जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 10 नवम्बर ::
आठ दिवसीय लक्ष्मी पूजनोत्सव का समापन महापर्व छठ के पारण के दिन देवी-देवताओं की मूर्तियां पूरे गाँव में भ्रमण करने के बाद मूर्तियों का विसर्जन किया गया। इस वर्ष भी दीपावली के दिन 31 अक्टूबर को प्रारम्भ लक्ष्मी पूजनोत्सव का महापर्व छठ के पारण के दिन 08 नवम्बर को देवी- देवताओं के प्रतिमाओं के विसर्जन तथा 09 नवम्बर को भंडारा के साथ समापन हुआ।
ध्यातव्य है कि बिहार प्रदेश के नालन्दा जिला अन्तर्गत चंडी प्रखंड के नरसंडा ग्राम मे एक कायस्थ परिवार द्वारा दशको से आयोजित की जाती रही है आठ दिवसीय लक्ष्मी पूजनोत्सव, जिसका प्रारम्भ दीपावली के दिन होता है और समापन महापर्व छठ के पारण के दिन किया जाता है।
आठ दिवसीय लक्ष्मी पूजनोत्सव का आयोजन इस कायस्थ परिवार द्वारा अपने पारिवारिक भूखंड पर पारिवारिक व्यय से निर्मित पारिवारिक मंदिर मे दशको से की जाती रही। लक्ष्मी पूजनोत्सव के लिए मंदिर परिसर में ही कारीगरों से देवी-देवताओं की मूर्तियां बनवाई जाती है और उनका साज- सज्जा कराई जाती है, पूरे मंदिर परिसर में रोशनी की व्यवस्था कराई जाती है, ढ़ोल-नगाड़ा बजवाया जाता है, पुरोहित द्वारा पूरे विधि-विधान से प्रतिदिन पूजा कराई जाती है, हलवाई से प्रसाद बनवाकर प्रतिदिन वितरित किया जाता है।
विसर्जन के पूर्व पूजा स्थल पर देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का विधि- विधान से पूजा की गई तथा देवी- देवताओं को तिलक-सिंदूर लगाया गया। महिलाओं द्वारा देवियों की खोईचाँ भराई कर विदाई दी गई, तत्पश्चात् गाजे-बाजे के साथ देवी-देवताओं के प्रतिमाओं को गाँव भ्रमण कराते हुए स्थानीय तालाब में विधि-विधान पूर्वक प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया।
वर्त्तमान में इस परम्परा को नई पीढ़ी के रूप में जनकनन्दनी सिन्हा एवं उनकी सुपुत्री अर्पणा बाला तथा अर्पणा बाला की सुपुत्री शाकम्भरी और सुपुत्र अंशुमाली, शिवम् जी सहाय और सुन्दरम् द्वारा पूरी श्रद्धा और मनोयोग से निर्वहन किया जाता रहा है।
———–