यह स्टडी एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नॉलजी में पब्लिश हुई है, जो बताती है कि ऑकलैंड में यह प्रदूषण पैकेजिंग मटीरियल से हो रहा है। पैकेजिंग के काम में इस्तेमाल होने वाला पॉलीएथिलीन एक तरह का माइक्रोप्लास्टिक है। कई और तरह के माइक्रोप्लास्टिक भी पैकेजिंग में इस्तेमाल होते हैं। स्टडी कहती है कि माइक्रोप्लास्टिक्स अब एक प्रमुख मुद्दा है, क्योंकि इनकी मौजूदगी बारिश के पानी, हमारी फूड चेन और महासागरों में भी है।
माइक्रोप्लास्टिक इतने महीन होते हैं कि उन्हें सिर्फ आंखों की मदद से नहीं देखा जा सकता। ये खिलौनों से लेकर गाड़ियों, हमारे कपड़ों आदि में मौजूद होते हैं। पानी में मिलने के बाद वेस्टवॉटर के रूप में ये नदियों से होते हुए समुद्र में पहुंचते हैं और फिर बारिश के रूप में हमारी धरती पर आ जाते हैं। भले ही यह स्टडी ऑकलैंड में हुई है, लेकिन चिंता भारत समेत पूरी दुनिया के लिए है, क्योंकि अगर न्यूजीलैंड में माइक्रोप्लास्टिक आसमान से जमीन पर पहुंच रहे हैं, तो भारत जैसे देश में इसका दायरा और ज्यादा होगा। हालांकि भारत में ऐसा कोई शोध अभी तक नहीं हुआ है। लंदन, पेरिस जैसे शहरों के लिए ऐसी स्टडी हुई है और वहां के वातावरण में भी माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी सामने आई है।
वैज्ञानिक शोध तो यहां तक कह रहे हैं कि प्लास्टिक रेन की वजह से आर्कटिक जैसी खाली जगहें भी प्रभावित हो रही हैं। फिर एशियाई देश खासकर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश इससे अछूते कैसे हो सकते हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक पर हुई स्टडी बताती हैं कि इंसान रोजाना 7 हजार माइक्रोप्लास्टिक अपनी सांस के साथ लेता है। यह तंबाकू के सेवन और सिगरेट पीने जितना खतरनाक है। हालांकि अभी यह सामने आना बाकी है कि माइक्रोप्लास्टिक की वजह से असल में सेहत पर क्या प्रभाव होता है।