विदेशी निवेशकों की भारतीय शेयर बाजार से वापसी: मुख्य कारण और प्रभाव
निवेश की निरंतर निकासी जारी
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने अक्टूबर 2024 से भारतीय शेयर बाजार से लगातार निवेश निकाला है। फरवरी 2025 में ही 34,574 करोड़ रुपये (397 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की निकासी हुई, जबकि वर्ष 2025 की शुरुआत से अब तक 1.37 लाख करोड़ रुपये (1,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर) से अधिक की राशि बाजार से बाहर जा चुकी है।
प्रमुख कारण:
भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती – वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली दो तिमाहियों में GDP वृद्धि दर में गिरावट देखी गई।
कंपनियों की लाभप्रदता में गिरावट – सितंबर 2024 की तिमाही में कई भारतीय कंपनियों के मुनाफे में कमी आई।
अमेरिकी टैरिफ नीतियां – ट्रम्प प्रशासन की नई व्यापार नीतियां, जिसमें भारत समेत अन्य देशों पर 2 अप्रैल 2025 से नए टैरिफ लगाने की योजना शामिल है।
अमेरिकी टैरिफ नीतियों का असर
ट्रम्प प्रशासन ने पहले चीन, कनाडा और मैक्सिको से आयातित उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाया और अब भारत पर भी सख्ती की तैयारी कर रहा है। अमेरिका का कहना है कि यदि भारत अपने देश में कुछ उत्पादों पर 100% टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी भारतीय उत्पादों पर समान टैरिफ लगाएगा।
भारतीय उद्योगों पर संभावित प्रभाव:
फार्मा उद्योग – अमेरिका भारतीय दवाओं का सबसे बड़ा बाजार है, टैरिफ बढ़ने से निर्यात प्रभावित होगा।
ऑटोमोबाइल सेक्टर – अमेरिका भारतीय ऑटो उद्योग का बड़ा ग्राहक है, नए टैरिफ से कार और पार्ट्स की बिक्री प्रभावित होगी।
इंजीनियरिंग और टेक क्षेत्र – भारतीय आईटी कंपनियों और मशीनरी उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
डॉलर मजबूत, रुपया कमजोर
अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मजबूती ने भारतीय रुपये को दबाव में डाल दिया है। हाल ही में एक अमेरिकी डॉलर 88 रुपये तक पहुंच गया, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय बाजार कम आकर्षक हो गया।
आगे क्या हो सकता है?
- यदि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कटौती करता है, तो डॉलर कमजोर होगा और भारतीय रुपये को मजबूती मिल सकती है।
- इससे विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में वापसी कर सकते हैं।
क्या भारत की अर्थव्यवस्था इस दबाव से उबर पाएगी? अपनी राय दें!
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की वापसी घट रही, क्या हैं प्रमुख कारण?
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में 20% गिरावट
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भारतीय शेयर बाजार में निवेश 20% तक घट चुका है, और आगे और गिरावट की आशंका जताई जा रही है। निवेशकों की यह बेचैनी भारतीय शेयर बाजार में अस्थिरता को और बढ़ा सकती है।
प्रमुख कारण:
महंगा होता भारतीय शेयर बाजार – विदेशी निवेशकों को भारतीय कंपनियों के शेयर महंगे लग रहे हैं, जबकि चीन और अन्य देशों के शेयर सस्ते उपलब्ध हैं।
अमेरिका में बढ़ती बांड यील्ड – अमेरिकी बॉन्ड यील्ड 4.75% से अधिक हो चुकी है, जिससे निवेश भारत से अमेरिका और अन्य बाजारों में शिफ्ट हो रहा है।
रुपए का अवमूल्यन – डॉलर की मजबूती के कारण 1 USD = ₹88 तक पहुंच चुका है, जिससे भारत में निवेश से होने वाला लाभ कम हो रहा है।
अमेरिकी टैरिफ प्रभाव – ट्रम्प प्रशासन की नई टैरिफ नीतियां भारतीय बाजार में अनिश्चितता बढ़ा रही हैं।
क्या आगे सुधार संभव?
भारतीय खुदरा निवेशक बाजार को संभाल सकते हैं।
यदि अमेरिकी फेड ब्याज दरें घटाता है, तो भारत में विदेशी निवेश लौट सकता है।
रुपये में स्थिरता आने से निवेशकों का भरोसा बढ़ सकता है।
क्या भारतीय बाजार इस संकट से उबर पाएगा? अपनी राय कमेंट में दें!
विदेशी निवेश में 25% की गिरावट, भारतीय शेयर बाजार दबाव में!
सितम्बर 2024: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का भारतीय कंपनियों में निवेश 40,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर था।
फरवरी 2025: यह घटकर 30,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर रह गया, यानी 25% की गिरावट।
मुख्य कारण:
ट्रम्प प्रशासन का रेसिपरोकल टैरिफ (2 अप्रैल 2025 से लागू होने की संभावना)।
बढ़ती बांड यील्ड और डॉलर की मजबूती – विदेशी निवेशक भारत की बजाय अमेरिका और अन्य उभरते बाजारों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
भारतीय बाजार में अस्थिरता – विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने बाजार में चिंता बढ़ा दी है।
बाजार को सहारा देने वाले कारक:
भारतीय संस्थागत निवेशक (DII) और खुदरा निवेशक (Retail Investors) सक्रिय हैं।
स्थानीय निवेशकों की रुचि के कारण बाजार में भारी गिरावट नहीं आई।
क्या भारतीय बाजार विदेशी निवेशकों के बिना स्थिर रह पाएगा? आपकी राय क्या है?
