गीतांजलि श्री का कथित उपन्यास जब बुकर के लिए नामित हुआ, तभी से स्वाभाविक ही राजकमल ने इसे जोड़-शोर के साथ बेचना शुरू कर दिया था। अपने पास कुछ प्रकाशनों के अपडेट आते रहते हैं मेल पर, आपके पास भी आते ही होंगे। झट से मैंने ऑर्डर की प्रक्रिया शुरू की। पढ़ना तो चाहिए। पहली बार ‘हिन्दी को’ बुकर के सम्मान की सम्भावना जो बलवती हुई थी। है कि नहीं?
पेमेंट वाले बटन को प्रेस करने जा ही रहा था कि अरुंधति रॉय का दानवीय चेहरा कौंध गया मानस पटल पर। तुरंत सिग्नल काम करने लगा कि अरे, एक और दुश्मन तैयार करने की साज़िश रची जा रही होगी। रायपुर में बैठकर आप रॉय का दंश बेहतर समझ सकते हैं। कैसे बुकर मिल जाने मात्र से पगलायी कोई औरत देश में तूफ़ान मचा सकती है, यह बस्तर-बारामूला, दंतेवाड़ा-हांदेवाड़ा के लोगों से बेहतर कौन जान सकता है भला? फ़ौरन से पेश्तर cancel बटन पर हाथ गया और इस तरह हमने साहित्य जेहाद का जकाती होने से खुद को बचा लिया था।
आप अरुंधति की कथित रचनाओं पर गौर कीजिए। दुर्भाग्य से मैं भी उसे ख़रीद कर लाया था पढ़ने के लिये। इतनी ‘महान’ लेखनी थी कि सर दुखने लगा। आदत है किसी भी किताब को प्रारम्भ करने के बाद अंत तक पहुंचने की, तो पढ़ तो लिया ही, लेकिन अपनी विवशता पर खुद ही मुट्ठी भींच रहा था कि उसे हम पढ़ क्यों रहे हैं। लेकिन क्योंकि वह ज़ाहिर नक्सल समर्थक है, उसे कश्मीर की कथित आज़ादी चाहिए, तो वह हो ही जाएगी विश्व की सबसे बड़ी लेखिका। बना ही दिया जायेगा ऐसे किसी को भी सिमोन की नानी।
बाद में तो क्योंकि मुझे नक्सलियों को समझना था तो पढ़ा ही लगभग सारा लिखा रॉय का। हर बार सर पटका। फिर भी पढ़ा क्योंकि वह काम भी था अपना। एक बार तो रंगे हाथ पकड़ लिया था अरु.. को नक्सलियों की प्रेस रिलीज़ को जस का तस अपना बना कर छापते हुए! एक भी मौलिक कुछ आपने पढ़ा हो अरुंधति का तो बताइयेगा। गॉड ऑफ़… तो क्या है, वह तो कांगरेड के अलावा और कोई समझ भी नहीं सकता। शेष रचनायें उसके लेखों का संग्रह है जिसे प्रेस विज्ञप्तियों को कंपाइल कर लिखा गया है।बहरहाल।
जब भी ऐसे किसी मामूली चीज़ों को देवता बनाया जा रहा हो, तो सावधान हो जाया कीजिए। जब भी किसी भारतीय को बुकर जैसा कुछ मिले तो समझ ज़ाया कीजिए कि या तो उसने भारतीयता के विरुद्ध कुछ लिखा होगा या उसमें सम्भावना होगी बौद्धिक ओसामा होने की। जब भी किसी को पुलिट्जर जैसा कोई सुगबुगाहट दिखे तो समझ लीजिए, दुश्मनों ने एक और रब्बीश तलाश लिया है। जब भी विश्व या ब्रम्हाण्ड को भारत में कोई ‘सुंदरी’ मिल जाय, समझ लीजिए बंटी परचून की दुकान पर कोई नया फ़ेयर एंड लवली पहुंचने वाला है। आदि इत्यादि….
डेढ़ किलोमीटर का पोस्ट लिख लिया मैंने और किसी ने पूछा ही नहीं कि आपने पढ़ा है क्या समाधि-उमाधि? नहीं कॉमरेड, बिल्कुल नहीं पढ़ा। अरुंधति का जला हूं तो हर ‘बुकरैलों’ को फूक-फूक कर ही पियूँगा। वैसे, वामरेडों का यह आज़माया हुआ नुस्ख़ा है, हर आलोचना पर वे आपको थम्हा देंगे ये जुमला कि पढ़े हो क्या?
पहले हम जैसे लोग इस जाल में फँस जाते थे। बक़ायदा नींद हराम कर पढ़ लेते थे कूड़ा-कचरा। जब तक आप उस पर कुछ कहने लायक़ होते तब तक ‘रावण को राम सतावन’ टाइप वे कुछ और ले आते थे। आप झेलते रहिये। फिर भी कुपढ़ आप ही कहे जाते और वे बड़े पढ़ाकू जिन्होंने आपके साहित्य का ‘स‘ नहीं पढ़ा होता था।
एक बड़े पत्रकार-स्तंभकार को अनायास ही पूछ दिया था मैंने कि ये जो आलोचना कर रहे हैं आप, पढ़ा है आपने? आंखे चुराए विल्स फूकते साहित्य अकादमी के दालान पर कहा उन्होंने कि पढ़ा तो सच में नहीं है ये मैंने।
आप गौर कीजिएगा कभी, दुनिया की सबसे अधिक पढ़े जाने वाले ‘मानस’ का ‘ढोल गवाँर…’ के अलावा और कोई चौपाई इन्हें उद्धृत करते आपने नहीं देखा होगा। ज़ाहिर है- पीढ़ियों से बस यही एक पंक्ति इनकी कुल जमा बौद्धिक विरासत है। तो क्या पढ़ना है, से अधिक चिंता आप इस बात की कीजिए कि क्या नहीं पढ़ना है। खैर।
तो ‘रेत-वेत’ भी पढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर समाधि नाम से कोई पॉप्युलर टाइप की चीजें ही पढ़नी हो, तो ओशो का सम्भोग-समाधि जैसा कुछ पढ़ लीजिए। अपने जिन लोगों ने नया ‘बुकरैल’ पढ़ लिया, है, उनसे सहानुभूति जताते हुए उनके ही बुरे अनुभवों से लाभ उठाइए। वे आपको दयनीय होकर बतायेंगे कि यह कथित कहानी एक बूढ़ी विधवा भारतीय महिला के अपने बचपन के पाकिस्तानी मुस्लिम प्रेमी तक चले जाने और वहीं किसी रेत वाले क़ब्रिस्तान में ‘समाधि’ ले लेने की महानतम गाथा है। भाषा भी सुना है ऐसी है मानो विशुद्ध वनस्पति तेल में जलेबी छान दी गयी हो।
तो इतना ही पढ़ कर संतुष्ट हो जाइये। भारत में फ़ंड/पुरस्कार आदि देकर देश-काल-संस्कृति जैसे चीज़ों को नुक़सान पहुँचाने का कृत्य किया जाता रहेगा। तय आपको करना है कि इनके मंसूबों को आप कितनी तेजी से ध्वस्त कर पाते हैं।

