किसी भी देश के लिए उसके अतीत की गौरव का विषय हो सकता है और ये गौरव गाथा उसके स्मारक सुनाते हैं। अतीत की कहानियाँ, महापुरुषों, युद्धों, कला-संस्कृति और साहित्य में नजर आती हैं। इसलिए युद्दों के स्मारक, भवन-मंदिर, कला के प्रतिमान, मूर्तियाँ और साथ-साथ पुस्तकें, विशेषकर पांडुलिपियाँ भी राष्ट्रिय धरोहर होती हैं। ऐसी धरोहरों के संरक्षण और प्रचार को बढ़ावा देने के लिए 18 अप्रैल को हर वर्ष विश्व धरोहर दिवस (World Heritage Day) मनाया जाता है। इसकी शुरुआत तो विश्व स्मारक दिवस के रूप में हुई थी लेकिन यूनेस्को ने बाद में इसे विश्व धरोहर दिवस में बदल दिया। पहली बार 1968 में विश्व की सभी प्रसिद्ध इमारतों और प्राकृतिक स्थलों की सुरक्षा का प्रस्ताव रखा गया। इसे स्टॉकहोम में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में पारित किया गया। जब यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सेण्टर की स्थापना हुई तो 18 अप्रैल 1978 से 12 स्थलों को विश्व धरोहर मान लिया गया। चार वर्ष बाद 18 अप्रैल 1982 से ट्युनिसिया में “इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ मोन्युमेंट्स एंड साइट्स” ने सबसे पहला विश्व धरोहर दिवस मनाया। अगले वर्ष नवम्बर 1983 में यूनेस्को ने स्मारक दिवस को विश्व धरोहर दिवस के रूप में मनाने को मंजूरी दी और इसके साथ ही 18 अप्रैल विश्व भर के लिए धरोहर दिवस बन गया।
हर वर्ष विश्व धरोहर दिवस के लिए एक विशेष विषय होता है, जैसे 2024 के लिए “विविधता की खोज और अनुभव” थीम था। इस वर्ष 2025 का थीम “आपदाओं और संघर्षों से खतरे में पड़ी विरासत: ICOMOS की 60 वर्षों की कार्रवाइयों से तैयारी और सीख” रखा गया था। किसी भी स्थल के विश्व धरोहर घोषित होते ही वहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या भी बढ़ती है और इससे उस जगह की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद और विश्व संरक्षण संघ दो ऐसे संगठन हैं जो स बात का आंकलन करते हैं कि कौन सा स्थल विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया जायेगा। वर्ष में एक बार समिति की बैठक होती है और जगहों का चयन होता है। इस वर्ष भारत के लिए विश्व धरोहर दिवस पर दो अच्छी खबरें आई। श्रीमद् भगवद्गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र को इस वर्ष यूनेस्को ने “मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर” में शामिल कर लिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं एक्स पर पोस्ट के माध्यम से इस जानकारी को साझा किया। उनसे थोड़ा ही पहले कला एवं संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत इस मुद्दे को पोस्ट करके इसकी जानकारी दे चुके थे। इस मुद्दे पर पोस्ट करते हुए श्री शेखावत ने लिखा, “श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को अब यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया गया है। यह वैश्विक सम्मान भारत के शाश्वत ज्ञान और कलात्मक प्रतिभा का जश्न मनाता है। ये कालातीत रचनाएँ साहित्यिक खजाने से कहीं अधिक हैं – वे दार्शनिक और सौंदर्यवादी आधार हैं जिन्होंने भारत के विश्व दृष्टिकोण और हमारे सोचने, महसूस करने, जीने और अभिव्यक्त करने के तरीके को आकार दिया है। इसके साथ ही, अब हमारे देश के 14 अभिलेख इस अंतर्राष्ट्रीय रजिस्टर में शामिल हो गए हैं।“
प्रधानमंत्री मोदी की एक्स पोस्ट
यूनेस्को महानिदेशक ऑड्रे अज़ोले ने कहा, “दस्तावेजी विरासत दुनिया की स्मृति का एक आवश्यक लेकिन नाजुक तत्व है। यही कारण है कि यूनेस्को मॉरिटानिया में चिंगुएट्टी के पुस्तकालयों या कोटे डी आइवर में अमादौ हंपते बा के अभिलेखागार जैसे संरक्षण में निवेश करता है, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करता है, और इस रजिस्टर को बनाए रखता है जो मानव इतिहास के व्यापक धागों को रिकॉर्ड करता है।” यूनेस्को ने गुरुवार को कहा कि उनके मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में कुल 74 नई प्रविष्टियाँ की गईं, जिससे कुल अंकित संग्रहों की संख्या 570 हो गई है। भारत के लिए देखा जाये तो विश्व धरोहरों की सूची में भारत की मौखिक परम्पराओं, नृत्य-नाटक आदि, परंपरागत चित्रकला/मूर्तिकला, और ज्ञान परम्पराओं के अलावा त्योहारों और उनके मनाने के तरीकों को भी जगह मिली है।
भारत की ओर से 2008 में इस सूची में वेदपाठ, रामलीला का मंचन, और कुटीयट्टम (संस्कृत नाटक मंचन) शामिल हुआ और अगले ही वर्ष 2009 में गढ़वाल (हिमालय) क्षेत्र का पर्व और उससे जुड़े नाट्य रम्मन को शामिल किया गया। फिर 2010 में केरल के परम्परागत नाट्य और नृत्य मुडीयेट्टू के साथ साथ छाऊ नृत्य और राजस्थान के कालबेलिया नृत्य को शामिल किया गया। लद्दाख की बौद्ध परंपरा का पाठ जो हिमालय के लद्दाख क्षेत्र के अलावा जम्मू-कश्मीर के कुछ इलाकों में भी चलता है, उसे 2012 में जोड़ा गया। मणिपुर का संकीर्तन 2013 में और 2016 में नवरुज और योग को सूची में जोड़ा गया। कुम्भ मेला की बारी 2017 में आई और 2021 से कोलकाता का दुर्गा पूजा उत्सव इस सूची में है। गुजरात का गरबा 2023 में आया। जिन पांडुलिपियों को इस वर्ष स्थान मिला है वो भंडारकर ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टिट्यूट में रखी नाट्यशास्त्र की पांडुलिपि है और शारदा लिपि में राजानकराम द्वारा लिखित भगवद्गीता की पांडुलिपियाँ हैं।
बिहार के लिए यूनेस्को की सूची में डालने लायक कई चीजें हैं जिनपर ध्यान थोड़ा कम दिया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर गरबा जैसा ही एक नृत्य झीझिया बिहार के मिथिलांचल में होता है। इसके अलावा जैन परम्पराओं से जुड़े कई स्थल बिहार में हैं जैसे कुंडनपुर। सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक मुंडेश्वरी देवी का मंदिर भी एक हेरिटेज साईट हो सकता है। प्राकृतिक धरोहरों की बात करें तो नदियों में पाए जाने वाले डॉलफिन को कोसी और गंगा के क्षेत्र में देखा जा सकता है जिसे अलग से संरक्षित करने की आवश्यकता है। ऐसे ही प्रवासी पक्षियों के लिए बेगुसराय-खगड़िया का क्षेत्र होता है। उम्मीद की जाए कि कभी बिहार का पर्यटन विभाग नींद से जागेगा और इन स्थलों को भी विश्व धरोहरों में शामिल करने की मुहीम शुरू होगी।