आजकल बिहार में “हाफिड दफिट” की चर्चा जोरों पर है। जब से सम्राट चौधरी ने affidavit को hafidavit कहा है, विरोधी उनका मज़ाक उड़ाने लगे हैं और सहयोगी उनके बयान को “आम बोलचाल की भाषा” बताने में जुटे हैं।
यह सब देखकर मुझे एक पुराना किस्सा याद आ गया।
एक राजा हुआ करता था — बड़ा शेखीबाज़। हमेशा अपनी बहादुरी और कारनामों की डींगे हांकता रहता। लेकिन उसकी हर बात में कोई न कोई गलती पकड़ ही लेता और कह देता — “राजा जी हांक रहे हैं!”
राजा बहुत परेशान हुआ। उसने तय किया कि अब से उसकी हर हांकी हुई बात को सही साबित करने के लिए एक खास आदमी रखा जाएगा — जिसका काम ही होगा राजा की हर झूठी बात को सच साबित करना।
एक दिन राजा ने कुछ ज़्यादा ही लम्बी छोड़ दी। उसने दरबार में कहा —
“कल मैं शिकार पर गया था। मैंने हिरन के पैर में तीर मारा। वो तीर पैर को छेदते हुए हिरन के माथे में जा लगा!”
दरबारी हैरान रह गए — “ये कैसे हो सकता है?”
राजा ने तुरंत अपने उस चालाक आदमी को बुलाया, जो उसकी हर बात सही साबित करता था।
राजा बोला — “अब तू बता, ये कैसे मुमकिन हुआ?”
आदमी बोला —
“महाराज, आप तो जानते ही हैं, उस समय हिरन अपने पैर से सिर खुजा रहा था। तभी आपने तीर चलाया, जो पैर को छेदते हुए सीधे माथे में जा लगा!”
दरबार तालियों से गूंज उठा। झूठ सच बन गया।
बहरहाल, आजकल यही कहानी भाजपा की आईटी सेल भी चला रही है। सम्राट चौधरी के ‘हाफिड दफिट’ वाले बयान को बचाने के लिए तरह-तरह के कुतर्क दिए जा रहे हैं। अजीत भारती से लेकर तमाम आईटी सेल के योद्धा उसी “राजा के दरबारी” की तरह तर्क गढ़ रहे हैं।
मगर सच्चाई यह है कि affidavit ही होता है, haafiddavit नहीं।
सम्राट चौधरी को शायद तेजस्वी यादव से थोड़ा सीखने की ज़रूरत है। तेजस्वी भले नौवीं पास हों, मगर अंग्रेज़ी ठीक-ठाक जानते हैं।
सातवीं पास को नौवीं पास से सीखने में कोई बुराई नहीं।
और नहीं तो राजा की तरह एक आदमी नियुक्त कर लीजिए — जो हर बार आपकी गलती पर वैसा ही पर्दा डाल दे, जैसा उस चालाक दरबारी ने अपने राजा के झूठ पर डाला था।