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हमारे पापा के दोस्त झाझी अंकल कहते थे —
“या तो पूरा ईमानदार बन जाओ या पूरा बेईमान, बीच वालों का कोई गुज़ारा नहीं।”
आज की राजनीति में यह लाइन कितनी फिट बैठती है, आप खुद सोचिए…
और हाँ, इसका जनसुराज से कोई लेना-देना नहीं है।
