अंग्रेजी किताब क्यों ? क्योंकि जिस पीढ़ी को आप धर्म और उसकी छोटी-मोटी बातें पढ़ाना चाहते हैं, वो तो अंग्रेजी में ही पढ़ती है! आपने खुद उन्हें इंग्लिश मीडियम वाले कान्वेंट स्कूल में भर्ती करवाया था भाई! करवाया था न? तो अब जब उनके धर्म के बारे में कुछ सीखने की बारी है तो उन्हें किताबें भी अंग्रेजी में ही देनी पड़ेंगी। नहीं ये किताब हिंदी अनुवाद में भी नहीं आती। मुझे नहीं लगता कि हिंदी के प्रकाशक ऐसी किताबें लिखने के लिए किसी लेखक को कोई कॉन्ट्रैक्ट देंगे, इसलिए हिंदी में ऐसी किताबों के आने की संभावना भी न्यूनतम है।
 
तो जबतक हमलोग हिंदी में ऐसी किताबों के आने की प्रतीक्षा करते हैं, तबतक चलिए देखते हैं कि ये किताब किस विषय पर है। पिछले पांच हज़ार वर्षों में देखें तो हिंदुत्व में काफी परिवर्तन हुए हैं। अरे नहीं! कहीं आप कहने वाले हैं कि दो हज़ार वर्ष ही कहना चाहिए न? तो याद दिला दें कि करीब 2500 वर्ष पहले का तो चन्द्रगुप्त मौर्य का ही काल होता था! खैर, इस किताब को लिखने में करीब सात वर्षों का समय लगा था। ये वेदों से शुरू करती है, कैसे पाश्चात्य अनुवाद करने वालों ने उनका अनुवाद किया और वो शंका की दृष्टि से क्यों देखे जाने चाहिए, इसपर भी बात की गयी है।
 
वहाँ से थोड़ा आगे बढ़ते ही बात अश्वमेघ, राजसूय जैसे यज्ञों पर पहुँचती है। इनके नाम तो आम तौर पर टीवी पर सुनाई देते हैं, लेकिन ये असल में क्या होते थे, इसपर या तो चर्चा नहीं होती या कुछ धूर्ततापूर्ण बताया जाता है, इसलिए इनका जिक्र जरूरी था। यज्ञों के वृहत आकार, उनके प्रकार, वेदियाँ बनाने के लिए जो प्रमेय प्रयोग में आते थे, उन्हें आज पाइथागोरस थ्योरम के नाम से जाना जाता है, ऐसी जानकारियां भी कभी कभी चौंकाती हैं। सोम यज्ञ के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी है, और उस एक यज्ञ से ही कई यज्ञों का अनुमान लगाना कठिन नहीं।
 
बाद के काल में हिन्दुओं की पूजा पद्दतियों में मूर्ती पूजा का भी प्रवेश हुआ। वो कितनी गलत है, कितनी सही इसपर भी कुछ बातें हैं। बौद्ध धर्म से सनातनी हिन्दुओं की भेंट और उनके परस्पर संबंधों की भी बात है। आगे पुराणों की चर्चा आती है। जाहिर है जब उपनिषद की बात होगी तो थोड़ा दर्शन के विषय में और पुराणों के साथ अनेकों देवी-देवताओं की कथाएँ भी आएँगी ही। कुछ बात संस्कारों पर भी हैं, जिसमें सोलह संस्कारों में से प्रमुख एक विवाह भी है। आज की तारिख में हम जैसी पूजा पद्दतियों का पालन करते हैं, जैसी मूर्तियाँ हैं, उनके बारे में अंतिम हिस्से में बात की गयी है। किताब अपने अंत में मन्त्रों में कोई शक्ति होती भी है क्या? या फिर रीति-परम्पराओं के मायने क्या हैं? ऐसे सवालों की चर्चा करते हुए ख़त्म होती है।
 
ये कोई दुबली पतली सी किताब भी नहीं है। अशोक मिश्र की लिखी ये किताब करीब साढ़े पांच सौ पन्नों की है। और कुछ न हो सके तो घर में रख तो सकते ही हैं, किताबें अपने पाठक स्वयं ढूंढ लेती है!
 

By Shubhendu Prakash

शुभेन्दु प्रकाश 2012 से सुचना और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र मे कार्यरत है साथ ही पत्रकारिता भी 2009 से कर रहें हैं | कई प्रिंट और इलेक्ट्रनिक मीडिया के लिए काम किया साथ ही ये आईटी services भी मुहैया करवाते हैं | 2020 से शुभेन्दु ने कोरोना को देखते हुए फुल टाइम मे जर्नलिज्म करने का निर्णय लिया अभी ये माटी की पुकार हिंदी माशिक पत्रिका में समाचार सम्पादक के पद पर कार्यरत है साथ ही aware news 24 का भी संचालन कर रहे हैं , शुभेन्दु बहुत सारे न्यूज़ पोर्टल तथा youtube चैनल को भी अपना योगदान देते हैं | अभी भी शुभेन्दु Golden Enterprises नामक फर्म का भी संचालन कर रहें हैं और बेहतर आईटी सेवा के लिए भी कार्य कर रहें हैं |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You missed