हिंदी और देशज शब्दों को तेजी से लापता किये जाने के दौर में अगर अचानक किसी से पूछ लें कि “पटवा” मतलब क्या होता है? तो कई लोग शायद चौंक पड़ें। जिसे कॉटन कहते हैं न, उसे बुनने लिए जो प्रयोग किया जाता है, वो पटवा होता है। यानी पटवा टोली का मतलब कपास बुनकर कपड़ा बनाने वाले ही नहीं, “जूट” के थोड़े गरीब बुनकरों की भी टोली होगी, ऐसा माना जा सकता है। बिहार में कई जगह कपास की खेती होती है, इसलिए कई जिलों में “पटवा टोली” भी मिल जाएगी। ऐसी ही एक पटवा टोली है गया जिले के मनपुर प्रखंड की पटवा टोली।
उसका नाम इसलिए नहीं सुनाई दे रहा क्योंकि कोई एनजीओ वहाँ गया और बुनकरों को कोई नयी तकनीक सिखा दी, जिसके बाद “सक्सेस स्टोरीज” छप रही हैं। पटवा टोली के 1000 घरों में कम से कम 200 इंजिनियर हैं। आईआईटी की प्रवेश परीक्षा का रिजल्ट आया है, इसलिए पटवा टोली चर्चा में है। पटवा टोली से जीतेन्द्र कुमार 1991 में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास कर गए। उनकी सफलता से प्रेरित कम से कम 58 युवा थोड़ी मदद मिलते ही 1999 के बाद से आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास कर चुके हैं। घरों के बीच बच्चों के लिए साधारण सी लाइब्रेरी है, जिसमें एसी नहीं, खिड़कियाँ होती हैं। जिन कक्षाओं में वो पढ़ते हैं, वहाँ कोई स्मार्ट बोर्ड नहीं दिखेगा, दीवारों पर प्लास्टर तक नहीं है, लेकिन इससे उनके जोश और जज्बे में कोई कमी आती नहीं दिखती।
साल दर साल छात्र-छात्राओं को इंजिनियर बनने भेजते इस गाँव को सरकार बहादुर का भी शुक्रिया करना चाहिए। भगवान का शुक्र है कि सरकार ने ग्रामीणों और युवाओं के काम में अपनी टांग नहीं अड़ाई, जिससे उनकी पढ़ाई चलती रह सकी। इस तरह 1990 के दौर से यहाँ से पढ़कर, कम से कम 300 छात्र-छात्राएं आईआईटी और 1000 से अधिक छात्र-छात्राएं दूसरे इंजीनियरिंग कॉलेज में जा चुके हैं। राजधानी पटना से करीब 125 किलोमीटर दूर, फल्गु नदी के पास बसे इस गाँव में केवल वहीँ के छात्र-छात्राएं नहीं पढ़ते, यहाँ दूसरे पड़ोस के गावों से भी छात्र-छात्राएं आती हैं। गाँव में अब चंद्रकांत पटेश्वर हैं जो रंजीत, दृगेश्ह्वर, प्रेम लाल, सूरज और किशन चंद जैसे साथियों के साथ मिलकर लाइब्रेरी चलाते हैं। उनके परिवार ने अपनी दो मंजिला इमारत को लाइब्रेरी बना दिया है, ताकि बच्चे पढ़ाई कर सकें।
वृक्ष पाठशाला नाम से उनकी लाइब्रेरी 2022 से ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई में मदद करती है। उस वर्ष 19 छात्र, फिर 2023 में 12, और 2024 में 8 छात्र यहाँ से पढ़कर आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास कर गए। बुनकर परिवारों की आय की बात करें तो इस गाँव में अधिकांश लोग “पॉवर लूम” का प्रयोग करने लगे हैं जिसकी कीमत करीब एक लाख होती है। ये परिवार 12-16 घंटे करघा चलाते हैं जिससे उनकी मासिक आय 15-20000 तक होती है। इस पॉवर लूम के शोर के कारण बच्चे पढ़ नहीं पाते थे, इसलिए वृक्ष पाठशाला को अलग लाइब्रेरी की जगह बनाने की जरुरत पड़ी। इस वर्ष जब 40 बच्चे आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास कर गए तो पटवा टोली एक बार फिर से खबरों में है। हमारी और से ग्रामीणों को इस शौर्य के लिए बधाई!