जो कहानी आम तौर पर जानी जाती है, वो ये है कि छत्रपति शिवाजी बीजापुर की सल्तनत से लगातार लोहा ले रहे थे। शिवाजी को हराने के लिए, अपनी अनेक बीवियों को कत्ल करने के बाद निकला अफजल खान, छत्रपति के हाथों मारा गया। उसकी फौजों को सेनानायक नेताजी पालकर ने बुरी तरह कुचल दिया था। इस घटना के बाद नेताजी पालकर और छत्रपति ने अलग-अलग दिशाओं में कूच किया। हार से बौखलाई आदिलशाही सल्तनत ने अब छत्रपति शिवाजी को रोकने की अपनी मुहीम पर भी अधिक ध्यान देना शुरू किया। सिद्दी जौहर जैसे सेनापति शिवाजी को पकड़ने निकले और उन्होंने पन्हाला के किले में शिवाजी पर घेरा डाल दिया।

यहाँ से आगे की कहानी छत्रपति के पन्हाला से निकलकर विशालगढ़ पहुँचने की कम और इस क्रम में बालाजीप्रभु देशपांडे ने जो शौर्य दिखाया था, उसकी अधिक हो जाती है। फिल्म देखने पहुंचे दर्शक भी “हर हर महादेव” से यही आशा रखते हैं कि फिल्म तब के घोड़खिंड और आज के पावनखिंड के युद्ध पर ही आधारित होगी। यही वो जगह है जहाँ “हर हर महादेव” दर्शक की अपेक्षा से आगे निकल जाती है। फिल्म बालाजीप्रभु देशपांडे के प्रारंभिक जीवन से आरंभ होती है जहाँ वो छत्रपति के साथ नहीं बल्कि एक बांदल सरदार कृष्णाजी बांदल के लिए काम कर रहे होते हैं। बालाजीप्रभु आयु में शिवाजी से करीब पंद्रह वर्ष बड़े थे।

ये आयु में बड़ा होना, किसी बांदल सरदार के लिए काम करना, सब ऐसी वजहें थीं जो उस काल की राजनीति को भी फिल्म के शुरूआती हिस्से में दर्शा देती है। कुशल योद्धा और सक्षम सरदार कैसे राजनैतिक कारणों से युद्ध से बचने का प्रयास कर रहे होते हैं ये फिल्म की शुरुआत के हिस्से में दर्शाया जाता है। फिर स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार, उस दौर की आदिलशाही व्यवस्था के सरदारों के काम-काज का तरीका, ये भी फिल्म में नजर आता है। फिल्म बाजीप्रभु देशपांडे पर आधारित है, इसलिए जो छत्रपति शिवाजी को देखने जायेंगे, उन्हें थोड़ी निराशा हो सकती है। फिल्म में गीत-संगीत पार्श्व में अपनी भूमिका निभाता है। जिस तरह की ये फिल्म है, उसमें गीतों की विशेष जगह थी भी नहीं, बैकग्राउंड में बजता संगीत ही ठीक लगता है।

हिंदी में बदले गए संवादों में थोड़ी कमी अवश्य लगती है। जिस स्तर के संवाद इस फिल्म में डाले जा सकते थे, वो नहीं हैं। फिल्म मराठी और अन्य भाषाओँ में भी है, उनमें ऐसी समस्या थी या नहीं, पता नहीं, लेकिन हिंदी में तो निश्चित रूप से ये कमी खटकती है। अंत का युद्ध का दृश्य अच्छा बना है, लेकिन वहाँ भी अगर आप “300” जैसी फिल्मों से तुलना कर रहे हैं, तो निराशा हाथ लगेगी। कुल मिलाकर ये अच्छी फिल्म है। थोड़ी सी जानकारी बढ़ाने, थोड़ा सोच को विस्तृत करने, और थोड़े मनोरंजन के लिए “हर हर महादेव” देखी जा सकती है।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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