यह बहस बहुत पुरानी है,

कि  किसकी आँखों में पानी है.

जब से हुई द्रोपदी अस्मिताहीन भरी सभा में,

तब से, भीष्म,द्रोण और कृपा हुए निर्लज्ज,

और बना दुर्योधन और दुशासन अभिमानी है.

यह बहस बहुत पुरानी है,

कि  किसकी आँखों में पानी है.

जहाँ नारी, वीरांगना और देवी कहलाती थी,

आज अपने घर में ही डरी , सहमी और बेगानी है,

कहो आर्यावर्त .क्यूँ तुम्हारी नज़रों में उतर आई बेईमानी है?

यह बहस बहुत पुरानी है,

कि  किसकी आँखों में पानी है.

हर क्षण , हर पल एक बेटी लूटी जाती है,

घर-मोहल्ले, चौक-चौराहे और भरी जवानी में,

पर ये सच भी  अब इसी देश की कहानी है.

यह बहस बहुत पुरानी है,

कि  किसकी आँखों में पानी है.

कौन बचाएगा ललनाओं की इज्जत,

जहाँ शासित -गरीब, लाचार और शोषित है,

और जहाँ शासक ने ही नोच खाने की ठानी है.

यह बहस बहुत पुरानी है,

कि  किसकी आँखों में पानी है.

जहाँ न्याय की तराजू में क़ानून बिकता है,

न्यायाधीश अँधा, गूंगा और बहरा है,

और जिन्हें, तुम्हे तुम्हारा अधिकार न देने की मनमानी है

यह बहस बहुत पुरानी है,

कि  किसकी आँखों में पानी है.

पर तुम डरो  नहीं, गिरो नहीं, रुको नहीं,

तुम स्वरूपा हो, जननी हो और दुर्गा भी हो,

जग मस्तक झुकाएगा, जब नारी बन  जाती झाँसी की रानी है.

यह बहस बहुत पुरानी है,

कि  किसकी आँखों में पानी है.

 

सलिल सरोज

मुखर्जी नगर, नई दिल्ली

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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