फिल्म निर्देशक विकाश वर्मा की फिल्म ‘नो मीन्स नो’ में लीड रोल कर रहे अभिनेता धुव्र वर्मा ने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत कर दी है। इस बारे में उनसे हमने बातचीत की, तो उन्होंने कई अहम बातें हमसे साझा की। इस क्रम में उन्होंने बताया कि वे विकाश वर्मा की एक और फिल्म ‘द गुड महाराजा’ में भी काम कर रहे हैं, द्वितीय विश्व युद्ध पर आधारित है। आईये जानते हैं कि उन्होंने और क्या कुछ कहा –

सवाल : बॉलीवुड में क्या सबसे ज्यादा जरूरी है, टैलेंट या सिफारिश ?

धुव्र वर्मा : यहां नेपोटिज्म है। मेरा भाग्य अच्छा था कि मुझे यह देखना नहीं पड़ा। लेकिन चाहे जो कुछ भी हो जाए अगर आपके अंदर टैलेंट और कड़ी मेहनत करने की क्षमता है तो आपके लिए इस शब्द का कोई मतलब नहीं है। बॉलीवुड में टैलेंट और कड़ी मेहनत मायने रखती है किसी की सिफारिश नहीं। दर्शकों उन्हीं को समर्थन करते हैं जिनका काम अच्छा होता है। अगर आपको दर्शकों का प्यार नहीं मिलेगा और वे आपको पर्दे पर पसंद ही नहीं करेंगे तो कोई इसका कोई मतलब नहीं रह जाता।

सवाल : आप गुड महाराजा में संजय दत्त के साथ काम कर रहे हैं। संजय दत्त को लेकर आप क्या सोचते हैं।

ध्रुव वर्मा : संजय दत्त मेरे बचपन के पसंदीदा कलाकार रहे हैं। उनके साथ काम करना अच्छा रहा। वे इस फ़िल्म में महाराजा का किरदार निभा रहे हैं।

सवाल : फ़िल्म फिल्म ‘द गुड महाराजा’ आपको कैसे मिली?

ध्रुव वर्मा : यह फिल्म मुझे ‘नो मीन्स नो’ की शूटिंग के दौरान ही मिली थी। उस समय मैंने ऑडिशन दिया था। विकाश वर्मा को उनको फिल्म में एक योद्धा दिखाना था। उसके लिए ऑडिशन दिया और चयन हुआ।

सवाल : आपका रोल रशियन स्नाइपर का है फ़िल्म में, ये कितना आसान या मुश्किल था?

ध्रुव वर्मा : द्वितीय विश्व युद्ध पर बन रही इस फिल्म में मेरा रोल एक रशियन स्नाइपर का है। स्नाइपर को अलग से तैयारी करनी होती है। इनका सारा काम सामने से नहीं बल्कि छिपकर और लेटकर होता है। यह खतरनाक लड़ाके होते हैं। यही एक रोल है मेरा फिल्म में, जिसके लिए खूब मेहनत करनी पड़ी है।

सवाल : विकाश वर्मा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा ?

ध्रुव वर्मा : विकाश वर्मा के साथ काम करने का अलग ही अनुभव है। नो मीन्स नो फिल्म करते समय काफी कुछ सीखने को मिला। विकाश वर्मा एक-एक छोटी चीजों को ध्यान में रखते हैं और दर्शकों को दिखाना चाहते हैं। हर एक कैरेक्टर के बारे में सीन से पहले उसको अच्छे से बताते हैं। यहां तक की कैरेक्टर को सांस कब लेना और आंख की पुतली कब घुमानी है इसे भी विकाश वर्मा फिल्म की सीन की मांग के अनुसार ही करवाते हैं। उनके साथ काम करने में बड़ा मजा आता है। एक एक्टर को कभी परेशानी नहीं उठानी पड़ती।

सवाल : आपको इंडियन जेम्स बांड कहा जाता है। यह सुनकर कैसी फीलिंग्स होती है।

ध्रुव वर्मा : अगर मुझे लोग भारतीय जेम्स बॉन्ड कहते हैं तो उसके लिए मैं बहुत शुक्रिया अदा करता हूं। वैसे मैंने एक्शन को बेहतर करने के लिए एक्शन का कोर्स किया है। कैमरा एक्शन का अलग कोर्स किया है। साथ ही 17 अलग-अलग हथियार के साथ ट्रेनिंग ली है। हथियार लेकर भागना और उसके साथ समय बिताना। मार्शल आर्ट, स्कूबा डायविंग कोर्स सभी चीजों को अच्छे से सीखा है। इन सभी से फिल्मों में काफी परफेक्शन आता है। यह मेरे लिए वाकई खुशी की बात है।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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