नई दिल्ली।
देश में ई-20 (20% इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल) की चर्चा जोरों पर है। कोई कह रहा है नितिन गडकरी किसी ग्रुप को फायदा पहुँचा रहे हैं, कोई कह रहा है यह हरी ऊर्जा की क्रांति है। गडकरी जी ने इसे “पेड कैंपेन” बता कर खारिज कर दिया। ठीक है साहब, मान लिया।
लेकिन एक छोटा-सा, मासूम-सा सवाल तो बनता है:
रूस से हमें तेल सस्ता मिल रहा है।
कंपनियां कहती हैं, सरकार कहती है—हम सस्ते में खरीद रहे हैं।
तो फिर पंप पर रेट वही पुराने क्यों?
इथेनॉल का तर्क… और जनता का दर्द
सरकार कहती है, “इथेनॉल मिलाएँगे तो आयात पर निर्भरता घटेगी, किसान कमाएँगे, पर्यावरण बचेगा।”
अरे भाई, बढ़िया विचार है। लेकिन जब आप 20% इथेनॉल मिला रहे हैं—चाहे कहीं से भी मंगाइए—तो कम से कम उस 20% का फायदा तो जनता को भी मिलना चाहिए।
और अगर कोई ग्राहक शुद्ध पेट्रोल चाहता है तो? पंप पर उसका विकल्प ही क्यों नहीं?
कीमत बताइए:
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ई-20 इतना रुपये
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बिना इथेनॉल इतना रुपये
जनता खुद फैसला कर लेगी।
विकल्पों का विलोप
यही पैटर्न हर जगह है।
बिजली में प्रीपेड स्मार्ट मीटर—पोस्टपेड का विकल्प गायब।
टेलीकॉम में प्रतिस्पर्धा की बात थी, अब बचे हैं बस गिने-चुने खिलाड़ी।
सरकार कहती थी—“प्रतिस्पर्धा से दाम घटेंगे।”
पर ज़मीनी हकीकत—दाम वही, विकल्प कम।
असली सवाल
तो गडकरी जी, ये इथेनॉल मिक्स की बहस, पैड कैंपेन का आरोप—सब ठीक।
पर सबसे पहले बताइए, मेरा हिस्सा कहाँ है?
रूस से सस्ता तेल आ रहा है, देश के नाम पर खरीदा जा रहा है।
पर देश के लोगों की जेब में उसका असर कब आएगा?
बाकी बहस बाद में होगी।
पहले पंप पर सस्ता पेट्रोल दिखाइए, फिर पर्यावरण पर लेक्चर दीजिए।
Bahut Sundar ❤