यूनिसेफ द्वारा बच्चों पर कोविड के प्रभाव पर मीडिया के साथ परिचर्चा का आयोजन

डर से लड़ने और सही जानकारी के साथ उम्मीद जगाने में मीडिया की भूमिका अहम: नफीसा बिंते शफीक

 पटना, 26 मई: “अगर हमें कोविड -19 महामारी की तीसरी लहर से बच्चों की रक्षा करनी है, तो बड़ों को जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार करने और कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की सुरक्षा के लिए सरकार को ग्राम पंचायतों की मदद से निगरानी में तेजी लाने और बच्चों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करने की जरूरत है। पूरी सतर्कता और सावधानियों के साथ तीसरी लहर के प्रभाव को कम किया जा सकता है।” उक्त बातें प्रसिद्ध शिशु रोग चिकित्सक और भारतीय शिशु रोग अकादमी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. निगम प्रकाश ने यूनिसेफ बिहार द्वारा मीडियाकर्मियों के साथ आयोजित एक ऑनलाइन परिचर्चा के दौरान कहीं।

यूनिसेफ बिहार की प्रमुख नफीसा बिंते शफीक़ ने कोविड-19 महामारी के दौरान संवेदनशील रिपोर्टिंग के लिए मीडियाकर्मियों की सराहना करते हुए उन्हें कोविड वॉरियर्स करार दिया। आगे उन्होंने कहा कि महामारी के अलावा इन्फोडेमिक भी उतना ही चुनौतीपूर्ण है। मीडिया के लिए जरूरी है कि वह सही जानकारी जनता तक पहुंचाए। महामारी के दौरान सबसे कमजोर वर्ग यानी बच्चों और किशोरों के अधिकारों और हितों को आगे बढ़ाने में भी उनकी भूमिका अहम है। बाल चिकित्सा कार्य योजना विकसित करने के लिए यूनिसेफ सरकार के साथ सक्रिय रूप से काम कर रहा है। इस क्षेत्र में तकनीकी सहायता के अलावा यूनिसेफ ने बड़ी संख्या में चिकित्सा उपकरण/सुविधाएं जैसे 18 आरटी-पीसीआर सिस्टम, 7 लाख ट्रिपल लेयर मास्क, विभिन्न प्रकार के कोल्ड चेन किट, डीप फ्रीज़र आदि की आपूर्ति की है। आने वाले दिनों में 400 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर, 10 आरटी- पीसीआर सिस्टम, 100 हाई फ्लो नेज़ल कैनुला और सिविल वर्क वाले 5 ऑक्सीजन जेनरेशन प्लांट भी सप्लाई किए जाएंगे। इन सभी उपकरणों की कीमत लगभग 26 करोड़ रुपए है।”

यूनिसेफ बिहार के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सिद्धार्थ रेड्डी ने कहा कि 25 मई तक बिहार में कोविड-19 के कारण मृत्यु दर 0.6% रही है जिसे और कम किए जाने की ज़रूरत है। उन्होंने आगे बताया कि 5 अप्रैल से 25 मई के बीच 0-19 आयु वर्ग के लगभग 11 प्रतिशत बच्चों और किशोरों को राज्य में कोविड संक्रमित पाया गया है। इन कोविड संक्रमित बच्चों में से 38.6% लड़कियां और 61.3% लड़के हैं। महामारी के दौरान बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य एक और बड़ी चिंता का विषय है। मीडिया स्वास्थ्य विशेषज्ञों की जरूरी सलाह और सकारात्मक कहानियों को प्रसारित कर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

स्तनपान के संबंध में कई मिथक चल रहे हैं। मसलन, स्तनपान से कोविड संक्रमण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला देते हुए यूनिसेफ बिहार की पोषण अधिकारी डॉ. शिवानी डार ने कहा कि इसका अब तक कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है। कोविड-19 संक्रमित माताओं को स्तनपान जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। मां के दूध में संक्रमण से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है और इसे पहला टीका भी कहा जाता है।

 

उन्होंने कहा कि माताओं को परामर्श देने की आवश्यकता है कि स्तनपान के लाभ संभावित जोखिमों से काफी अधिक है। मां और शिशु को जन्म के बाद और स्तनपान के दौरान एक साथ रहना चाहिए। उन्हें या उनके शिशु को कोविड हो या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। माँ को केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे मास्क पहनें और आसपास स्वच्छता बनाए रखें। इस महत्वपूर्ण संदेश को फैला कर अफवाहों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

 

तीसरी लहर का बच्चों के लिए अधिक हानिकारक होने की संभावना पर बोलते हुए डॉ. प्रकाश ने कहा कि यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि हर महामारी में कई चरण होते हैं और यह कोविड-19 पर भी लागू होता है। आईसीएमआर द्वारा किए गए तीन सीरोसर्वे के अनुसार, पहले, दूसरे और तीसरे सर्वेक्षण के दौरान 18 वर्ष से कम उम्र के 5, 12 और 40 प्रतिशत बच्चे क्रमशः कोरोना संक्रमित पाए गए। ऐसे सभी बच्चों ने बाद में एंटी-बॉडी विकसित कर ली। परन्तु शेष 33 प्रतिशत बच्चों में ऐसी कोई एंटी-बॉडी नहीं है, क्योंकि वे ना तो संक्रमित हुए और ना ही उनका टीकाकरण हुआ है। ऐसे में इन बच्चों के गंभीर रूप से प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है। अब तक केवल 0.14 प्रतिशत बच्चों को ही कोविड की वजह से आईसीयू में भर्ती करने की ज़रूरत पड़ी है. हल्के लक्षणों को घर पर आइसोलेट रह कर ठीक किया जा सकता है। बच्चों का रुटीन टीकाकरण हर हाल में होना चाहिए. इंडियन एकेडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स, मुंबई द्वारा बच्चों को फ्लू वैक्सीन देने की सिफारिश की गई है। बड़ों द्वारा कोविड-19 उपयुक्त व्यवहार को अपनाकर तीसरे चरण के संभावित जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

कार्यक्रम का संचालन यूनिसेफ बिहार की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने किया। राय बनाने में मीडिया के महत्व को स्वीकार करते हुए  उन्होंने इस बात पर पज़ोर दिया कि मीडिया महामारी को लेकर अफ़वाहों और ग़लत ख़बरों यानि इन्फोडेमिक को होपडेमिक में बदल सकता है। बच्चों और किशोरों के दृष्टिकोण को मीडिया रिपोर्टों में जगह दी जानी चाहिए।

इस संवाद में राज्य भर से प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन माध्यम के मीडियाकर्मियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और अपने सुझाव साझा किए। साथ ही, पटना विश्वविद्यालय, पटना वीमेंस कॉलेज, एमिटी यूनिवर्सिटी पटना के सूचना एवं जनसंचार विभाग के छात्रों और संकाय सदस्यों ने भी इस कार्यक्रम के दौरान अच्छी उपस्थित दर्ज़ करायी।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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