अन्य मुख्य वक्ताओं के रूप में आनंदी प्रसाद बादल, पूर्व अध्यक्ष, बिहार ललित कला अकादमी, डॉ. रामवचन राय, सदस्य, बिहार विधान परिषद, एन के अग्रवाल, शैक्षणिक सलाहकार, शिक्षा विभाग, सुशील कुमार, एस पी, आर्थिक अपराध इकाई, बिहार, डॉ. पुष्पम नारायण, संगीत विभागाध्यक्ष, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय तथा कला पत्रकार आशीष मिश्र ने कार्यक्रम में शिरकत की।
इस किताब और इसके लेखक के बारे में चर्चा करते हुए डॉ. रेखा दास ने कहा कि प्रो. सी एल दास एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे। देश की आजादी के बाद के वर्षों में बिहार में जो सांस्कृतिक परिदृश्य था और संगीत परंपरा व संगीतकारों की जो दशा थी, उसे एक दिशा देने में उन्होंने महती भूमिका निभाई।
वे अंग्रेजी साहित्य के अध्यापक रहे। लेकिन उनके व्यक्तित्व का विस्तार कई क्षेत्रों में था। वे सरोद वादक, पद्म विभूषण उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ के शिष्य थे और उनके ज़रिए ही मैहर घराने की संगीत परंपरा बिहार आई। बिहार में कला लेखन की नींव रखने में उनका अहम योगदान रहा। अपने कॉलेज के दिनों से ही उन्होंने कला लेखन की शुरूआत कर ली थी। हाथरस, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित संगीत पत्रिका में उन्होंने 1950 के दशक में ही आकाशवाणी के अखिल भारतीय संगीत समारोह की समीक्षा तथा संगीतकारों पर फीचर लिखना शुरू कर दिया था। 1960 के दशक से बिहार के समाचार पत्रों में कला लेखन की शुरुआत का श्रेय भी उन्हें जाता है। वे एक कुशल आयोजक के अलावा एक उदारमन गुरु भी थे।
इतनी भूमिकाओं को जीते-निभाते, प्रो. दास ने पटना और बिहार के अन्य शहरों में शास्त्रीय संगीत परंपरा और संगीतकारों की परिस्थिति और यहाँ की सांस्कृतिक गतिविधियाँ को जैसा देखा-सुना उसे उसी रूप में पाठकों से साझा किया है।
इस पूरे संकलन का नायक मूलतः पटना है जिसके इर्द गिर्द घूमती है शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकारों की गतिविधियां। इसमें ग़ज़ल साम्राज्ञी बेगम अख्तर से जुड़ी घटनाएँ हैं और ख़याल गायिका रोशन आरा बेगम के बचपन की बातें भी वर्णित हैं। पंडित रवि शंकर के पटना में बिताए दिनों की यादें भी हैं और उनके गुरु, पद्म विभूषण उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ के पटना प्रवास की विस्तृत चर्चा भी। बिहार के ध्रुपद गायक पंडित रामचतुर मल्लिक से लेकर भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी की पटना से जुड़ी यादें भी इसमें दर्ज़ हैं। साथ ही, पटना में होनेवाले दशहरा संगीत समारोह की भी विस्तार से चर्चा की गई है। आरंभ के कुछ अध्यायों में दरभंगा राज के अनन्य संगीत प्रेम और कला संरक्षण पर भी लंबी चर्चा है।
सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने अपने संबोधन में कहा कि यह किताब बिहार, विशेष रूप से पटना के सांस्कृतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। उन्होंने आगे कहा कि इस किताब को पढ़कर नई पीढ़ी को कला सीखने-समझने की प्रेरणा मिलेगी। यह किताब सही मायने में एक धरोहर है जिसके बहाने युवा पीढ़ी को बिहार और पटना की संस्कृति के बारे में अहम जानकारियाँ मिलेंगी।
सुशील कुमार जो प्रो. सी एल दास के शिष्य रहे हैं, उन्होंने उन्हे एक महान कलाकार के साथ-साथ एक आदर्श शिक्षक की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि वे विद्यार्थियों में कला और साहित्य के प्रति लगाव पैदा करने वाले जादूगर थे।
डॉ. एन के अग्रवाल ने कहा कि प्रो सी एल दास बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने बिहार की धरोहर को संभालने और सहेजने का महत्वपूर्ण काम किया। यह किताब बिहार की सांस्कृतिक यात्रा का दस्तावेज है। उन्होंने यह घोषणा की कि यह किताब इंटैक के दिल्ली चैप्टर के माध्यम से विश्व स्तर पर प्रसारित की जाएगी।
डॉ. पुष्पम नारायण ने कहा कि प्रो सी एल दास एक व्यक्तित्व नहीं बल्कि एक संस्थान थे। उन्होंने कला को अपने परिवार में इस तरह बढ़ाया कि यह परिवार अब कला की त्रिवेणी बन गया है।
वरिष्ठ चित्रकार आनंदी प्रसाद बादल ने कहा कि प्रो दास ने अपना पूरा जीवन संगीत कला परंपरा को समर्पित कर दिया था। डॉ. रामवचन राय ने कहा कि प्रो दास ने पूरे धैर्य के साथ कला की साधना तो की ही, वे निःस्वार्थ भाव से जीवनपर्यन्त संगीत की सेवा व प्रचार-प्रसार भी करते रहे। पूरा दास परिवार कला के सेवा में रत है और इस कारण यह परिवार स्तुत्य है।
आशीष मिश्र ने कहा कि यह किताब बिहार की सांस्कृतिक यात्रा की झाँकी है जिसे पढ़कर युवा पीढ़ी को बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी। अभिजीत कश्यप ने प्रो दास के साथ बिताए पारिवारिक क्षणों को याद किया।
कलात्रयी सचिव, डॉ. रमा दास ने कहा कि मोटे तौर पर यह किताब बिहार की सांस्कृतिक यात्रा के उन अनछुए पहलू का दस्तावेजीकरण है जिसने बिहार को एक सांस्कृतिक पहचान दिलाई थी और जिसकी नींव पर आज भी बिहार अपनी सांस्कृतिक साख बनाए हुए है।
इस किताब में देश के दिग्गज कलाकारों और संगीत समारोहो की दुर्लभ तस्वीरें हैं और लगभग सभी तस्वीरें प्रो. दास द्वारा ली गईं हैं। हालांकि, वे एक शौकिया फोटोग्राफर थे, लेकिन उनके द्वारा ली गई तस्वीरें हमें आजादी के बाद के वर्षों में बिहार में सांस्कृतिक परिदृश्य से रूबरू कराने का एकमात्र जरिया हैं।
पूरे समारोह का संचालन सोमा चक्रवर्ती ने किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रीता दास ने किया। इस समारोह बड़ी संख्या में पटना समेत दरभंगा, नालंदा, गया, मधुबनी और छपरा से आए कला प्रेमी और कलाकारों ने भाग लिया।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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