“अजी नाम में क्या रखा है?” एक मशहूर हस्ती ने कहा था। पंचतंत्र में पात्रों के नाम देखें, तो ये वक्तव्य बचकाना लगता है। जैसे कि सरोवर का नाम है फुल्लोत्पल। संधिविच्छेद करने पर फुल्ल का अर्थ होगा खिला हुआ और उत्पल का अर्थ है कमल। ये बहुव्रीहि समास होगा। दो बराबर महत्वपूर्ण शब्दों को मिलाकर जो नया शब्द बना, उसका अर्थ “जहाँ कमल खिले हों” अर्थात सरोवर, अपनेआप ही हो गया। ये जो सरोवर था, उसमें एक कछुवा रहता था जिसका नाम था कम्बुग्रीव। सरोवर के पास रहने वाले दो हंसों – संकट और विकट से उसकी मित्रता थी।
एक दिन कम्बुग्रीव घबराया हुआ संकट-विकट के पास आया और बताया कि उसने कुछ मछुआरों की बातें सुनी है। वो लोग अगले ही दिन सरोवर में जाल डालकर मछलियाँ और कछुवे पकड़ने की बात कर रहे थे। कछुवा न तो हंसों की तरह उड़ सकता था, न उसकी धरती पर दौड़ने की गति कोई तीव्र थी। सभी ने मिलकर बचने का कोई उपाय करने की ठानी। कछुवे को एक उपाय सूझा। उसने कहा कि दोनों हंस अगर चोंच में एक डंडी पकड़ कर उड़ें, और कछुवा डंडी को बीच में पकड़ कर लटक जाये, तो हंस कछुवे को उड़ाकर किसी और तालाब में पहुंचा सकते थे। इस युक्ति पर हंसों को थोड़ी आपत्ति थी।
कछुवे की बोलने की आदत थी और उसे हंसों के बीच ऐसे लटक कर उड़ता देखकर लोग कुछ न कुछ कहेंगे तो वो पलट कर जवाब देने लगता। मुंह खोलते ही डंडी छूटती और वो नीचे गिरकर मरता। कछुवा जब बिलकुल चुप रहने को तैयार हुआ, तब कहीं हंस उसे ले जाने को तैयार हुए। अब विकट-संकट के बीच लटका कम्बुग्रीव दूसरे किसी सरोवर की ओर उड़ चला। रास्ते में एक नगर आया और बच्चों ने जब देखा कि कछुवा हंसों के बीच लटका है तो वो दौड़कर ये कौतुहल देखने इकठ्ठा हुए और आपस में बात करते शोर भी करने लगे। थोड़ी ही देर में देखने वालों की भीड़ लगने लगी।
उनकी टिप्पणियों और हँसी उड़ाने से हंसों पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन कछुवा थोड़ी ही देर में चिढ़कर बोल पड़ा, अरे कभी कछुवा नहीं देखा, या हंस नहीं देखे? बोलने के लिए मुंह खोलना था कि डाली छूटी और कछुवा धरती पर गिरकर मारा गया! पंचतंत्र की इस कथा को “दुर्बुधि विनश्यति” नाम से कुछ लोगों ने सातवीं कक्षा में पढ़ा होगा। #पंचतंत्र की ये कथा आज कैसे प्रासंगिक है, सभी के लिए महत्वपूर्ण कैसे होती है, ये समझने के लिए वीडियो –
जहाँ तक नामों के अर्थ की बात है, कम्बु का अर्थ भी गला होता है और ग्रीव का भी। गले से स्वर निकलता है, बोलने का सामर्थ्य मिलता है। विकट-संकट के बीच फंसे कम्बुग्रीव की चर्चा सुनते ही समझ में आ जाता है कि बोलने के कारण कोई कैसे विकट संकट में पड़ सकता है।