वैश्वीकरण से यू-टर्न! अमेरिका की नई नीति और वैश्विक बाजार पर प्रभाव
वैश्वीकरण बनाम संरक्षणवाद
अब तक विकसित देशों, खासकर अमेरिका, ने वैश्वीकरण की नीति अपनाते हुए अन्य देशों पर मुक्त व्यापार का दबाव डाला था। लेकिन अब ट्रम्प प्रशासन इस नीति से पीछे हटते हुए ‘अमेरिका फर्स्ट’ रणनीति अपना रहा है।
अमेरिका का टैरिफ युद्ध – फायदे या नुकसान?
अंधाधुंध टैरिफ बढ़ाने से:
घरेलू कंपनियों को अस्थायी लाभ
आयातित वस्तुएं महंगी, जनता पर महंगाई का बोझ
मुद्रा स्फीति (Inflation) बढ़ने का खतरा
आर्थिक मंदी (Recession) की संभावना बढ़ी
क्या भारत पर असर पड़ेगा?
भारतीय निर्यात पर दबाव – अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पाद महंगे होंगे
भारतीय निवेशकों के लिए अनिश्चितता – विदेशी निवेश घट सकता है
स्थानीय उत्पादन और स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिल सकता है
क्या अमेरिका की नई नीति वैश्वीकरण की समाप्ति की ओर संकेत कर रही है? अपनी राय साझा करें!
रूस ने चीन से आयातित कारों पर लगाया टैरिफ! क्या यह नया व्यापारिक युद्ध है?
रूस का चीन पर बढ़ता व्यापारिक दबाव
रूस में 3/4 ऑटोमोबाइल बाजार पर चीन का कब्जा हो चुका है। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस को चीन से कारों का आयात बढ़ाना पड़ा, लेकिन अब रूस को यह एकतरफा निर्भरता भारी लग रही है।
रूस का नया फैसला: टैरिफ और स्वदेशीकरण
चीन से आयातित चारपहिया वाहनों पर टैरिफ बढ़ाया
स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना
रूस में नई ऑटोमोबाइल विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने की तैयारी
क्या यह अमेरिका-रूस-चीन व्यापार युद्ध की शुरुआत है?
अमेरिका ने चीन, भारत, कनाडा और अन्य देशों पर टैरिफ बढ़ाया, अब रूस भी चीन के खिलाफ कदम उठा रहा है। इसका असर वैश्विक बाजार पर पड़ सकता है।
क्या रूस का यह फैसला उसकी अर्थव्यवस्था के लिए सही साबित होगा? अपनी राय दें!
अमेरिका में मंदी की आहट! टैरिफ युद्ध का बढ़ता असर?
मंदी की बढ़ती संभावनाएं
जेपी मॉर्गन: मंदी की संभावना 17% से बढ़कर 31%
गोल्डमैन सैक्स: मंदी की संभावना 14% से बढ़कर 24%
उपभोक्ता खर्च में गिरावट: जनवरी 2025 में 0.2% की कमी
अमेरिकी शेयर बाजार पर असर
NASDAQ: 7% गिरावट
Dow Jones: 4% गिरावट
S&P 500: 5% गिरावट
टैरिफ नीतियों की अस्थिरता
ट्रम्प प्रशासन लगातार टैरिफ नीतियों में बदलाव कर रहा है, जिससे निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ रही है।
अमेरिका को “फिर से महान” बनाने की नीति उलटी पड़ सकती है, जिससे मंदी का खतरा बढ़ रहा है।
वैश्विक बाजार पर असर
अमेरिका की अस्थिर नीतियों के कारण भारतीय शेयर बाजार सहित अन्य देशों के पूंजी बाजार पर भी दबाव बढ़ रहा है।
क्या ट्रम्प की टैरिफ रणनीति अमेरिका को मजबूत बनाएगी या मंदी की ओर धकेल देगी? अपनी राय दें!
अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत, पर विकास दर में गिरावट संभव!
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सकारात्मक संकेत
150,000 नए रोजगार (फरवरी 2025) – मंदी का संकेत नहीं, बल्कि मजबूत अर्थव्यवस्था का प्रमाण
ब्याज दरों में संभावित कटौती – US फेडरल रिजर्व जल्द ही दरें घटा सकता है
बांड यील्ड में गिरावट – डॉलर पर दबाव बढ़ सकता है, रुपए को मिल सकती है मजबूती
विकास दर में संभावित गिरावट
मॉर्गन स्टैनली का अनुमान: 2025 में अमेरिकी विकास दर 1.5% तक आ सकती है
धीमी अर्थव्यवस्था = निवेशकों के लिए कम लाभप्रद माहौल
भारत के लिए संभावित असर
विदेशी निवेशकों की वापसी संभव – कमजोर डॉलर से भारतीय बाजार में निवेश लौट सकता है
रुपए को मजबूती – इससे विदेशी पूंजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा
क्या ब्याज दरों में कटौती से अमेरिकी मंदी का खतरा टल जाएगा? अपनी राय साझा करें!