बैरगिया नाला जुलुम जोर।

तहं साधु भेष में रहत चोर।

बैरागिया से कछु दूर जाय।

एक ठग बैठा धूनी रमाय।

कछु रहत दुष्ट नाले के पास।

कछु किए रहत नाले में वास।

सो साधु रूप हरिनाम लेत।

निज साथिन को संकेत देत।

जब जानत एहिके पास दाम।

तब दामोदर को लेत नाम।

जब बोलत एक ठग वासुदेव।

तेहिं बांस मार सब छीन लेव।

लगि जात पथिक नाले की की राह।

पहिलो ठग बैठेहिं डगर माह।

सबु देहु बटोरी धन थमाय।

नहिं तो होइ जाई बुरा हाल।

हम मालिक तुमसे कहें सांच।

है काम हमारो गान नाच।

नाचै गावै का कार बार।

तबला तम्बूरा धन हमार।

ठग बोले नाचो गावो गान।

हम खुशी होवै तब देहि जान।

चट नाच गान तहं होन लाग।

ठग भए मस्त सुन मधुर राग।

एक चतुर पथिक मन भए सोच।

हम नवजन हैं ये तीन चोर।

बैरगिया नाला जुलुम जोर।

नव पथिक नचावत तीन चोर।

अस सोचत मन उपजी गलानि।

तब लागे गावै समय जानि।

जब तबला बाजे धीन-धीन।

तब एक-एक पर तीन-तीन।

दीनी सबकी ठगही भुलाय।

सुख सोवै अपने गांव जाय।

आज जार्ज पंचम सुराज।

नहिं ठग चोरन को रह्यो राज

छंटि गए दुष्ट हटि गए चोर।

पटगा बैरगिया अजब शोर।।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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