चलती फिरती लाशें हैं ये,
दफन हो गया इनके दिल,
कोई जिए या कोई मरे,
जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।
इंसानियत मर चुकी,
जिंदा इंसान है,
अपने अहंकार में मदमस्त,
बताता खुद को महान है,
जात धर्म की चादर ओडकर,
दिखाते अपनी पहचान है,
अगर चादर हट जाए,
तो नंगा ये इंसान है।
खुद का हौसला बड़ाना होगा,
ये गिराते हैं, उठाते नहीं,
जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।
तुम कुछ करने जाओ,
आगे ये खड़े हो जाएंगे,
तुम्हारी कमियां भरपूर दिखाएंगे,
दो कोड़ी के ज्ञान में फसाकर,
तुमको रोकते जाएंगे,
सही के लिए जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।
साथ तो छोड़ो,
सही रास्ता भी न दिखाएंगे,
गलत में तुमको भटकाएंगे,
पर तुम मंजिल से भटकना नहीं,
सही के लिए जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।
अमीरी शोहरत दिखाती है,
गरीबी मजबूरी में लिपट जाती है,
अमीर शोहरत के नशे में समझता नहीं,
गरीब मजबूरी में मजबूर,
बेचारा जुबां खोलता नहीं।
एक मर गया ,
एक मार दिया गया,
जिंदा लाशें है ये,
जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।
खुद उठो,
कोई नहीं उठाने आएगा,
उठाने वाले चंद,
गिराने वाले हजार मिलते हैं,
जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।
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Wah kya baat h ankit ji bahut khub kaha h aap bilkul right💯👍🙏