By MINIMETRO LIVE

Minimetro Live जनता की समस्या को उठाता है और उसे सरकार तक पहुचाता है , उसके बाद सरकार ने जनता की समस्या पर क्या कारवाई की इस बात को हम जनता तक पहुचाते हैं । हम किसे के दबाब में काम नहीं करते, यह कलम और माइक का कोई मालिक नहीं, हम सिर्फ आपकी बात करते हैं, जनकल्याण ही हमारा एक मात्र उद्देश्य है, निष्पक्षता को कायम रखने के लिए हमने पौराणिक गुरुकुल परम्परा को पुनः जीवित करने का संकल्प लिया है। आपको याद होगा कृष्ण और सुदामा की कहानी जिसमे वो दोनों गुरुकुल के लिए भीख मांगा करते थे आखिर ऐसा क्यों था ? तो आइए समझते हैं, वो ज़माना था राजतंत्र का अगर गुरुकुल चंदे, दान, या डोनेशन पर चलती तो जो दान देता उसका प्रभुत्व उस गुरुकुल पर होता, मसलन कोई राजा का बेटा है तो राजा गुरुकुल को निर्देश देते की मेरे बेटे को बेहतर शिक्षा दो जिससे कि भेद भाव उत्तपन होता इसी भेद भाव को खत्म करने के लिए सभी गुरुकुल में पढ़ने वाले बच्चे भीख मांगा करते थे | अब भीख पर किसी का क्या अधिकार ? आज के दौर में मीडिया संस्थान भी प्रभुत्व मे आ गई कोई सत्ता पक्ष की तरफदारी करता है वही कोई विपक्ष की, इसका मूल कारण है पैसा और प्रभुत्व , इन्ही सब से बचने के लिए और निष्पक्षता को कायम रखने के लिए हमने गुरुकुल परम्परा को अपनाया है । इस देश के अंतिम व्यक्ति की आवाज और कठिनाई को सरकार तक पहुचाने का भी संकल्प लिया है इसलिए आपलोग निष्पक्ष पत्रकारिता को समर्थन करने के लिए हमे भीख दें 9308563506 पर Pay TM, Google Pay, phone pay भी कर सकते हैं हमारा @upi handle है 9308563506@paytm मम भिक्षाम देहि

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